कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Hindi Sakhiya avam Shabad Extra Questions

कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Hindi Sakhiya avam Shabad Extra Questions

कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Hindi Sakhiya avam Shabad Extra Questions
Important Questions Class 9 Hindi -साखियां एवं सबद

कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Hindi Sakhiya avam Shabad  NCERT IMPORTANT QUESTION

 साखियां और सबद

 (कबीर)


प्रश्न- कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?


कवि ने सच्चा प्रेमी उसे बताया है जो सांसारिक विषय-वासनाओं को त्याग कर हमेशा प्रभु की भक्ति अर्थात प्रेम में लीन रहता है। जब दो प्रेमी मिलकर अपने प्रियतम अर्थात परमात्मा के विषय में चर्चा करते हैं तो उनके मन की सारी दुर्भावनाएँ समाप्त होकर अमृत में बदल जाती है। यहीं सच्च प्रेमी की कसौटी कवि ने बताई है।


प्रश्न-2 कबीर के अनुसार इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?

 कबीर के अनुसार जो धार्मिक सम्प्रदायों के पक्ष विपक्ष के चक्कर में न पड़कर ईश्वर की शक्ति में अपना मन लगाता है और संसार के सभी प्राणियों को समान समझता है। वही सच्चा संत कहलाता है। 


प्रश्न- मनुष्य ईश्वर को कहाँ कहाँ ढूंढता फिरता है ?

मनुष्य ईश्वर को मन्दिर और मस्जिद में, काबा और कैलाश में पूजा-पाठ,जप-तप, नियम और आचार, योग और साधना में ढूंढता है। इसके साथ वैराग्य धारण कर बाहरी आडम्बरों के माध्यम से भी मनुष्य ईश्वर को पाना चाहता है।


प्रश्न-कबीर ने ईश्वर को 'सब स्वाँसों की स्वांस में" क्यों कहा है।

 कबीर कहते हैं कि ईश्वर बाहरी आडम्बरों में न होकर प्रत्येक मनुष्य के अंदर ही निवास करता है। जब तक की स्वाँस चलती है वह जीवित है और उसके अंदर ब्रह्मा का निवास है। अर्थात् सभी जीवित प्राणियों के अंदर ब्रह्मा का ही वास है।


प्रश्न- भाव स्पष्ट करे:-

 आँधी पिछै जो जल बूठा, प्रेम हरिजन भीनां।

 कबीर कहते हैं कि जिस प्रकार आंधी के पश्चात् बरसात होती है, उसी प्रकार ज्ञान प्राप्ति के बाद ईश्वर के प्रेम की वर्षा होती है और भक्त उस रस में डूब कर आनंद मग्न होता है।


कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Hindi Sakhiya avam Shabad Extra Questions- EXTRA QUESTIONS ANSWERS


उत्तर  -कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है? 


उत्तर- कबीरदास ने ईश्वर-प्राप्ति के लिए उन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है जो हमारे समाज में प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। उदाहरण के रूप में, हिंदू ईश्वर को मंदिर अथवा कैलाश पर्वत पर जाकर खोजना चाहते हैं। मुसलमान उसे मस्जिद तथा काबे में जाकर पाना चाहते हैं। कुछ लोग ब्रह्म की प्राप्ति के लिए तरह-तरह के क्रियाकर्म करते हैं। कुछ योग साधना अथवा वैराग्य धारण करके भगवान को पाना चाहते हैं, लेकिन कबीरदास का विश्वास है कि ईश्वर तो प्रत्येक हृदय में निवास करता है। उसे बाह्य आडम्बरों द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है।


प्रश्न - ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?


उत्तर - ज्ञान की आंधी से भक्त के जीवन के सारे भ्रम दूर हो जाते हैं। वह माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है। उसके मन की दुविधा मिट जाती है तथा अज्ञान और विषय-वासनाएँ दूर हो जाती हैं। फलस्वरूप उसके शरीर में कोई छल-कपट नहीं होता। ज्ञान की आंधी आने से ईश्वर के प्रेम और कृपा की वर्षा होने लगती है तथा ज्ञान रूपी सूर्य का उदय हो जाता है, जिससे अज्ञान का अंधकार क्षीण हो जाता है। इस प्रकार साधक के मन में ईश्वर की भक्ति का प्रकाश फैल जाता है।


प्रश्न -  सब विष अमृत कब हो जाता है?


उत्तर- कबीरदास के अनुसार ईश्वर का सच्चा भक्त सदा ईश्वर के सच्चे भक्त को ढूंढ़ता रहता है, परन्तु उसे इस कार्य में सहजता से सफलता नहीं मिलती। लेकिन जैसे ही एक सच्चा ईश्वर भक्त दूसरे सच्चे ईश्वर भक्त से मिल जाता है, वैसे ही सब विष अमृत हो जाता है।


प्रश्न -  कबीर ने संसार को स्वान रूप क्यों कहा है?


उत्तर- कबीर ने संसार को स्वान रूप इसलिए कहा है क्योंकि इस संसार की आदत भी कुत्ते के जैसी ही है। जिस प्रकार किसी हाथी के कहीं से गुजरने पर कुत्ता उसे देखकर भौंकता रहता है, उसी प्रकार किसी सच्चे साधक की साधना को देखकर यह संसार भी उसके बारे में व्यर्थ की बातें करता रहता है।


प्रश्न -  कबीरदास ने मनुष्य को निष्पक्ष भाव से ईश्वर की उपासना करने को क्यों कहा है?


उत्तर- कबीरदास ने मनुष्य को निष्पक्ष भाव से ईश्वर की उपासना करने को इसलिए कहा है क्योंकि जो मनुष्य पक्ष-विपक्ष अथवा मत-मतांतर को आधार बनाकर ईश्वरोपासना करते हैं वे वस्तुतः ईश्वर को भूले हुए रहते हैं। निष्पक्ष भाव की उपासना से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।


प्रश्न - ईश्वर के अनुसार मनुष्य को उसकी खोज कहाँ करने की आवश्यकता नहीं है? और क्यों?


 उत्तर- ईश्वर के अनुसार मनुष्य को उसकी खोज मंदिर, मस्जिद, काबा, कैलाश पर्वत आदि स्थानों तथा बाहरी आडम्बरों,योग-साधना एवं वैराग्य की भावना जैसे माध्यमों में करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह तो सदा उसके पास निवास करता है।

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