Class 10 Hindi Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation-Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम लक्ष्मण परशुराम संवाद - व्याख्या तथा भावार्थ
Class 10 Hindi Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation-Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम लक्ष्मण परशुराम संवाद - व्याख्या तथा भावार्थ |
Class 10 Hindi Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation-Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम लक्ष्मण परशुराम संवाद - व्याख्या तथा भावार्थ
Class 10 Hindi Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation- लक्ष्मण परशुराम संवाद - दोहा (1) व्याख्या
(1)
नाथ संभुधनु भंजनिहारा । होइहि केउ एक दासतुम्हारा'।।
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई ॥ सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा । सहसबाहु सम सो रिपु मोरा || सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा ॥ सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने। बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं। येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू ॥
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार ॥
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारे हिंदी की पाठ्यपुस्तक स्थित भाग 2 में संकलित राम लक्ष्मण परशुराम संवाद से अवतरित हैं जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं यह उनकी रचना रामचरितमानस के पहले कांड बालकांड से ली गई है जब सीता स्वयंवर में श्री राम जी शिव धनुष को तोड़ देते हैं ।उस समय की यह कथा है।
व्याख्या- श्री राम परशुराम को कहते हैं कि हे !नाथ इस धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। क्या आज्ञा है आप मुझे क्यों नहीं कहते ?श्री राम के यह वचन सुनकर मुनि क्रोध में होकर बोले सेवक तो वह होता है जो सेवा का कार्य करें जो शत्रुता का कार्य करता है उसके साथ तो लड़ाई ही करनी पड़ती है ।हे !राम सुनो जिसने भी इस शिव धनुष को तोड़ा है ,वह सहस्रबाहु के समान मेरा दुश्मन है। वह इस सभा से अलग हो जाए नहीं तो सभी राजा जो स्वयंवर में भाग लेने आए हैं, सभी मारे जाएंगे ।अब लक्ष्मण जी मुनि के वचन सुनकर मुस्कुराते हुए और परशुराम जी के फरसे की अवमानना करते हुए बोले कि हमने बचपन में ऐसे बहुत ही धनुहियां तोड़ी है ,तब तो आपने कोई क्रोध नहीं किया ।आपकी इसी धनुष पर इतनी ममता क्यों है? लक्ष्मण के यह वचन सुनकर भृगु कुल केतु अर्थात परशुराम जी कहने लगे कि हे! राजकुमार तुम काल के वश होकर बोल रहे हो और अपने आप को संभाल नहीं रहे हो यह सारा संसार जानता है कि यह शिव धनुष है और तुम इसे धनुही के समान बता रहे हो।
भाव पक्ष-
(1)श्री राम लक्ष्मण और परशुराम जी के स्वभाव का सुंदर वर्णन हुआ है।
कला पक्ष-
(1)अवधी भाषा का बहुत ही सुंदर प्रयोग हुआ है।
(2)भाषा प्रसाद और ओज गुण संपन्न है।
(3)वीर रस का सुंदर प्रयोग हुआ है।
(4)दोहा चौपाई छंद है।
(5)"सहस्रबाहु सम हो रिपु मोरा" अनुप्रास अलंकार है।
(6)"भृगु कुल केतु" में रूपक अलंकार है।
Class 10 Hindi Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation- लक्ष्मण परशुराम संवाद - दोहा (2) व्याख्या
(2)
लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना || का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअकतरोसू॥
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा। बालकु बोलि बघौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥ बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही || भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही । बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही सहसबाहुभुज छेदनिहारा । परसु बिलोकु महीपकुमारा ॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 2 में संकलित राम -लक्ष्मण परशुराम संवाद से ली गई है जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं ।उनकी रचना रामचरित मानस का प्रथम कांड है बाल कांड और बालकांड से ही यह राम लक्ष्मण परशुराम संवाद के पद लिए गए हैं। जब श्री राम शिव का धनुष तोड़ देते हैं यह कथा उस समय की है।
व्याख्या- लक्ष्मण ने हंसकर कहा कि हे देव सुनो! जहां तक मैं जानता हूं सभी धनुष समान हैं और इस धनुष के टूट जाने से कौन सी बड़ी हानि या लाभ होने वाला है। इसको तो श्रीराम ने अपने आंखों से देखा मात्र था और छुआ ही था तभी यह धनुष टूट गया इसमें श्री राम का कोई दोष नहीं है। हे !मुनि आप तो बिना ही कारण के क्रोधित हो रहे हैं तब परशुराम जी फरसे की ओर ध्यान देकर बोलते हैं अरे मूर्ख! तुमने मेरे स्वभाव के बारे में नहीं सुना है। मैं तुम्हें बालक जानकर नहीं मारता तुम तो मुझे एक साधारण मुनि के रूप में जान रहे हो लेकिन मैं बाल ब्रह्मचारी हूं और अत्यंत क्रोध वाला हूं और यह सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रिय कुल का विनाशक हूं। मैंने अपनी भुजाओं के बल से इस पूरी पृथ्वी को अनेकों बार राजाओं से विहीन कर दिया और उस भूमि को ब्राह्मणों में दान कर दिया। मैं सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काटने वाला हूं ।हे राजकुमार! तुम मेरे फरसे को ध्यान से देखो तुम अपने माता-पिता को बिना ही कारण सोच कर बस कर रहे हो मेरे फरसे के डर से तो गर्भ के बच्चे भी मर जाते हैं।
भाव पक्ष-
(1)परशुराम जी के बाल ब्रह्मचारी होने, क्षत्रिय कुल का विनाशक होने और अत्यंत क्रोधी स्वभाव का पता चलता है।
कला पक्ष-
(1)अवधी भाषा का सुंदर प्रयोग है।
(2)भाषा ओज गुण व वीर रस संपन्न है।
(3)संवाद और व्यंग्य शैली का प्रयोग हुआ है।
(4)पूरे पद में अनुप्रास अलंकार का बहुत ही सुंदर प्रयोग हुआ है।
(5)"छूअत टूट रघुपति न दोसू "में अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
Class 10 Hindi Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation- लक्ष्मण परशुराम संवाद - दोहा (3) व्याख्या
(3)
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥ पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पहारू ॥ इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥ देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥ भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिसरोकी
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई || बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें ॥
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहुधनुबानकुठारा॥
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर ।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ॥
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 2 में संकलित तुलसीदास जी द्वारा रचित राम लक्ष्मण परशुराम संवाद से अवतरित हैं जो कि उनकी प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस के प्रथम कांड बालकांड से ली गई है। इन पंक्तियों में राम लक्ष्मण और परशुराम के संवाद के माध्यम से सीता स्वयंवर की कथा बहुत ही सुंदर ढंग से कही गई है।
व्याख्या- लक्ष्मण हंसकर और बहुत ही कोमल वाणी में बोले, हे महामुनी! हमने आपको बड़ा योद्धा मान लिया है क्योंकि आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाडा दिखा रहे हैं और आप तो ऐसा व्यवहार कर रहे हैं कि जैसे फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हो। लेकिन यहां पर हम भी कोई छुईमुई के पौधे नहीं हैं, जो आपकी तर्जनी उंगली देखकर डर जाएंगे ।मैंने तो आपके कुल्हाड़ी और धनुष बाण देखकर अर्थात आपको योद्धा समझकर कुछ अभिमान सहित आपको कह दिया था लेकिन आपके यज्ञोपवीत को देखकर मैंने जान लिया है कि आप ब्राह्मण कुल से संबंधित हैं। अब जो मैं कुछ कहता हूं उसे आप अपना क्रोध रोककर सुने ।हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण ,हरिजन और गाय पर शूरवीरता नहीं दिखाई जाती क्योंकि यदि इन का वध कर दें तो पाप लगता है और इनसे हार जाएं तो अपयश होता है ।आप तो यदि हमें मारेंगे भी तो हम आपके पांव ही पड़ेंगे और आपने तो व्यर्थ ही धनुष बाण और कु्ल्हाड़ा धारण कर रखा है क्योंकि आपके वचन ही करोड़ों बाणों के समान हैं। हे महामुनि !यदि मैंने कुछ गलत कहा हो तो मुझे माफ कर देना। अब यह सारी बातें परशुराम जी में बड़े रोस के साथ सुनी और गंभीर होकर कहने लगे।
भाव पक्ष-
(1)इन पंक्तियों में लक्ष्मण के वाकपटु होने ,वीर ,नीति वान और बुद्धिमान होने का पता चलता है।
कला पक्ष-
(1)साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग है।
(2)भाषा ओज गुण और वीर रस संपन्न है।
(3)दोहा चौपाई छंद का प्रयोग हुआ है।
(4)"मैं कछु कहा पा परिय तुम्हारे "व "सुनी सरोज "में अनुप्रास अलंकार है।
(5)"पुनि पुनि मोहि" में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(6)कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा मैं अनुप्रास और उपमा अलंकार है।
(7)रघुवंश मणि में रूपक अलंकार है।
Class 10 Hindi Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation- लक्ष्मण परशुराम संवाद - दोहा (4) व्याख्या
(4)
कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलुकालबसनिजकुलघालकु॥
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं ॥ तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा । कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा ॥ लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥ नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा ॥
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु॥
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 2 में संकलित राम लक्ष्मण परशुराम संवाद से अवतरित हैं ।इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। उनकी प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस के प्रथम कांड, बालकांड से यह संवाद लिया गया है। इन पंक्तियों में लक्ष्मण और परशुराम के वार्तालाप का वर्णन किया है।
व्याख्या- इन पंक्तियों में परशुराम जी विश्वमित्र को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे विश्वामित्र !सुनो यह बालक बड़ा ही कुटिल है और मृत्यु के वश होकर अपने कुल को नष्ट करने वाला है यह सूर्यवंश रूपी चंद्रमा पर कलंक के समान है यह पूर्ण रूप से उदंड, बुद्धिहीन और निडर है यह एक ही पल में काल का ग्रास बन सकता है। फिर कोई भी मुझे इसका दोष मत देना यदि तुम इसे उभारना चाहते हो तो इसे मेरा बल प्रताप और क्रोध उसके बारे में बताओ। तब लखन लक्ष्मण जी हंसकर कहने लगे कि हे मुनि! तुम्हारे यश को कौन नहीं जानता तुमने अनेक बार अपने ही मुख से अपने यश को कहा है ।यदि आपको अब भी संतोष नहीं होता तो दोबारा कुछ कहें अपने क्रोध को रोककर असहनीय दुख ना सहें। आप तो वीर व्रत धारण करने वाले योद्धा हो, आप को गाली देना शोभा नहीं देता और जो योद्धा होते हैं वह युद्ध क्षेत्र में अपनी वीरता को करके दिखाते हैं न कि अपने मुख से अपनी वीरता का बखान करते हैं और युद्ध भूमि में अपने सामने शत्रु को पाकर अपना प्रताप कहना यह तो एक कायर का ही कार्य है।
भाव पक्ष-
इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि परशुराम जी एक क्रोधी मुनि हैं और लक्ष्मण कुशल नीति कार की तरह दिखाई देते हैं जो क्रोध की बात को भी हंस कर कहते हैं।
कला पक्ष-
(1)बहुत ही सुंदर साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
(2) तत्समऔर तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।
(3)भाषा ओज गुण व वीर रस संपन्न है।
(4) संवाद शैली का सुंदर प्रयोग किया गया है।
(5)"कुटिल काल बस ," क"कहूं सूर समर करनी करहिं" मेंअनुप्रास अलंकार है।
(6) भानुवंश राकेश कलंकु में रूपक अलंकार है।
Class 10 Hindi Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation- लक्ष्मण परशुराम संवाद - दोहा (5) व्याख्या
(5)
तौ तुम्ह कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥ सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा। अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू॥ बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा। कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू ॥ खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही ।।
उतर देत छोड़ौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे ॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे ॥
गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 2 में संकलित राम लक्ष्मण परशुराम संवाद से ली गई है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं । यह संवाद तुलसीदास जी की प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस के प्रथम कांड बालकांड से लिया गया है । यहां पर सीता स्वयंवर का प्रसंग लिया गया है।
व्याख्या- लक्ष्मण जी परशुराम को कहते हैं कि हे! मुनि ऐसा लगता है कि आप तो बार-बार हांक लगाकर मेरे लिए मृत्यु को बुलाना चाहते हैं। लक्ष्मण के कठोर वचन सुनकर परशुराम ने अपना फरसा सुधार कर अपने हाथ में ले लिया और कहने लगे कि अब कोई भी मुझे दोष मत देना कड़वे वचन बोलने वाला यह बालक वध के योग्य है और बालक समझ कर मैंने इसे बहुत बचाया लेकिन अब यह वास्तव में मरने वाला है ।विश्वामित्र कहने लगे कि आप लक्ष्मण के अपराध क्षमा कर दें ,क्योंकि सज्जन लोग बालकों के दोष नहीं देखा करते ।तब परशुराम जी कहते हैं कि मेरे हाथ में कुल्हाड़ा है और मैं बड़ा ही दया हीन और क्रोधी हूं और मेरे आगे मेरा अपराधी गुरु द्रोही खड़ा है ।हे !कौशिक केवल तुम्हारे सील के कारण ही मैं इसे छोड़ रहा हूं मैं तो अपने कुल्हाड़ी से इसको यही काट डालता और थोड़े से ही परिश्रम से अपने गुरु के ऋण से उऋण हो जाता ।परशुराम की यह सारी बातें सुनकर विश्वामित्र मन ही मन हंसते हैं और सोचते हैं कि मुनि को तो चारों ओर हरा ही हरा दिखता है वे सोचते हैं कि यह बालक गन्ने के रस से बनी हुई खांड नहीं हैं बल्कि यह तो लोहे से बने हुए खांड़े हैं अर्थात तलवार हैं लेकिन मुनि को यह बात समझ में नहीं आती है।
भाव पक्ष
(1)इन पंक्तियों में विश्वामित्र के चरित्र का पता चलता है कि वह ज्ञानी और बुद्धिमान ऋषि हैं।
कला पक्ष-
(1)साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
(2)भाषा ओज गुण व वीर रस संपन्न है।
(3)दोहा चौपाई छंद का प्रयोग हुआ है।
(4)"तुम्ह तो कालू हांक जनु लावा" में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(5)"बार-बार मोहि लागी बोलावा" में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(6)पूरे पद में अनुप्रास अलंकार का बहुत ही सुंदर प्रयोग हुआ है।
Class 10 Hindi Chapter 2 Ram Lakshman Parshuram Samvad Explanation- लक्ष्मण परशुराम संवाद - दोहा (6) व्याख्या
(6)
कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा को नहि जान बिदित संसारा॥ माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें॥ सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा || अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली ॥ सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा ॥ भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृप द्रोही |
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े॥ अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु ।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु॥
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 2 में संकलित कविता राम लक्ष्मण परशुराम संवाद से ली गई है जो कि मूल रूप से गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के पहले कांड बालकांड से ली गई है।
व्याख्या- लक्ष्मण जी परशुराम को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मुनि! आपके शील स्वभाव को कौन नहीं जानता अर्थात सारा संसार जानता है ।आप माता-पिता के कर्ज से भलीभांति मुक्त हो गए हो और गुरु के ऋण की आप को बड़ी चिंता लगी हुई है जो कि आपने हमारे माथे पर मड दिया है ।और अब तो बहुत दिन चले गए हैं उस ऋण पर ब्याज भी बढ़ गया होगा आप एक कार्य करें किसी हिसाब किताब करने वाले को बुला लें और मैं उस कर्ज को उतारने के लिए तुरंत ही थैली खोल कर देता हूं। लक्ष्मण के यह कड़वे वचन सुनकर परशुराम जी ने अपना फरसा सुधार कर हाथ में ले लिया और सारी सभा में हाय हाय की पुकार मच गई ।अब लखन जी कहते हैं कि हे परशुराम !आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं लेकिन मैं आपको ब्राह्मण सोच कर नहीं मारता अर्थात आप ब्राह्मण होने के कारण ही बचे हुए हैं। आपको कभी कोई अच्छा योद्धा नहीं मिला आप तो अपने घर में ही योद्धा बने फिरते हैं ।लक्ष्मण के यह वचन सुनकर सभा में सभी लोग कहने लगे कि यह बिल्कुल अनुचित है और श्री राम जी ने आंखों के इशारे से लक्ष्मण को बोलने से मना कर दिया ।लक्ष्मण के उत्तर ने परशुराम के क्रोध की अग्नि में आहुति की तरह कार्य किया और इस आग को बढ़ते देख श्री राम जी ने जल के समान कुछ शीतल वचन कहे।
भाव पक्ष-
(1)इन पंक्तियों से पता चलता है कि लक्ष्मण व्यंग करने में कुशल हैं।
(2)परशुराम के उग्र एवं क्रोधी व श्री राम जी के शील स्वभाव का पता चलता है।
कला पक्ष-
(1)साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
(2)तत्सम एवं तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।
(3)भाषा और गुण व वीर रस संपन्न है।
(4)दोहा चौपाई छंद का प्रयोग हुआ है।
(5)अनुप्रास अलंकार की छटा सर्वत्र देखी जा सकती है।
(6)" जनों हमारे ही माथे काढा" में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(7)"हाय- हाय" में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(8)"लखन उत्तर आहुति सरिस" व जल सम वचन में उपमा अलंकार है।
(9)"भृगुबर कोपू कृसानु" में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
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