Class 11 History Chapter 7 Notes in Hindi बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएं नोट्स

Class 11 History Chapter 7 Notes in Hindi बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएं नोट्स (पुनर्जागरण नोट्स)
Class 11 History Chapter 7 Notes in Hindi बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएं नोट्स
Class 11 History Chapter 7 Notes in Hindi बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएं नोट्स

Class 11 History Chapter 7 Notes in Hindi बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएं नोट्स (पुनर्जागरण नोट्स) 

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महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्द
→पुनर्जागरण:- पुनर्जागरण यूरोप में 14 वी 17वीं शताब्दी के बीच हुए महत्वपूर्ण संस्कृतिक परिवर्तनों का काल था जिसमें प्राचीन रोमन तथा युनानी संस्कृतियों को पुनर्जीवित किया जा रहा था ।

→मानवतावाद:- मानवतावाद एक ऐसी विचारधारा थी जिसके केंद्र में मनुष्य था; वह मनुष्य जो धार्मिक नियंत्रणों और अंधविश्वासों से कोसों दूर था तथा अपनी रुचि अनुसार कार्य कर वर्तमान जीवन को समृद्ध और खुशहाल बना सकता था।

→यथार्थवाद:- पुनर्जागरण के दौरान चित्र और मूर्तिकला में आए परिवर्तनों को "यथार्थवाद" का नाम दिया गया जिसमे कलाकृतियों को  रेखागणित, परिदृश्य और विज्ञान का प्रयोग करके त्रि-आयामी, रंगीन और चटक बनाया जाता जो बिल्कुल हूबहू दिखता।

→शास्त्रीय शैली पुनर्जागरण के दौरान वास्तुकला की नयी शैली को शास्त्रीय या क्लासिक शैली कहा गया जो रोमन साम्राज्य कालीन शैली का पुनरुद्धार थी।

→रेनेसां व्यक्ति :- रेनेसां व्यक्ति उस व्यक्ति को कहा जाता जिसकी एक से ज्यादा कई रुचियों हो ।

→धर्म सुधार आंदोलन :- 16 वीं सदी में जब चर्च के सदस्य विलासिता पूर्ण जीवन जी रहे थे तब यूरोप में मानवतावादी विचारों के प्रसार के कारण चर्च की बुराईयां उभरकर आने लगी जिससे ईसाई धर्म में वाद विवाद होने के कारण यह दो मुख्य धाराओं में विभक्त हो गया। 

→प्रोटेस्टेंटवाद :- 1517 में जर्मन भिक्षु मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के खिलाफ एक आंदोलन चलाया जिसे प्रोटैस्टेंटवाद नाम दिया गया जिसके बाद ईसाई धर्म दो धाराओं- कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट में बंट गया ।

प्रतिसुधार आंदोलन :- धर्म सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप कैथोलिक चर्च द्वारा स्वयं में किए गए सुधारों (जैसे निर्धनो की सेवा ) को प्रति सुधार आंदोलन कहा जाता है।

→वैज्ञानिक क्रांति :- नए-नए वैज्ञानिकों के विचारों और आविष्कारों के बाद चर्च द्वारा प्रचलित अंधविश्वासों का खंडन किया और इसके परिणामस्वरूप मनुष्य और ईश्वर के प्रति जो नया दृष्टिकोण सामने आया जिसे वैज्ञानिक क्रांति कहा गया।


NCERT Detailed NOTES

✓ केंद्र बिंदु:- युरोप में पुनर्जागरण काल (14वीं-17 वीं शताब्दी)


पुनर्जागरण को अंग्रेजी में रेनेसां कहते हैं जो फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। रेनेसां का शाब्दिक अर्थ है फिर जागना।


14वी-17वी शताब्दी के बीच यूरोप में एक नई संस्कृति विकसित हो रही थी जो साहित्य तथा कला के विभिन्न क्षेत्रों में नए विचारों से ओतप्रोत थी। मध्यकाल में प्राचीन युनानी व रोमन संस्कृति खत्म हो चुकी थी। परंतु पुनर्जागरण में इसे वापस जीवित किया गया। पुनर्जागरण निस्सन्देह युरोप के इतिहास में युग बदलने वाली घटना थी। जिसे मध्यकाल और आधुनिक काल के बीच सुत्र माना जाता है।





✓ इतिहास के स्रोत :- 

• युरोपीय इतिहास की बहुत सारी जानकारी हमे दस्तावेज, मुद्रित पुस्तकों, चित्रों, मुर्तियों, भवनों और वस्त्रों से प्राप्त होती है जो यूरोप और अमेरिका के अभिलेखागारो, कला- चित्रशालाओं और संग्रहालयों में सुरक्षित रखी हुई है।


• 1860 में लियोपोल्ड वन रांके के शिष्य जैकब बर्कहार्ट ने 'दि सिविलाइजेशन ऑफ रेनेसां इन इटली" पुस्तक की रचना की। इनमें उन्होंने मानवतावादी संस्कृति के बारे में बताया। यह संस्कृति इस नए विश्वास पर आधारित थी कि व्यक्ति अपने बारे में खुद निर्णय लेने और अपनी दक्षता को आगे बढ़ाने में समर्थ है।


  • सर्वप्रथम रेनेसां इटली में ही हुआ है। 

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✓ पुनर्जागरण सर्वप्रथम इटली में ही क्यों हुआ?


• रोम साम्राज्य के पतन के बाद पश्चिमी यूरोप विखंडित हो गया, जिसके साथ-साथ इटली के राजनैतिक और सांस्कृतिक केंद्र भी नष्ट हो चुके थे। 

•इस समय इटली एक कमजोर देश था जो अनेक टुकड़ों में बंटा था । 

• यूरोप में जब कोई एकीकृत सरकार नहीं थी और रोम का पोप भी केवल अपने राज्य में सार्वभौम था, समस्त यूरोपीय राजनीति में नहीं। 


परंतु इन्ही परिस्थितियों ने इतालवी संस्कृति के पुनस्थान में सहायता की।


1453 ई. में जब बाइजेंटाइन साम्राज्य पर ऑटोमन तुर्कों का अधिपत्य स्थापित हो गया तो हजारों की संख्या में विद्वान और कलाकार पूर्वी यूरोप से पश्चिमी यूरोप लौट आए। क्योंकि तुर्की केवल तलवार को महत्व देते थे ज्ञान, दर्शन और कला को नहीं।

 • इनमें से अधिकतर विद्वान इटली में आए और अपने साथ प्राचीन रोम और यूनान का ज्ञान-विज्ञान तथा नई चिंतन पद्धति भी लाए।


→ विद्वान और कलाकार इटली में ही क्यों आए?


• इटली में उनके आने का कारण था इटली का एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र होना। 12 वीं सदी के बाद से धर्मयुद्ध के कारण और रेशम मार्ग के कारण इटली के बंदरगाह पुनर्जीवित हो उठे।


• व्यापारिक गतिविधियों के कारण इटली में मिलान, फ्लोरेस और वेनिस नगरों की स्थापना हुई।


• नगरों की स्थापना होने की वजह से वहां सामंतवाद की व्यवस्था खत्म हो चुकी थी तथा व्यापारिक और मध्यम वर्ग का उदय हो गया था। विद्वानों और कलाकारों का इटली में आने का कारण था - क्योंकि अमीर और अभिजात वर्ग कलाकारों और विद्वानों के आश्रयदाता थे।


→अतः इटली में शहरों के उदय, सामंतवाद के पतन और बाइजेंटाइन साम्राज्य से विद्वानों के आगमन से पुनर्जागरण को बल दिया।


✓ इटली में नगर राज्य : 

• इटली के नए व्यापारिक नगर स्वयं को एक‌ शक्तिशाली साम्राज्य का अंग समझने के ब्जाय स्वतंत्र नगर- राज्य के रूप में देखते थे।


फ्लोरेंस और वेनिस गणराज्य थे , बाकी दरबारी नगर थे ।


• यहाँ पर धर्माधिकारी और सामंतवर्ग शक्तिशाली नहीं थे बल्कि नगर के धनी व्यापारी और महाजन नगर के प्रशासन में सक्रिय थे।


• यहीं से नागरिकता की भावना पनपी |


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(क) विश्वविद्यालय और मानवतावाद


→यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय इटली में स्थापित हुए।


→ 11वीं सदी से पादुआ और बोलोनिया विधिशास्त्र (कानून की पढ़ाई ) के अध्ययन के केंद्र रहे थे। क्योंकि नगरों का मुख्य क्रियाकलाप व्यापार और वाणिज्य था इसलिए वकीलों और नोटरी की अधिक आवश्यकता होती थी। इसलिए कानून का अध्ययन एक लोकप्रिय विषय बन गया ।


पुनर्जागरण के दौरान विधिशास्त्र रोमन संस्कृति के संदर्भ में पढ़ा जाने लगा।


→फ्रांचेस्को पेट्रार्क (1804-1318) इस परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करते थे जिसके कारण उन्हें पुनर्जागरण का पिता कहा गया।


→इस नई संस्कृति को इतिहासकारों ने मानवतावाद' नाम दिया।


→15 वीं शताब्दी के शुरू में मानवतावादी उन अध्यापकों को कहा जाता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र कविता, इतिहास और नीतिदर्शन जैसे विषयों को पढ़ाते थे।


→यह लातिनी शब्द 'ह्युमेनिटास' से बना है जिसका प्रयोग निबंधकार सिसरो ने 'संस्कृति' के अर्थ में किया था।


→मानवतावादी दृष्टिकोण मनुष्य की समस्याओं का अध्ययन करता है। इसका अर्थ हुआ कि मनुष्य अपनी रूचि के अनुसार कार्य करे और अपनी प्रतिभा को निखारे । मध्यकालीन मानव को जहाँ परलोक की चिंता लगी रहती थी वहीं मानवतावादी इहलोक यानी वर्तमान जीवन को खुशहाल और समृद्ध बनाने पर जोर देते थे।


→एक नया नया स्थापित विश्वविद्यालय फ़्लोरेंस भी था। इस नगर ने 13 वीं सदी तक कोई तरक्की नहीं की थी पर 15 वी सदी में यह पूरी तरह बदल गया ।


→फ्लोरेंस की प्रसिद्धि में दो लोगों का हाथ था- दांते अलिगहियरी (1265-1321) जो किसी धार्मिक संप्रदाय से संबंधित नहीं थे और उन्होंने अपनी कलम धार्मिक विषयों पर चलायी।

जोटो (1261-1337) जो कलाकार थे ने जीते जागते रूप चित्र तैयार किए। 


"रेनेसा व्यक्ति" उसे कहा जाता जिसकी कई रुचियाँ हो और कई कलाओं में कुशल हो । उद. के लिए एक ही व्यक्ति, विद्वान, कूटनीतिज्ञ, धर्मशास्त्री और कलाकार हो सकता था।


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(ख) विज्ञान और दर्शन- अरबीयों का योगदान


→14 वी शताब्दी में अनेक विद्वानों ने प्लेटो और अरस्तू के ग्रंथों के अनुवाद पढ़े जिसके लिए वे अरब के अनुवादको के ऋणी थे। (अरबी में प्लेटो को अफलातून और एरिसटोटिल को अरस्तू कहा जाता था)


→अरबों ने प्राचीन रोमन और यूनानी ग्रंथों का अनुवाद करा उन्हें सावधानी -पूर्वक संरक्षित किया था।


→140. ई में यूनानी में खलोगशास्त्र पर टॉलेमी द्वारा लिखित अलमजेस्ट में अरबी के उपपद 'अल' का उल्लेख मिलता है जो अरबी और युनानी के बीच रहे संबंधों को दर्शाता है।


→युनानी विद्वान भी अरबी और फारसी पुस्तकों का अनुवाद अन्य युरोपीय  भाषाओं में कर रहे थे जिससे अरब का विज्ञान और दर्शन यूरोप पहुंचा। 


→हकीम और दार्शनिक इब्न सिना (लातिनी में एविसिना) और आयुर्विज्ञान विश्वकोश के लेखक अल-राजी (रेजेस) आदि लेखकों को इटली में पढ़ा जाता था।


→अरबी दार्शनिक इब्न रुश्द (लातिनी में अविरोज 1126-1198) के दार्शनिक ज्ञान को ईसाई चितकों द्वारा अपनाया गया।


→धीरे-धीरे मानवतावाद स्कूलों में भी पढाया जाने लगा। इस काल के विद्यालय केवल लड़कों के लिए ही थे।




(ग) कलाकार और यथार्थवाद तथा वास्तुकला


✓चित्रकला: पुनर्जागरण के दौरान चित्रकला में परिवर्तन आया । चित्रकार अब धार्मिक चित्रों कि बजाय सुंदर साज-सजावट के चित्र बनाने लगे ।


→उन्होंने बिल्कुल हूबहू चित्र बनाए । चित्रकार अब रेखागणित (geometry) की मदद से अपने परिदृश्य (Perspective) को समझकार चित्र बनाने लगे जो बिल्कुल त्रि-आयामी (three- Dimentional) थे


→लेप चित्र में तेल के रंगों का प्रयोग करके उसे अधिक रंगीन और चटक बनाया गया।


→उनके चित्रों में चीनी और फ़ारसी चित्रकला का प्रभाव दिखाई देता है जो उन्होंने मंगोलों से मिली थी।


  • कुछ महत्वपूर्ण चित्र एवं चित्रकार


  • चित्र

  • चित्रकार

असिसि (बाल ईसा मसीह का चित्र )

जोटो (1261-1337)

मोनालिसा (एक स्त्री का चित्र)

द लास्ट सपर (ईसा मसीह को अपने साथियों के साथ मेज पर अंतिम भोजन करते हुए दिखाया गया है)

लियोनार्डो द विंची (1452-1519)

प्रार्थना रत हस्त (Praying hand) (सोलवीं सदी की इतालवी संस्कृति का आभास करता है)

अल्बर्ट डयूरर् (1471-1528)

लास्ट जजमेंट

सिस्टीन चैपल की भीतरी छत पर 145 चित्र 

माइकल एंजेलो बुआनारोत्ती (1475-1564)



✓मुर्तिकला:-

→ पुनर्जागरण के दौरान मुर्तिकारों द्वारा रोमन संस्कृति के समय की मूर्तिकला से प्ररेणा ली गई जिसके लिए उसके भौतिक अवशेषों की खोज की गई।


→ कलाकारों द्वारा हूबहू मूल आकृति जैसी मूर्तियों को बनाने की चाह को वैज्ञानिकों के कार्यों से सहायता मिली।


→ बेल्जियम मूल के आन्ड्रीयस वेसेलियस पादुआ विश्वविद्यालय में अध्यापक थे, ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की। इसी समय से आधुनिक शरीर क्रिया - विज्ञान का प्रारंभ किया गया।


  • कुछ महत्वपूर्ण मूर्ति तथा मूर्तिकार


  • मूर्ति

  • मूर्तिकार

द पाइटा (मैरी को ईसा के शरीर को धारण करते हुए दिखाया गया है)

माइकल एंजेलो बुआनारोत्ती (1475-1564)

यंग एंजेल्स

गाटामेलाटा

दोनातल्लो (1386-1466)


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✓वास्तुकला:-

→पुनर्जागरण काल के दौरान अपनायी गई वास्तुकला को "शास्त्रीय शैली" कहा जाता है।


→यह शैली वास्तव में रोम साम्राज्य कालीन शैली का पुनरुद्धार थी।


→जिसके कारण पुरातत्व का एक नया हुनर निकल आया जिसके द्वारा रोम के अवशेषों का सावधानीपूर्वक उत्खनन किया गया।


• कुछ महत्वपूर्ण वास्तुकार:-


सेंट पीटर गिरजे का गुबंद

माइकल एंजेलो बुआनारोत्ती

फ्लोरेंस का भव्य गुबंद

फिलेप्पो ब्रूनेल्लेशी



✓यथार्थवाद


→इस तरह शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी और सौंदर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप दिया जिसे "यथार्थवाद" (Realism) कहा गया। यह परंपरा 19 वीं सदी तक चलती रही।


→यथार्थवाद (Realism) का अर्थ है - जैसा जगत है उसे वैसा ही उकेरना। पुनर्जागरण में कलाकार कलाकृतियों त्रिआयामी, चटक और हूबहू बनाते थे।





(घ) प्रथम मुद्रित पुस्तकें


→16वीं सदी में इटली का साहित्य यूरोप के अन्य भागों में फैला।


→ऐसा छापेखाने (प्रिंटिंग प्रेस) के आविष्कार के कारण संभव हो सका।


→छापेखाने के आविष्कार से पुस्तकें सस्ती एवं अधिक मात्रा में उपलब्ध होने लगी। छात्रों को अध्यापकों के नोट्स पर ही निर्भर नहीं रहना पड़ा।


→ मुद्रण प्रौद्योगिकी के लिए युरोपीय लोग चीनियों तथा मंगोल शासकों के ऋणी थे। यूरोप के व्यापारी मंगोल शासकों के राजदरबार में अपनी यात्रा के दौरान इस तकनीक से परिचित हुए।


→1455 में छापेखाने के आविष्कार का श्रेय जर्मन मूल के जोहानेस गुटेनबर्ग (1400-1458) को दिया जाता है जिन्होंने सर्वप्रथम छापेखाने से अपनी कार्यशाला में बाईबल की 150 प्रतियां छापी।


→15वीं सदी के अंत से पुस्तकों के वितरण के कारण मानवतावादी संस्कृति आलप्स पर्वतों के पार पहुंची। यानी मानवतावादी संस्कृति का विस्तार इटली से उत्तरी यूरोप में हो गया।


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(ङ) मनुष्य की एक नयी संकल्पना


→पुनर्जागरण ने एक नए मनुष्य की संकल्पना प्रस्तुत की जो धर्म के नियंत्रण से मुक्त था।


→इटली के निवासी भौतिक संपत्ति, शक्ति और गौरव से आकर्षित थे। परंतु ये जरूरी नहीं था कि वे अधार्मिक थे।


→फ्रेन्चेस्को बरबारो ने अपनी पुस्तिका में संपत्ति अधिग्रहण को एक विशेष गुण बतलाया है। इसी तरह लोरेन्जो वल्ला जो स्वयं एक पादरी थे, ने अपनी पुस्तक ऑनप्लेजर में ईसाई धर्म द्वारा भोग विलास पर लगाई गई पाबंदियाओं की आलोचना की है।


→मानवतावाद का मतलब यह भी था कि व्यक्ति विशेष धन-दौलत और सत्ता की होड़ को छोड़कर अन्य कई माध्यमों से जीवन को रूप दे सकता था। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य बहमुखी है यानी यह विचार तीन वर्ग वाली सामतीं प्रथा के खिलाफ गया।






(च) महिलाओं की आकांक्षाएं


→पुनर्जागरण के वक्त भी महिलाओं को वैयक्तिकता (individuality) और नागरिकता के नए विचारों से दूर रखा गया।


✓अभिजात वर्ग में महिलाओं की स्थिति:-


→अभिजात वर्ग में पुरुषो का बोलबाला था और घर-परिवार के मामले में वे ही निर्णय लेते थे। उस समय केवल लड़कों को ही शिक्षा दी जाती थी।


→यद्यपि विवाह में प्राप्त दहेज को कारोबार में लगा दिया जाता था तथापि महिलाओं को व्यापार इत्यादि में सलाह देने का अधिकार प्राप्त नहीं था। 


→अगर पर्याप्त दहेन का प्रबंध नहीं हो पाता था तो शादीशुदा लड़कियों को ईसाई मठ में भिक्षुणी बनाकर भेज दिया जाता।


→आमतौर पर महिलाओं की भागीदारी सीमित थी और उन्हें घर परिवार को चलाने वाली के रूप में देखा जाता था।


✓ व्यापारी वर्ग में महिलाओं की स्थिति :-

→दुकानदारों की स्त्रियों अकसर दुकान चलाने में सहायता किया करती थी।


→व्यापारी और साहुकर की स्त्रियों अपने पति की अनुपस्थिति में कारोबार संभालती थी। व्यापारी परिवारों में महिलाएं सार्वजनिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।


✓मानवतावादी महिलाएं 

→ पुनर्जागरण काल में कुछ महिलाएं रचनात्मक और मानवतादी थी।


→वेनिस की रहने वाली कसान्द्रा फेदेले (Cassandra Fedele) उन थोड़ी सी महिलाओं में से एक थी जिन्होंने इस विचारधारा को चुनौती दी कि एक "मानवतावादी विद्वान के गुण एक स्त्री के पास नहीं हो सकते।"

 वे युनानी तथा लातिनी दोनों भाषाओं की विद्वान थीं और पादुआ विश्वविद्यालय में भाषण दिने देने के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया था। उन्होंने पुरुष केंद्रित गणतंत्र की आलोचना की।


→मंटुआ की मार्चिसा (उस समय नगरों का शासन एक धनी व्यक्ति चलाता था जिसे मार्चिस कहते थे) ईसाबेला दि इस्ते (1474-1539) ने अपने पति की गैर मौजूदगी में अपने राज्य पर शासन किया। यद्यपि मुटुआ एक छोटा राज्य पा फिर भी उसका राजदरबार बौद्धिक प्रतिभा से पूर्ण था।


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(छ) ईसाई धर्म के अंतर्गत वाद-विवाद


धर्म सुधार आंदोलन पुनर्जागरण के बाद आधुनिक युग की दूसरी महानतम घटना थी।


→16वीं सदी के आरंभिक वर्षों में मानवतावादी विचार उत्तरी यूरोप पहुंचे। पर इटली मे जहाँ पेशेवर विद्वान इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, वहीं उत्तरी यूरोप में इसका नेतृत्व चर्च के पादरी और अन्य सदस्य कर रहे थे।


→उन्होंने पुराने धर्मग्रंथों को पढ़ने, और कर्मकांड  त्यागने पर जोर दिया। वे दूरवर्ती ईश्वर में विश्वास रखते थे और मानते थे कि उसने मनुष्य को बनाया है लेकिन उसे अपना जीवन मुक्त रूप से चलाने की आजादी दी है।


→इंग्लैंड के टॉमस मोर और हॉलैंड के इरेस्मस मानते थे कि चर्च एक लालची और लूट खसोट करने वाली संस्था है।


→पाप- स्वीकारोक्ति (indulgences) नामक दस्तावेज से पादरी लोगों से धन लूटते थे।


→ मानवतावादियों ने चर्च द्वारा जालसाजी से तैयार 'कॉस्टैनटाइन के अनुदान" नामक वस्तावेज का पर्दाफाश कर दिया।


1517 में जर्मन युवा भिक्षु मार्टिन लूथर के नेतृत्व में प्रोटैस्टेंट सुधारवादी आंदोलन चलाया गया जो कैथोलिक चर्च के विरोध में था। उनका मानना था कि ईश्वर से मिलने के लिए पादरी की कोई आवश्यकत नहीं है और केवल ईश्वर में विश्वास ही उन्हें स्वर्ग दिला सकता है।


→उलरिक ज्विंगली और जौ केल्विन ने स्विटजरलैंड में लूथर के विचारों को लोकप्रिय बनाया।


→अन्य जर्मन सुधारक जैसे एनाबेपटिस्ट इनसे कहीं अधिक उग्र सुधारक थे। वे आमूल परिवर्तनवाद (Radicalism) में विश्वास रखते थे और मानते थे कि मनुष्य को मोक्ष केवल तभी मिल सकता है जब वह सामाजिक उत्पीड़न से मुक्त हो । इसने सामंतवाद से उत्पीड़ित किसानों को आकर्षित किया।


→ लूथर ने आमूल परिवर्तनवाद का समर्थन नहीं किया। जर्मन शासकों द्वारा 1525 में किसान विद्रोह का दमन किया।


→आमूल परिवर्तनवादी फिर फ्रांस में प्रोटेस्टेंटो के विरोध के साथ जुड़ गए जो कैथोलिक शासकों के अत्याचार से परेशान थे। फ्रांस में कैथोलिक चर्च में प्रोटेस्टेंट लोगो को अपने अनुसार प्रार्थना करने की छूट दी।


इंग्लैंड के शासकों ने पोप से संबंध तोड़ लिए।


 → स्पेन और इटली में पादरियों ने सादा जीवन और निर्धनों की सेवा पर जोर दिया। स्पेन में 1540 में इग्नेशियस लोयोला ने सोसाइटी ऑफ जीसस नामक संस्था की स्थापना की जिसके अनुयायी जेसुइट कहलाते थे।

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(ज) कोपरनिकसीय क्रांति


→चर्च ने लोगों में कुछ अंधविश्वास फैला रखे थे जैसे- पृथ्वी पापो से भरी है और पापों की अधिकता के कारण स्थिर है। पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है और जिसके चारों और खगोलीय ग्रह घूम रहे हैं।


→लेकिन पुनर्जागरण में वैज्ञानिकों ने बिल्कुल अलग दृष्टिकोण अपनाया।


→यूरोपीय विज्ञान के क्षेत्र में यूगांतकारी घटना कोपरनिकस (1473-1543) की अपनी किताब 'दि रिवल्यूशनिबस" थी जिसमें यह घोषणा की गई थी कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं।


→लेकिन ईसाई धर्माधिकारियों की घोर- प्रतिक्रिया से डरते हुए उन्होंने उसे प्रकाशित नहीं करवाया । उन्होंने वह पाण्डुलिपि अपने अनुयायी जोशिम रिटिकस को सौंप दी।


→आधी शताब्दी से भी अधिक समय के बाद जोहानेस कैप्लर ने अपने ग्रंथ "कॉस्मोग्राफिकल मिस्ट्री" में कोपरनिकस के सिद्धांत को प्रसिद्ध बनाया। जिससे यह सिद्ध हुआ कि सारे ग्रह सूर्य के चारों और वृताकार की बजाय दीर्घ वृताकार मार्ग पर परिक्रमा करती है।


→गैलिलियो गैलिली ने अपने ग्रंथ "दि मोशन" में गतिशील विश्व के सिद्धांतों की पुष्टि की।


→आइजैक न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से विज्ञान में नई क्रांति आई


→इतिहासकारों ने मनुष्य और प्रकृति के ज्ञान के नए दृष्टिकोण को वैज्ञानिक क्रांति का नाम दिया।



→संदेहवादियों और नास्तिक अब ईश्वर के बजाय प्रकृति को सर्वोच्च मानने लगे।


→1670 में पेरिस अकादमी और 1662 में लंदन में रोयल सोसाइटी की स्थापना की गई।






(झ) एक विश्लेषण


→यूरोप में पुनर्जागरण के पीछे केवल रोम और यूनान की "क्लासिकी सभ्यता" का ही हाथ नहीं था ।


→यूरोपीयों ने न केवल रोम और यूनान से सीखा बल्कि भारत, अरब , ईरान, मध्य एशिया और चीन से भी ज्ञान प्राप्त किया ।


→इस काल में जो परिवर्तन हुए उनमें 'निजी' और 'सार्वजनिक' दो अलग-अलग क्षेत्र बनने लगे। व्यक्ति की दो भूमिकाएँ थी - एक निजी और दूसरी सार्वजनिक


→ वह न केवल तीन वर्गों में से किसी एक वर्ग का ही सदस्य था बल्कि एक स्वतंत्र व्यक्ति था।


→ एक कलाकार किसी गिल्ड या संघ का ही सदस्य नहीं होता बल्कि वह अपने हुनर के लिए भी जाना जाता।


→ इस काल की अन्य विशेषता यह भी थी कि भाषा के आधार पर यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों ने अपनी पहचान बनानी शुरू की।


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