Afghanistan Sankat Class 12 Political science Additional Topics Madhya Purv Sankat Afghanistan मध्य पूर्व संकट अफगानिस्तान Afghanistan War Class 12 Political Science

Class 12 Political science Additional Topics Madhya Purv Sankat Afghanistan मध्य पूर्व संकट अफगानिस्तान Afghanistan War Class 12 Political Science

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Afghanistan Sankat Class 12 Political science Additional Topics Madhya Purv Sankat Afghanistan मध्य पूर्व संकट अफगानिस्तान Afghanistan War Class 12 Political Science


Class 12 Political science Additional Topics Madhya Purv Sankat Afghanistan मध्य पूर्व संकट अफगानिस्तान Afghanistan War Class 12 Political Science

Middle East Crisis-Afghanistan War is one of the added topics in class 12 political science chapter 2 (book 1). मध्य पर्व संकट-अफगानिस्तान संकट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान अध्याय 2 (दो ध्रुवीयता का अंत) में सम्मिलित ने विषयों में से एक है


Class 12 Political science Additional Topics Madhya Purv Sankat Afghanistan मध्य पूर्व संकट अफगानिस्तान (VIDEO EXPLANATION)



 अफगानिस्तान: एक परिचय

→अफगानिस्तान मध्य पूर्व/ मध्य एशिया में स्थित चारों तरफ से भूमि से घिरा हुआ है।


→ इसका अधिकतर भाग पर्वतीय है और केवल 12% भूमि ही कृषि-योग्य है।


→ ब्रिटिश इंडिया और अफगानिस्तान को अलग करने वाली सीमा का नाम "डूरंड लाइन" है। यह अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मध्य है। भारत की( पाक-अधिकृत कश्मीर) अफगानिस्तान के साथ 106 Km. लंबी सीमा है। 


→अफगानिस्तान में चार प्रमुख समुदायों के लोग रहते है:

(I) तज़िक

(ii) पश्तून

(iii) उज्बेक

(iv) हजारा




 अफगान-सोवियत युद्ध (1979-1989)


पृष्ठभूमि


1973-1978 तक अफगानिस्तान में दाऊद खान की सरकार काम कर रही थी।


→ 1978 PDPA (People's Democratic Party of Afganisthan) कर दिया। ने मौजूदा सरकार का तख्तापलट कर‌ दिया।


PDPA एक साम्यवादी सरकार थी जिसे सोवियत संघ का समर्थन प्राप्त था।


→ दाऊद खान की सरकार आधुनिकीकरण के प्रयास ( अमेरिका के प्रभाव में) कर रही थी लेकिन इसके बाद आई PDPA की सरकार ने सारी व्यवस्था को समाजवादी प्रणाली के तर्ज पर ढाला।


→साम्यवादी सरकार के खिलाफ लोगों में रोष था क्योंकि :

•समाजवादी प्रणाली के आधार पर भूमि सुधार के प्रयास किए गए जिसमें लोगों से जमीनें लेकर सरकार के अधीन कर दी गई।

•साम्यवादी सरकार ईश्वर के अस्तित्व को नकारती थी परंतु अफगानिस्तान में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग मुस्लिम धर्म से जुड़ा हुआ था। जिसके कारण सरकार और लोगों ने तालमेल नही बना।


→इसीलिए जिहाद (धर्म) की रक्षा के लिए मुजाहि -दीन लड़ाके ( शहरी तथा ग्रामीण दोनो प्रकार के परिवेशों से) सरकार को उखाड़ना चाहते थे इसीलिए उन्होंने सरकार के खिलाफ युद्ध लड़ा।


मुजाहिदीन (यू.एस.ए के समर्थन के साथ) और POPA सरकार के बीच संघर्ष हुआ।


→ मुजाहिदीन गुरिल्ला युद्ध में पारंगत थे जिसके कारण साम्यवादी सरकार के पाँव खीसकने लगे।


युद्ध का शुरू होना


→ सोवियत संघ अपने समर्थन वाली साम्यवादी सरकार को हारता देख और अमेरिका के प्रभुत्व वाली सरकार की स्थापना न होने देने के कारण 24 दिसंबर को 100000 सैनिकों वाली सेना 1979 अफगानिस्तान में भेज देता है।


→इसे ही 1979 का सोवियत इनवेजन (Soviet Invasion) / सोवियत आक्रमण कहा जाता है।


→मुजाहिदीन और सोवियत संघ की सीना के बीच 1979 से लेकर 1989 तक हुए युद्ध को सोवियत - अफगान युद्ध की संज्ञा दी जाती है जो लगभग एक दशक तक चला।


→ मुजाहिदीन को समर्थन प्राप्त था : चीन, यू.एस.ए (मिसाइलें उपलब्ध करवाई) सऊदी अरब, पाकिस्तान, अल-कायदा (1988 के बाद अस्तित्व में आया) ।


→ सोवियत संघ को समर्थन प्राप्त था : संपूर्ण सोवियत संघ का, वियतनाम का तथा भारत का ( केवल मानवीय सहायता : सैनिकों का उपचार आदि)


→ लगभग एक दशक तक मुजाहिदीन गुरिल्ला युद्ध लड़ते रहे और सोवियत सेना में सैनिकों की संख्या बढ़ाई जाती रही।


सोवियत सेना का वापस बुलाया जाना


1985 में मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने।


→ इन्होंने अपनी नीतियों के चलते सोवियत संघ से अपनी सेना वापस बुलानी शुरू कर दी।


→ धीरे-धीरे सोवियत सेना अफगानिस्तान से वापस आने लगी और 1989 तक सारी सोवियत सेना अफगानिस्तान छोड चुकी थी।


→ लेकिन सोवियत संघ 1986 में ही अपनी कठपुतली सरकार अफगानिस्तान में स्थापित कर देता है। मोहम्मद नजीबुल्लाह राष्ट्रपति बनते है।





अफगानिस्तान गृह युद्ध


तालिबान का उदय और युद्ध (1994-1996)


→ बेशक सोवियत सेना अफगानिस्तान से चली गई हो लेकिन 1986 से वहाँ पर सोवियत संघ की कठपुतली सरकार ही काम कर रही थी जिससे मुजाहिदीन नाखुश थे और अभी भी सक्रियता से विरोध कर रहे थे।


1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही मोहम्मद नजीबुल्लाह की सरकार गिर जाती है।


मुजाहिदीन अपनी सरकार बनाते है। बुरहनुद्दीन रखवानी राष्ट्रपति बनते है।


→ परंतु, मुजाहिदीन (जो शुरुआत में धर्म की रक्षा के लिए आए थे और अलग- अलग समुदाय से संबंधित थे) स्वयं अलग अलग भागों में विभाजित होकर सत्ता के लिए लड़ने लगते हैं।


1994 में तालिबान एक नए संगठन के रूप में उभरता है। तालिबान का शब्दिक अर्थ है विद्यार्थी।


→ तालिबान कंदधार पर कब्जा कर लेता है और बाद मे यही उसका अड्डा बनता है।


तालिबान मुजाहिदिनों ने अधिक ताकतवर साबित हुआ इसीलिए तालिबान से लड़ने के लिए अहमद शाह मसदूड और अब्दुल रशीद पस्तुन मिलकर Northern Alliance उत्तरी गठबंधन बनाते है।


अफगानिस्तान में तालिबान और मुजाहिदीन के जैसे विभिन्न-विभिन्न गुटों के बीच हुए संघर्ष की अफगान गृह युद्ध का नाम दिया जाता है। जो 1989 (सोवियत सेना के जाने के बाद से ही) से लेकर 1996 तक चला।


→ आखिरकार सितंबर 1996 में तालिबान ने काबुल  (अफगानिस्तान की राजधानी) पर कब्जा कर लिया। और अफगानिस्तान में तालिबान शासन की शुरुआत हुई।


तालिबान शासन (1996-2001)


→ तालिबान ने सख्त शरीया कानून लागू किया और अफगानिस्तान को एक मुस्लिम राज्य घोषित किया। अफगनिस्तान अब Republic of Afganistan Emirates of Afghanistam हो गया से


→ शुरुआत में तालिबान को लोगों का समर्थन प्राप्त कथा लेकिन जल्दी ही लोग तालिबान शासन से तंग आ गए थे।


→तालिबान ने इस्लाम से दूसरे धर्मों को मानने वाले लोगों की धार्मिक आजादी छीन ली।




 

अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप


तालिबान के उखडरते पांव


1998 में केन्या और तंजानिया में अमेरिकी दुतावासों पर हमले का जिम्मेवार अमेरिका में अल-कायदा बताया


तालिबान ओसामा बिन लादीन 2 अब्दुल्ला आजाय ( अल-कायदा आतंकी संगठन के संस्थापक) को संरक्षण प्रदान किया।


→ अमेरिका ने 9/11 के हमले के बाद War Againt Terror (आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध) के अंग के रूप में Operation Enduring Freedom ( आपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम) चलाया जिसमे अल-कायदा और अफगानिस्तान मे तालिवान शासन को निशाना बनाया।


अमेरिका ने अक्टूबर, 2001 को (NATO) की सेना अफगानिस्तान में भेज दी।


दिसंबर 2001 में तालिबान की सरकार गिर गई। 2001 हामिद करजी को राष्ट्रपति बनाया गया।


ISAF (2001-14) और Operation Resolute Help (2015-21)


→ अल-कायदा और तालिबान अभी भी सक्रिय थे इसीलिए अमेरिका ने वहाँ ISAF (International

Security Assistance Force) की स्थापित किया ताकि अल-कायदा और तालिबान को पूरी तरह से मिटाया जा सके।


→ तालिबान अभी भी अमेरिका के साथ गोरिल्ला युद्ध लड़ रहा था।


2011 में पाकिस्तान में लादीन को मार गिराया गया और 2013 मे मोहम्मद उमर (तालिबान प्रमुख) की एक बीमारी के चलते मौत हो गई।


→ तालिबान और अल-कायदा के प्रमुखों की मौत के पश्चात् भी ये दोनों संगठन सक्रिय रहे।


2014 में और की सेना की कुछ टुकड़ियों NATO को वापस बुलाया गया। लेकिन 14000 US के सैनिक और 17000 NATO के सैनिक अफगानिस्तान की सरकार को तालिबान के विरुद्ध लड़ने में मदद करने के लिए वहीं रुके रहे। इसे Operation Resolute Help कहा जाता है। जो 2021 तक चला।


→ इस तरह  अमेरिका ने अफगानिस्तान में तीन ऑपरेशन चलाए :

(i) Operation Infinite Reach (1998 में अमेरिकी दुतावासों पर हमाले के जवाब मे)

(ii) Operation Enduring freedom (2001-14)

(ii) Operation Resolute Help (2015-21)


→2015 में अशरफ घानी राष्ट्रपति बने।


→ अमेरिका के आने से और तालिवान शासन के अंत के बाद से ही सारी पाबंदियों को हटा दिया गया था और अफगानिस्तान में आधुनिकीकरण के प्रयास हो रहे थे।


→ 2020 तक तालिबान और अफगान सरकार जिसकी अमेरिका सहायता कर रहा था के बीच में जंग जारी थी।


तालिबान का दोबारा आना


→ अमेरिका की जनता ने अमेरिका की सरकार पर संपूर्ण सेना वापस बुलाने के लिए दबाव डाला क्योंकि अफगानिस्तान में रह रही सेना के ऊपर अत्यधिक खर्च हो रहा था और अफगान सरकार के लिए अमेरिकी सैनिक जान गवां रहे थे।


→ इसीलिए 29 फरवरी 2020 को अमेरिका और तालिबान के बीच 'शांति समझौता' होता है

जिसे 'डोहा समझौता' भी कहा गया है। इसके अमेरिका अपनी सेना को अफगानिस्तान से वापस अनुसार बुला लेगा अगर तालिबान शांति कायम रखेगा तो।


मई 2021 में अमेरिका ने अपनी सेना को वापस बुला लिया।


→ धीरे-धीरे तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करना शुरू कर दिया और अंत में 2021 (15 अगस्त) को 'काबुल' को हथिया लिया। इसी के साथ ही अफगानिस्तान में दोबारा तालिवान शासन की शुरुआत हुई।


→ तालिवान शासन में फिर से शरिया कानून लागू दिया गया। महिलाओं से अधिकार छीन लिए गए। अल्पसंख्यक समुदायों को दबाया गया बड़ी मात्रा में अफगानी लोग अन्य देशों में इस शरणार्थी बने। कर


→ इस प्रकार से अफगानिस्तान की राजनीति हमेशा अस्थायी रही है और देश अनेक सालों से गृहयुद्ध में उलझा है। 



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