Class 12 Hindi Important Questions-Bazar Darshan Short Question Answer बाजार दर्शन Extra Questions
Class 12 Hindi Important Questions-Bazar Darshan Short Question Answer बाजार दर्शन Extra Questions |
NCERT MOST IMPORTANT QUESTION ANSWERS
बाजार दर्शन (जैनेंद्र)
प्रश्न - 'बाजारूपन' से क्या तात्पर्य है ? किस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाजार की सार्थकता किस में है ?
उत्तर – बाजारूपन से तात्पर्य कपट बढ़ाने से है अर्थात् सद्भाव की कमी। सद्भाव की कमी के कारण आदमी परस्पर भाई, मित्र और पड़ोसी आदि को भूल जाता है। मनुष्य केवल सब के साथ कोरे ग्राहक जैसा व्यवहार करता है। उसे कोई भाई, मित्र या पड़ोसी दिखाई नहीं देता है। बाज़ारूपन के कारण मनुष्य को केवल अपना लाभ-हानि ही दिखाई देता है। इस भावना से शोषण भी होने लगता है।
जो व्यक्ति ये जानते हैं कि वे क्या चाहते हैं उन्हें किस वस्तु की आवश्यकता है ऐसे व्यक्ति ही बाज़ार को सार्थकता प्रदान कर सकते हैं। ये लोग कभी भी 'पर्चेजिंग पावर' के गर्व में नहीं डूबते। इन्हीं लोगों को अपनी चाहत का अहसास होता है जिसके आधार पर किए बाज़ार को सार्थकता प्रदान होती है।
प्रश्न - बाजार किसी का लिंग, जाति-धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ उस की क्रय-शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। क्या
उत्तर – हाँ, हम इस बात से सहमत हैं कि बाज़ार किसी का लिंग, जाति-धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, बल्कि वह सिर्फ ग्राहक की क्रय-शक्ति को देखता है। बाज़ार एक ऐसा स्थल है जहाँ पर हर जाति, लिंग, धर्म या क्षेत्र का व्यक्ति जाता हैं। वहाँ किसी को भी धर्म-जाति के आधार पर नहीं पहचाना जाता बल्कि प्रत्येक निम्न, उच्च, अमीर-गरीब की पहचान वहाँ एक ग्राहक के रूप में होती है। इस दृष्टि से इस स्थल पर पहुँच कर प्रत्येक धर्म, जाति मज़हब का मनुष्य एक समान केवल ग्राहक कहलाता है। बाज़ार की नजरमें यहाँ सब उसके ग्राहक होते हैं और वह ग्राहक का कभी धर्म या जाति देखकर व्यवहार नहीं करता बल्कि वह तो सिर्फ़ ग्राहक की क्रय शक्ति देखकर ही उसके साथ व्यवहार करता है। यानी जो मनुष्य जितनी क्रय-शक्ति रखता है बाज़ार उसे उतना ही महत्त्व देता है। उतना ही सम्मान देता है। इस प्रकार बाज़ार एक प्रकार से सामाजिक समता की रचना कर रहा है। जहाँ प्रत्येक धर्म, जाति, मज़हब, अमीर-गरीब, निम्न-उच्च पहुँचकर केवल ग्राहक कहलाता है।
प्रश्न - लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- - हाँ, हम इस विचार से सहमत हैं कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। सामान्यतः देखा जाता है कि जब मनुष्य को किसी वस्तु की अधिक आवश्यकता होती है तो वह बाज़ार में जाकर उस वस्तु को पाना चाहता है। बाज़ार में दुकानदार ग्राहक की मानसिकता को पढ़ लेता है यदि उसे किसी मनुष्य की अत्यधिक आवश्यकता का आभास हो जाए तो वह उस वस्तु के दाम बढ़ा-चढ़ाकर बोलता है। ग्राहक को भी उस वस्तु की अत्यधिक आवश्यकता होती है। इसलिए वह भी उसी विक्रेता के मन चाहे मूल्य में उस वस्तु को खरीद लेता है। इस प्रकार कभी-कभी बाज़ार में मनुष्य की आवश्यकता भी शोषण का रूप धारण कर लेती है।
EXTRA MOST IMPORTANT QUESTION
प्रश्न -बाज़ार किन्हें आमंत्रित करता है और कैसे ?
उत्तर – बाज़ार ग्राहकों को आमंत्रित करता है। वह उन्हें आमंत्रित कर कहता है कि आओ, मुझे लूटो और लूटो। सब कुछ भूल जाओ केवल मुझे देखो। मेरा रूप, सुंदरता केवल तुम्हारे लिए है। यदि तुम खरीदना नहीं चाहते तो देखने भर में कोई नुक्सान नहीं है।
प्रश्न - बाज़ार में कैसा जादू है ? यह कब चलता है ?
उत्तर - बाज़ार में एक रूप का जादू है। यह जादू आँख की राह काम करता है। जब जेब भरी हुई हो और मन खाली हो तब यह जादू पूरी तरह से चल जाता है।
प्रश्न - बाज़ार के जादू के प्रभाव से बचने का क्या उपाय है ?
उत्तर - बाज़ार के जादू के प्रभाव से बचने का उपाय है कि हमें खाली मन होने पर बाज़ार नहीं जाना चाहिए। यदि
मन में लक्ष्य हो तो बाज़ार का प्रभाव व्यर्थ हो जाएगा।
प्रश्न - पैसे की व्यंग्य-शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर -पैसे की व्यंग्य शक्ति बहुत कठोर है क्योंकि इसके नशे में चूर होकर मनुष्य बहुत कठोर स्वभाव वाले बन जाते हैं। उन्हें अपने सामने सब कुछ छोटा प्रतीत होता है।
प्रश्न - बाज़ार को सार्थकता कौन दे सकता है ?
उत्तर- बाज़ार की सार्थकता वही ग्राहक दे सकता है जो अपनी इच्छा और वस्तु को अच्छी तरह से जानता है। जिसे यह अच्छी तरह से ज्ञात हो कि उसे किस वस्तु की ज़रूरत है। उसके प्रयोग के लिए क्या उचित है। जिसे सभी गलत का ज्ञान हो ।
प्रश्न - 'बाज़ार दर्शन' पाठ का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – 'बाज़ार दर्शन' श्री जैनेंद्र कुमार द्वारा रचित एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें गहन वैचारिकता और साहित्य सुलभ लालित्य का सुंदर मेल देखा जा सकता है। यह निबंध उपभोक्तावाद एवम् बाज़ारवाद की मूल अंतर वस्तु को समझाने में बेजोड़ है। जैनेंद्र जी ने इस निबंध के माध्यम से अपने परिचित एवं मित्रों से जुड़े अनुभवों के माध्यम से चित्रित किया है कि बाज़ार की जादुई ताकत कैसे हमें अपना गुलाम बना लेती है। उन्होंने यह भी बताया है कि अगर हम आवश्यकतानुसार बाज़ार का सदुपयोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं लेकिन हम ज़रूरत से दूर बाज़ार की चमक-दमक में फँस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर हमें सदा के लिए बेकार बना सकता है। लेखक ने बाज़ार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र कहा है
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