Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर Important Questions-Bhartiya Gayikao Me Bejod Lata Mangeshkar Extra Questions

Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर Important Questions-Bhartiya Gayikao Me Bejod Lata Mangeshkar Extra Questions


Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर Important Questions-Bhartiya Gayikao Me Bejod Lata Mangeshkar Extra Questions
Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर Important Questions-Bhartiya Gayikao Me Bejod Lata Mangeshkar Extra Questions



Class 11 Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर Important Questions-Bhartiya Gayikao Me Bejod Lata Mangeshkar Extra Questions

Bhartiya Gayikao Me Bejod Lata Mangeshkar-NCERT IMPORTANT QUESTION ANSWERS


प्रश्न 1. लता की गायकी से संगीत के प्रति आम लोगों की सोच में क्या परिवर्तन आया है ?


उत्तर – संगीत ने सदा से मनुष्य को आनंद की अनुभूति दी है। शास्त्रीय संगीत साधारण मनुष्य की समझ से दूर

है लेकिन चित्रपट संगीत ने आम मनुष्य को संगीत से परिचत करा दिया है और लता के संगीत ने लोगों का शास्त्रीय

संगीत के प्रति दृष्टिकोण बदल दिया है। लता की गायकी का जादू ऐसा है कि घरों में छोटे-छोटे बच्चों को भी सुर

में गुन-गुनाते हुए देखा जा सकता है। लोगों का संगीत के विविध प्रकारों से परिचय हो रहा। स्वर ज्ञान बढ़ रहा है।

सुर-ताल की समझ आ रही है। साधारण मनुष्य भी संगीत की अच्छी पहचान रखने लगा है। इसका सारा श्रेय लता के

संगीत को जाता है। उनके संगीत ने नई पीढ़ी के संगीत को संस्कारित किया है। संगीत के प्रति आम लोगों की सोच

में परिवर्तन लता के संगीत के जादू से आया है।



प्रश्न 2. लेखक ने पाठ में गानपन का उल्लेख किया है। पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएं कि आपने विचार में इसे प्राप्त करने के लिए किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है?



उत्तर- लेखक के अनुसार गानपन ही संगीत का आधार है। गानपन "गायक को लोकप्रियता के शिखर पहुँचा देता

है। नए गायकों को गानपन प्राप्त करने के लिए केवल शास्त्रीय संगीत के सुर-ताल का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं अपितु संगीत के प्रति लगाव, मेहनत तथा श्रोता की पसंद का ज्ञान होना भी आवश्यक है। गाने की मिठास ही उसकी ताकत है और मनोरंजन का आधार है। श्रोता के समक्ष गाने को कैसे प्रस्तुत किया जाए और किस रीति से गाने के स्वरों की बैठक बिठाई जाए श्रोताओं से कैसे सुसंवाद स्थापित किया जाए, इन सबका ज्ञान ही अच्छे गानपन को प्राप्त करने में सहायक होता है।


प्रश्न 3. लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएं नजर आती है? उदाहरण सहित बताइए।


उत्तर- लता संगीत के क्षेत्र की अनमोल धरोहर है। लता ने चित्रपट संगीत को ऊँचे शिखर पहुँचा दिया है। आज के नवयुवक और युवतियाँ लता को ही प्रेरणा स्रोत मानते हैं। लेखक के अनुसार लता के संगीत की अपनी विशेष पहचान है। लता अपने से पहली पार्श्व गायिकाओं और बाद की पार्श्व गायिकाओं से काफ़ी आगे हैं लता के संगीत के जादू के कारण ही घर-घर में बच्चे भी गीतों को गुनगुनाने लगे हैं। लोगों का शास्त्रीय संगीत की ओर देखने का दृष्टिकोण बदल गया है। लता के संगीत के कारण ही संगीत के विविध प्रकारों से लोगों का परिचय हो रहा है। स्वरों और तालों का ज्ञान बढ़ रहा है। गीतों में सुरीलापन क्या होता है उसकी पहचान बढ़ रही है। साधारण लोगों को भी संगीत की सूक्ष्मता की समझ आने लगी है। नई पीढ़ी का संगीत भी उनके गीतों के कारण ही संस्कारित हो रहा है। संगीत की लोकप्रियता उसका प्रसार और अभिरुचि के विकास का श्रेय लेखक ने लता को दिया है।


हमारी राय भी लेखक से भिन्न नहीं है। लता का संगीत प्रत्येक प्राणी को उसके जीवन के नजदीक ला देती है। लता के संगीत की निर्मलता मनुष्य में नया उत्साह पैदा करती है। लता ने हर तरह के गीत गाए हैं जैसे भक्ति, देश प्रेम, श्रृंगार, विरह आदि के गीत आते हैं। उनका हर गीत मनुष्य को भक्ति, देश प्रेम श्रृंगार और विरह से जोड़ता है लता का एक गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों' सुनकर तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आँखों में आँसू आ गए थे। आज भी हम लोग जब यह गीत सुनते हैं तो देश प्रेम की भावना मन को छू जाती है, लोगों का देश के बलिदान याद आने लगता है। श्रृंगार रस के गीत मन में कई तरह की भावनाएं पैदा करते हैं तथा पैरों में थिरकन होने लगती है। भक्ति के गीत मनुष्य को सीधे प्रभु की भक्ति से जोड़ता है। लता का प्रत्येक गीत मनुष्य को छू जाता है और वह गीतों के भावों के साथ अपने को जुड़ा हुआ अनुभव करने लगता है। लता के संगीत की ऊँचाइयों ने ही नई पीढ़ी को संगीतगके मार्ग का खोला है। लता का संगीत ही अपने में एक विशेष अनुभूति देता है।




प्रश्न 4. लता के करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है जबकि श्रृंगार परक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती हैं। इस कथन से आप कहां तक सहमत है?


उत्तर- लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है जबकि श्रृंगार परक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती

हैं। इस कथन से हम पूरी तरह सहमत नहीं है। लता जी ने हर तरह के गीत बड़ी लगन से गाए हैं। लता ने श्रृंगार परक

गीत बड़ी उत्कटता से गाए हैं ऐसा इसलिए लगता है कि श्रृंगार परक गीत मनुष्य को नए वातावरण से जोड़ता है। उसके मन में नई-नई भावनाएं पैदा करता है करुण रस के गीतों से मनुष्य सीधे जुड़ नहीं पाता है। लता के स्वरों की कोमलता के कारण ऐसा लगता है कि करुण रस के गीत अच्छी तरह नहीं गाए हैं लेकिन ऐसा नहीं है लता के ऐसे कई गीत हैंजिन्हें सुनकर मन उदास हो जाता है। गीतों के भावों के उतार-चढ़ाव को इस ढंग से प्रयोग करती है कि सुनने वाले

को ऐसा लगता है कि यह हमारे साथ ही हो रहा है। करुण रस के गीतों में लता ने एक मां, बहन और प्रियतमा की

सुंदर अभिव्यक्ति दी हैं। चित्रपट संगीत में लता के गीतों ने औरत के मनोभावों को अच्छी तरह से व्यक्त किया है।

'रुदाली' फिल्म में एक औरत के मनोभावों को अच्छी अभिव्यक्ति दी है जिससे सुनने वालों को औरत के मन से सीधा जोड़ता है। ‘ऐ मेरे वतन के लोगों' गीत आज भी जब सुना जाता है लोगों की आँखें नम कर जाता है। ऐसे ही लता

के कई गीतों में प्रियतमा की अपने प्रियतम से बिगड़ने की अभिव्यक्ति लोगों को भी उदास कर जाती है लता के लिए

ऐसा कहना कि लता ने करुण रस के गीतों के साथ न्याय नहीं किया है, गलत है। लता का प्रत्येक गीत लोगों को जीवन

को उसी प्रकार जोड़ता है जिस प्रकार गीत के स्वर, भाव तथा उतार-चढ़ाव होता है।




प्रश्न 5. " संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है वहां अब तक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्ण ऐसा खूब बड़ा प्रांत है तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं।" इस कथन को वर्तमान फ़िल्मी संगीत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - संगीत का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हर रोज नए स्वर, नए यंत्रों तथा नई तालों का प्रयोग निरंतर चला आ रहा है लोग केवल वाद्य यंत्रों का प्रयोग करके संगीत को नया रूप नहीं देते अपितु प्रतिदिन प्रयोग में आने वाली वस्तुओं से भी संगीत उत्पन्न कर लेते हैं। वैसे तो प्रकृति हर रूप में संगीत है लेकिन चित्रपट संगीत की बात हो अलग है। चित्रपट संगीत ने संगीत के क्षेत्र को विशिष्ट लोगों की श्रेणी से निकालकर जनसाधारण के बीच में पहुँचा दिया है चित्रपट संगीत ने लोगों को सुर-ताल, लय तथा भावों को समझने की समझ दी है। संगीत का क्षेत्र में विस्तीर्ण है जहाँ नित नई खोज और उपयोग हो रहे हैं। पहले चित्रपट का संगीत तैयार करने के लिए एक स्टूडियो बनाया जाता था जहाँ कई लोग काम करते थे गायक और वाद्य यंत्रों को बजाने वाले को कई बार रिहर्सल करनी पड़ती थी। एक गीत को रिकार्ड करने में कई-कई दिन लग जाते थे। उस गीत में संगीत निर्देशक, गीतकार, गायक तथा वाद्य यंत्रों को बजाने वालों की मेहनत नज़र आती थी। लोक गीतों को उनके मौलिक रूप में प्रस्तुत किया जाता था उनसे छेड़-छाड़ नहीं की जाती थी लेकिन वर्तमान में संगीत को देखने का नज़रिया बदल गया है यहां नित नए प्रयोग हो रहे हैं। पहले गीत को रिकार्ड करने में एक टीम वर्क होता था लेकिन अब गीत को तैयार करने में पहले जितनी मेहनत नहीं करनी पड़ती है। अब इलैक्ट्रॉनिक्स यंत्रों का प्रयोग किया जाता है जिससे गायक के एक बार ही गाए गीतों को कई तरह के उतार-चढ़ावों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। आधुनिक संगीत में पहले के संगीत की तरह, मस्ती तथा मिठास नहीं है। इसका कारण ही संगीत में तरह-तरह के प्रयोग हैं संगीत के मौलिक रूप के साथ छेड़-छाड़ करके उसके स्वरूप को बिगाड़ दिया जाता है। पाश्चात्य संगीत की नकल पर संगीत तेज धुनों का प्रयोग किया जाता है जिससे लगातार सुना नहीं जाता। आज का संगीत तेज़ भागती नई पीढ़ी का संगीत है जिसे आज सुना, कल भुला दिया। संगीत के नए जोश और प्रयोगों ने भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भारतीय चित्रपट संगीत को नया बाजार दिया है। जिससे लोग किसी भी तरह के गीतों के साथ छेड़-छाड़ करके उसे नया रूप देकर बाज़ार में पेश करते हैं और नई पीढ़ी गीत की तेज़ धुनों से प्रभावित होकर उसे अपने जीवन में उतार लेती है। वर्तमान संगीत ने संगीत के क्षेत्र की मिठास और लय को समाप्त कर दिया है.



 प्रश्न 6. 'चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए' अक्सर यह आरोप लगाया जाता रहा है इस संदर्भ कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें।


उत्तर –" चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं" लेखक के अनुसार यह आरोप गलत है। चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़े नहीं है अपितु संगीत को समझने के नए अवसर दिए हैं। पहले जनसाधारण को संगीत के सुर, ताल और लय की समझ नहीं थी लेकिन अब गीतों में सुरीलापन क्या होता है समझ आने लगा है। संगीत के स्वरों का ज्ञान बढ़ रहा है। साधारण मनुष्य भी संगीत की सूक्ष्मता को समझने लगा है चित्रपट संगीत के कारण ही छोटे-छोटे बच्चे भी सुर और लय में गुनगुनाते दिखाई देते हैं संगीत की लोकप्रियता, उसका प्रसार और अभिरुचि के विकास में चित्रपट संगीत का बड़ा हाथ है लोगों का शास्त्रीय संगीत को देखने और समझने का दृष्टिकोण बदला है इसका श्रेय लेखक ने चित्रपट संगीत में लता का दिया है।


चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं-यह आरोप पहले के संगीत की अपेक्षा आज के संगीत पर ठीक जान पड़ता है आधुनिक संगीत में रस और मिठास के स्थान पर तेज़ धुनों और ऊँची आवाज़ में चीखते हुए स्वरों ने ले ली है। भारतीय संगीत को पश्चिमी संगीत में रंग दिया है जिससे लोगों पर अपितु नई पीढ़ी पर संगीत का बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आज चित्रपट संगीत मन को राहत देने के स्थान पर एक तेज़ दर्द पैदा करते है इसका कारण तेज़ भागती दुनिया में अपने को बड़ा सिद्ध करना है। लोग कई धुनों के बाज़ार में आते हैं उसे खरीद लेते हैं जो उस समय कर्ण प्रिय लगती है फिर पुरानी होते ही बासी लगने लगती है। आज का संगीत कानफोडू है जिसे ज्यादा समय तक बैठकर नहीं सुना जा सकता। इसलिए कहा जा सकता है कि पहले के चित्रपट संगीत की अपेक्षा आधुनिक चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए हैं।



प्रश्न 7. शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार क्या होना चाहिए ? कुमार गंधर्व की इस संबंध में क्या राय है ? स्वयं आप क्या सोचते हैं ?


उत्तर- कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार संगीत के अंत में श्रोता को आनंद देने की सामर्थ्य में होनी चाहिए। शास्त्रीय और चित्रपट संगीत में रंजकता अर्थात् मन मोहने वाली लय और ताल न हो तो संगीत नीरस प्रतीत होगा। गाने में गानपन शास्त्रीय गायन के पक्के ताल-सुर के निर्दोष ज्ञान के कारण नहीं होता उसके लिए श्रोता के पसंद की समझ होनी आवश्यक है। संगीत की सारी मिठास और ताकत उसकी रंजकता पर निर्भर हैं सुनने वाले के समक्ष रंजकता का मर्म कैसे प्रस्तुत किया जाए, किस रीति से उसकी बैठक बिठाई जाए, श्रोताओं से कैसे सुसंवाद साधा जाए यह सभी तथ्य संगीत के महत्त्व का आधार है इन तथ्यों के बिना श्रोता और गायक दोनों को ही चाहे शास्त्रीय संगीत हो या चित्रपट संगीत आनंद की अनुभूति नहीं हो सकती क्योंकि संगीत का महत्त्व तो लोगों को आनंद प्रदान करने में है।



Bhartiya Gayikao Me Bejod Lata Mangeshkar Chapter 1-EXTRA IMPORTANT QUESTION





प्रश्न 1. 'भारतीय गायिकाओं में बेजोड़: लता मंगेशकर' पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।


 उत्तर – 'भारतीय गायिकाओं में बेजोड़: लता मंगेशकर' पाठ के माध्यम से भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका न होने के कारणों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट किया है। गायन कला से जुड़े बहुत महत्त्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन किया है। लता मंगेशकर के गानपन ने संगीत को विशिष्ट लोगों की श्रेणी से निकालकर साधारण लोगों में लोकप्रिय बना दिया है। लेखक बहुत समय पहले बीमारी के समय में लता मंगेशकर का गीत रेडियो पर सुना और वह उसी समय से स्वयं को लता मंगेशकर के संगीत से जुड़ा हुआ अनुभव करने लगा। लता से पहले भी कई गायिकाएं आई हैं और बाद में भी परंतु लता के समान लोकप्रियता के शिखर तक कोई नहीं पहुँच पाया। आधी से अधिक शताब्दी बीत चुकी है लेकिन लता की लोकप्रियता कम नहीं हुई है इसका कारण लता के स्वरों की निर्मलता, कोमलता तथा मिठास है उनका स्वर लोगों को संगीत के साथ सीधा जोड़ता है। चित्रपट संगीत के निर्देशकों संगीत के माध्यम से शास्त्रीय संगीत को लोगों से जोड़ दिया है। उनके गीतों के माध्यम से राजस्थानी, पहाड़ी, पंजाबी, बंगाली लोकगीतों का बहुत उपयोग हुआ। साथ में देश की संस्कृति से आम लोगों को परिचित कराया है। संगीत का क्षेत्र एक ऐसा चित्र है जिसमें सभी वर्ण के लोग एक समान आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं। लेखक ने इस पाठ के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि लता मंगेशकर की गायकी ने संगीत को एक नई दिशा प्रदान की है। संगीत सभा-समारोहों की परिधि से निकलकर लता मंगेशकर के कारण ही सामान्य जन मानस तक पहुँचा है।


प्रश्न 2. शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत में क्या अंतर है ? 


उत्तर- शास्त्रीय संगीत और चित्रपट संगीत की तुलना नहीं की जा सकती। दोनों प्रकार के संगीत का अंत आनंद की प्राप्ति है। दोनों में समानता होते हुए भी अंतर है। शास्त्रीय संगीत में गंभीरता का स्थायी भाव है जबकि चित्रपट संगीत का गुण धर्म जलद लय और चपलता है। शास्त्रीय संगीत से ताल परिष्कृत रूप में पाया जाता है और चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है। चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है जबकि शास्त्रीय संगीत में तालों का पूरा ध्यान रखा जाता है। चित्रपट संगीत गाने वालों को शास्त्रीय संगीत का ज्ञान होनाआवश्यक है परंतु शास्त्रीय संगीत गायक को चित्रपट संगीत ज्ञान होना आवश्यक नहीं है। चित्रपट संगीत का एक गीत तीन-साढ़े तीन मिनट में वही आनंद और कलात्मकता प्रदान करता है जो शास्त्रीय संगीत तीन-साढ़े तीन घंटे की महफिल से प्राप्त होता है। दोनों प्रकार के संगीत का अपने-अपने क्षेत्र में बहुत महत्त्व है। श्रोता उस संगीत को ज्यादा पसंद जिसमें उन्हें अधिक आनंद की प्राप्ति होती है।



प्रश्न 3. चित्रपट संगीत के लोकप्रिय होने के क्या कारण हैं ? 


उत्तर- पहले समय में संगीत के क्षेत्र में शास्त्रीय संगीत का एकाधिकार था लेकिन चित्रपट संगीत ने शास्त्रीय संगीत के एकाधिकार को तोड़ दिया है। चित्रपट संगीत ने संगीत को जनसाधारण बीच में पहुँचा दिया। लोगों द्वारा शास्त्र शुद्ध संगीत के स्थान पर सुरीला और भावपूर्ण संगीत को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है। चित्रपट संगीत की लचकदारी ने लोकप्रिय बना दिया। इस संगीत की मान्यताएँ, मर्यादा तथा संगीत तंत्र सब कुछ निराला है जिसने लोगों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ी है। चित्रपट संगीत निर्देशकों ने अपने संगीत में हर क्षेत्र तथा शास्त्रीय संगीत का बहुत उपयोग किया है। जहां चित्रपट संगीत में शास्त्रीय रागदारी सुनी जा सकती है। वहीं राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली, पहाड़ी लोक गीतों के सुरीले बोल सुने जा सकते हैं। चित्रपट संगीत में देश की विभिन्नता एकता के रूप में समाहित है। इस संगीत के माध्यम से लोग अपनी संस्कृति से परिचित हो रहे हैं। चित्रपट संगीत के जनसाधारण में अधिक लोकप्रिय होने का श्रेय लता मंगेशकर को भी जाता है। लता मंगेशकर के स्वरों की निर्मलता, कोमलता और सुरीलेपन ने लोगों को अपने साथ गुनगुनाने के लिए मज़बूर कर दिया है। लता के कारण ही भारत का चित्रपट संगीत भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय हो चुका है।





लघु उत्तरात्मक प्रश्न




प्रश्न 1. लेखक कब से स्वयं को लता मंगेशकर के संगीत से जुड़ा हुआ अनुभव करने लगा ? 



उत्तर - लेखक बरसों पहले बीमार पड़ा था। बीमारी के दिनों में उसने रेडियो पर एक अद्वितीय स्वर सुना। उसे वह स्वर आम स्वरों से विशेष लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह स्वर किस गायिका का है। गीत के में लता मंगेशकर का नाम सुनकर लेखक को मन ही मन में एक संगति प्राप्त करने का अनुभव हुआ।


प्रश्न 2. लता मंगेशकर के पिता का क्या नाम था ? 



उत्तर- सुप्रसिद्ध गायक दीनानाथ मंगेशकर लता मंगेशकर के पिता थे। 



प्रश्न 3. लेखक को लता मंगेशकर और नूरजहाँ के गीतों में क्या अंतर दिखाई देता है ? 




उत्तर- लता मंगेशकर के गीतों में कोमलता और मुग्धता है उनका जीवन की ओर देखने का दृष्टिकोण उनके गीतों की निर्मलता में दिखता है। नूरजहाँ एक अच्छी गायिका थी फिर उनके गीतों में एक मादक उत्तान दीखता था। जो मनुष्य को जीवन से नहीं जोड़ता था।



प्रश्न 4. शास्त्रीय संगीत की तीन-साढ़े तीन घंटे की महफिल किसके गीत के बराबर आनंद प्रदान करती है


उत्तर – शास्त्रीय संगीत की तीन-साढ़े तीन घंटे की महफिल का आनंद लता के तीन-साढ़े मिनट के गीत के आनंद और कलात्मकता के समान है। उनका एक-एक गीत संपूर्ण कलाकृति है। स्वर, लय, शब्दार्थ का त्रिवेणी संगम है। शास्त्रीय संगीत की महफिल की बेहोशी उनके गीतों में समाई होती है।



प्रश्न 5. चित्रपट संगीत में किस-किस स्थान के लोकगीतों का प्रयोग हुआ है और उनके लोक गीतों में क्या विशेषता है ?


उत्तर- चित्रपट संगीत निर्देशकों ने पंजाबी, राजस्थानी, बंगाली और पहाड़ी लोक गीतों का प्रयोग अपने संगीत में बहुत किया है। पंजाबी लोक गीतों में धूप-सा कौतुक दिखता है। रुक्ष और निर्जल राजस्थान के लोकगीत पर्जन्य की याद दिलाते हैं। पहाड़ी लोक गीतों में पहाड़ों की घाटियों, खोरों में प्रतिध्वनित होने वाले गीत सुनाई देते हैं। संगीत निर्देशकों ने ऋतुचक्र को समझाने वाले और खेती के विविध कामों का हिसाब लेने वाले कृषि गीत और ब्रजभूमि में समाविष्ट सहज मधुर गीतों का मार्मिक और रसानुकूल उपयोग चित्रपट क्षेत्र में किया है



 प्रश्न 6. लेखक के अनुसार हम किस चमत्कार का प्रत्यक्ष देख रहे हैं?


उत्तर- लेखक के अनुसार लता मंगेशकर एक चमत्कार है। ऐसा कलाकार शताब्दियों में शायद एक ही पैदा होता है। लता मंगेशकर से पहले भी कई गायिकाएं आईं तथा बाद में भी परंतु लोकप्रियता का जो शिखर लता ने प्राप्त किया है उसे कोई छू भी नहीं पाया है। लगभग आधी शताब्दी से अधिक हो गया जनमन पर अपना निरंतर प्रभुत्व रखा हुआ है। संगीत के क्षेत्र में एक राग भी ज़्यादा समय तक टिका नहीं रहता परंतु लता का स्थान संगीत क्षेत्र में अटल है लता के गीत भारत में ही नहीं विदेशों में भी अधिक लोकप्रिय है लेखक के अनुसार यह चमत्कार ही है कि ऐसे कलाकार को आज भी हम अपने मध्य, अपनी आँखों के सामने घूमता-फिरता देख रहे हैं।





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