Saharsh Swikara hai Important Question answer सहर्ष स्वीकारा है class 12
Saharsh Swikara hai Important Question answer सहर्ष स्वीकारा है class 12
NCERT IMPORTANT QUESTION ANSWERS
1. टिप्पणी कीजिए।
गरबीली ग़रीबी ।
भीतर की सरिता ।
बहलाती सहलाती आत्मीयता।
ममता के बादल ।
उत्तर- गरबीली गरीबी– गरबीली ग़रीबी से अभिप्राय है गवली ग़रीबी अर्थात् गर्वयुक्त दरिद्रता ग़रीबी में मनुष्य हताश, निराश, दुःखी हो अपना धैर्य खो बैठता है। जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण सात्विक नहीं रहता लेकिन यह कवि ने ऐसी ग़रीबी का चित्रण किया है जिसमें डूबकर वह हताश, निराश एवं दुःखी नहीं होता बल्कि धैर्य, साहस और स्वाभिमान से उसका मुकाबला करता है। वह इस ग़रीबी में जो कर भी खुश है, आनंदित है। उसे ग़रीबी युक्त जीवर से कोई शोक या वेदना नहीं होती बल्कि वह गर्व से जीवन-यापन करता है इसलिए कवि ने ग़रीबी को गरबीली गरीबी कहा है।
भीतर की सरिता- भीतर की सरिता है आंतरिक सरिता या हृदय रूपी सरिता। यहां कवि ने हृदय को नदी कहा है। जिस प्रकार नदी पवित्र होती है। उसका पानी पवित्र होता है। धाराएं पवित्र होते हैं, किनारे पवित्र होते हैं। जो नदी के साथ संबंधित है, यह सब कुछ पावन है उसी प्रकार हृदय भी पवित्र और उसमें उदित सभी भाव भी पवित्र हैं। जैसे सरिता के साथ मिलकर सब कुछ पवित्र बन जाता है उसी प्रकार कवि के भाव भी हृदय में आकर तथा उससे प्रवाहित होकर पवित्र बन जाते हैं।
बहलाती, सहलाती आत्मीयता- बहलाती, सहलाती आत्मीयता अर्थात् बहलाने, सहलाने वाला अपनापन इससे अभिप्राय यह है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः समाज के साथ उसका अटूट संबंध है। समाज में मनुष्य के अनेक ऐसे सगे-संबंधी या चाहने वाले होते हैं जो दुःख-सुख, राग-विराग प्रत्येक स्थिति में उसको सहयोग देते हैं अर्थात् सुख-दुःख में मनुष्य के कुछ अपने लोग उसको धीरज देते हैं इसलिए मनुष्य पर जब भी दुःख, पीड़ा या निराशा की घड़ी आती है तो उसके आत्मीय जन उसको दुःखों में बहलाते हैं, उसके दुःखों को सहलाने का प्रयास भी करते हैं। उन पर प्रेमरूपी मरहम भी लगाना चाहते हैं। यही वह आत्मीयता है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में बहलाती और सहलाती है। लेकिन प्रस्तुत कविता में कवि जीवन में इतना दुःखी और निराश हो चुका है कि उसे आत्मीय जन की बहलाती, सहलाती आत्मीयता भी सहन नहीं होती।
ममता के बादल - ममता के बादल से अभिप्राय है ममता रूपी बादल या प्रेम के बादल। यहां कवि ने ममता पर बादलों का अभेद आरोप किया है। जिस प्रकार अपनी वर्षा से पृथ्वी को हरा-भरा कर देते हैं और चारों तरफ हरियाली फैला कर सबको सुख प्रदान करते हैं उसी प्रकार प्रेम अपने भावों से प्रेमी जन को आनंद प्रदान कर आनंद से भर देते हैं। उनके जीवन में खुशियाँ भर देते हैं। लेकिन यहां कवि को प्रेम, खुशियां शायद अच्छी नहीं लगतीं इसलिए उन्हें ये ममता के बादलों की कोमलता भी पीड़ादायक प्रतीत होती है।
प्रश्न -बहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है- और कविता के शीर्षक 'सहर्ष स्वीकारा है' में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं? चर्चा कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत कविता में कवि एक ओर तो कहता है कि मैंने सुख-दु:ख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक, राग-विराग आशा-निराशा आदि भावों को सहर्ष स्वीकार किया है लेकिन दूसरी ओर उन्हें आत्मीय जन की बहलाती सहलाती आत्मीयता भी अच्छी नहीं लगती। यहां दोनों भाव एक-दूसरे के विपरीत दिखाई देते हैं लेकिन कवि ने अपने यौवन काल में जब उनके शरीर में शक्ति, विश्वास और स्वाभिमान होगा तब उन्होंने जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थिति का डट कर सामना किया होगा। उन्होंने राग विराग, सुख-दु:ख, आशा-निराशा, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक आदि भावों को सहर्ष अंगीकार किया हो लेकिन जब वे बुढ़ापे की ओर पदार्पण कर रहे होंगे या उनका आत्मविश्वास डगमगा गया होगा या शरीर में शक्ति नहीं होगी तो उन्हें लगा होगा कि उनके शरीर में अब इतनी भी शक्ति नहीं रही। कि वे आत्मीय जन को बहलाती, सहलाती आत्मीयता को भी सहन कर सकें। शायद आत्मिक शक्ति न होने के कारण उनके जीवन पर ऐसी परिस्थितियां आईं जीवन में अनुकूल-प्रतिकूल प्रत्येक भाव को सहर्ष स्वीकार करने वाला व्यक्ति आत्मीय जन की सहानुभूति भी सहन नहीं कर सका तथा उन्होंने स्वयं स्वीकार किया कि अब आत्मीय जन की बहलाती, सहलाती आत्मीयता भी सहन नहीं होती।
EXTRA QUESTIONS ANSWERS
अन्य प्रश्नोत्तर
प्रश्न - काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण का घेरा है, कार्यों का वैभव है।
उत्तर - (i) प्रस्तुत काव्यांश 'आरोह भाग-2' में संकलित कवि गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'सहर्ष स्वीकारा है 'से अवतरित हैं।
(ii) इस काव्यांश में कवि ने जीवन में अपना सब कुछ असीम सत्ता को समर्पित किया है।
(iii) खड़ी बोली भाषा का प्रयोग है।
(ii) रहस्यात्मक भावना दिखाई देती है।
(।।।) मुक्तक छंद का प्रयोग है।
(vi) प्रसाद गुण है।
(vii) अनुप्रास, संदेह, उपमा, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों की छटा है।
(vii) बिंब योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है
(ix) भावपूर्ण शैली का प्रयोग है।
प्रश्न - अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है,
सहर्ष स्वीकारा है।
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'आरोह भाग-2' में संकलित कवि 'गजानन माधव मुक्तिबोध' द्वारा 'सहर्ष स्वीकारा है' नामक कविता से ली गई हैं। इनमें कवि ने जीवन में सुख-दुःख, हर्ष-विषाद, संघर्ष-अवसाद आदि भावों को सहर्ष स्वीकार करने की प्रेरणा दी है।
कवि उस विशिष्ट सत्ता को संबोधन करते हुए कहता है कि अब तक मेरी जिंदगी में जो राग-विराग, हर्ष-विवाद, सुख-दु:ख, आशा-निराशा, उठा-पटक आदि जो भी कुछ आया उन सबको मैंने खुशी-खुशी स्वीकार किया है। आज तक मैंने अपने जीवन में अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों को बिना किसी विवाद के स्वीकार कर जीवन यापन किया है। हे प्रभु ! अपनी जिंदगी में मैंने जो कुछ आज तक स्वीकार किया है, आज तक जीवन में जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें भी प्रिय लगने वाला है। कवि का अभिप्राय है कि मैंने आज तक जीवन में जो कुछ भी पाया है। वह सब तुम्हारे अनुकूल है तुम्हें प्रिय लगने वाला है। अर्थात् जो कुछ भी तुमने मुझे प्रदान किया है उसको मैंने सहर्ष स्वीकार कर अपनाया है।
प्रश्न - 'सहर्ष स्वीकारा है' कविता के माध्यम से कवि ने क्या प्रेरणा प्रदान की है ?
उत्तर - सहर्ष स्वीकारा है' कविता 'गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित है। इसके माध्यम से कवि ने मानव को जीवन में सुख-दुःख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक, हर्ष-विषाद, राग-विराग आदि भावों को सहर्षभाव से स्वीकार करने की प्रेरणा की है।
प्रश्न -'सहर्ष स्वीकार है' कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – 'सहर्ष स्वीकारा है' कविता 'गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'भूरी-भूरी खाक धूल' संग्रह में संकलित है। इसमें कवि ने जीवन के सभी सुख-दुःख, हर्ष-विषाद, संघर्ष-अवसाद, राग-विराग आदि के सम्यक-भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है। मनुष्य को इन्हें खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए। इसके साथ-साथ यह कविता हमें उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता की ओर भी संकेत करती है जिससे कवि को जीवन में प्रेरणा प्रदान की है। जिसकी प्रेरणा से उसने समस्त भावों को सहर्ष भाव से खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया है।
प्रश्न - कवि को पाताली अंधेरे की गुफाओं में भी किसका सहारा प्रतीत होता है और क्यों ?
उत्तर – कवि को पाताली अंधेरे की गुफाओं में अपनी विशिष्ट सत्ता या प्रिय का सहारा ही प्रतीत होता है। वह इसलिए क्योंकि उसके जीवन में जो कुछ भी उसका है या होना संभव है वह सब उसके विशिष्ट प्रिय के कारण ही है। वह सब उसके प्रिय के कारण ही प्राप्त है।
प्रश्न - 'ममता के बादल की मँडराती कोमलता भीतर पिराती है' भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – यह अवतरण गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'सहर्ष स्वीकारा है' नामक कविता से अवतरित है। कवि अपने प्रिय को संबोधन कर कह रहा है कि अब उसके जीवन का वह पड़ाव आ पहुँचा है कि जो ममता रूपी कोमलता कभी उसके हृदय को स्पर्श करते ही आनंद विभोर कर देती थी, जिसमें डूबकर वह आनंदमग्न हो सब कुछ भुला देता था। अब वह भी उससे सहन नहीं होती। वह उसके हृदय को आनंद की बजाय पीड़ा पहुँचाती है। वह उसे बादलों के मंडराने के समान कठोर प्रतीत होती है।
प्रश्न - बहलाती-सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है' काव्य-पंक्ति में निहित व्यंजना का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – आत्मीयता वह भाव होता है जो हृदय को स्पर्श कर उसे आनंद एवं खुशी प्रदान करती है किंतु यहाँ कवि के जीवन में वे प्रतिकूल परिस्थितियाँ आ गई हैं कि उसे आत्मीय जन भी अच्छे नही लगते और न ही उनकी बहलाने-सहलाने वाली आत्मीयता उन्हें भाती है। अब कवि को केवल अपने प्रिय को अंगीकार करना चाहता है। वह उसके साथ एक होने की कामना करता है।
प्रश्न - कवि पाताली अंधेरे की गुफाओं में लापता क्यों होना चाहता है ?
उत्तर–कवि पाताल की अंधेरी गुफाओं और गड्ढों में लापता हो जाना चाहता है। वह धुएँ के बादलों में बिल्कुल छिप जाना चाहता है जिससे उसके प्रिय के अलावा कोई अन्य उसे पहचान न सके।
प्रश्न - कवि के प्रिय के चेहरे की उपमा किससे की है ? कैसे?
उत्तर–कवि ने प्रिय के चेहरे की उपमा आकाश में मुस्कुराते चंद्रमा से की है। जिस प्रकार मुस्कराता चंद्रमा घर पर अपनी शीतल चांदनी सारी रात बिखेरता रहता है ठीक उसी प्रकार प्रिय का चेहरा कवि के प्रति खिला रहता है।
प्रश्न - कवि किससे दंड की कामना करता है और क्यों ?
उत्तर – कवि अपने विशिष्ट प्रिय से दंड की कामना करता है। वह इसलिए इस दंड की कामना करता है क्योंकि वह अपने प्रिय को भूलने की भूल कर बैठा है।
प्रश्न - कवि अपने विशिष्ट प्रिय से कैसा दंड पाना चाहती है ?
उत्तर – कवि अपने विशिष्ट प्रिय से कठोर दंड को पाना चाहता है। ताकि वह ऐसी भूल पुनः न दोहराए। वह अपने जीवन में चारों ओर ठीक वैसा ही अंधकार ग्रहण करना चाहता है जैसा गहन अंधकार दक्षिण ध्रुव पर अमावस्या की रात में छाया रहता है।
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