Namak ka Daroga Class 11 Extra Questions and Answers | नमक का दारोगा Class 11 Important Questions

Namak ka Daroga Class 11 Extra Questions and Answers | नमक का दारोगा Class 11 Important Questions

Namak ka Daroga Class 11 Extra Questions and Answers | नमक का दारोगा Class 11 Important Questions



                        

Namak Ka Daroga NCERT MOST IMPORTANT QUESTION

नमक का दारोगा (मुंशी प्रेमचंद)


प्रश्न  - कहानी का कौन-सा पात्र आप को सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों ?

उत्तर –‘नमक का दारोगा' कहानी में प्रमुख पात्र दो ही हैं-मुंशी वंशीधर और पंडित अलोपीदीन । अन्य सभी पात्र तो

कहानी को गति और स्पष्टता प्रदान करने वाले हैं। दोनों प्रमुख पात्रों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं जो कहानी के पाठकों

को अपनी ओर आकृष्ट करती हैं। पंडित अलोपीदीन दौलतमंद  हैं, मृदुभाषी हैं, वाक् पटु हैं, दूर-दृष्टि के स्वामी हैं, दौलतमंद और समाज में इज्जत प्राप्त  हैं ।लेकिन जो गुण मुंशी वंशीधर में हैं, वे पंडित अलोपीदीन में भी नहीं हैं। इसलिए मुझे मुंशी वंशीधर ने सबसे अधिक प्रभावित किया है। वह निर्धन परिवार से संबंधित था और उसे अपने घर की हालत अच्छी तरह से मालूम थी। उसके पिता रिश्वत और बेईमानी के पक्षधर थे। उनकी दृष्टि में वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। इसलिए नौकरी करने वाले को ऊपरी आमदनी की ओर ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने यही शिक्षा अपने पुत्र वंशीधर को दी थी, लेकिन पुत्र ने जिस ईमानदारी और कर्त्तव्य निष्ठा का परिचय दिया था वह बहुत ही सराहनीय और अनुकरण करने योग्य है। अलोपीदीन के द्वारा दी जाने वाली चालीस हज़ार की रिश्वत भी उसने ठुकरा दी थी, जिससे उसके घर की कंगाली दूर हो सकती थी। उसने लोगों का विरोध झेला, नौकरी से हाथ धोए,अपमान सहा पर अपनी ईमानदारी से टस-से-मस नहीं हुआ और जब पंडित अलोपीदीन ने उसके घर आकर उसे स्थायी मैनेजर नियत किया तो उसने शालीनता और भद्रता का अद्भुत परिचय दिया। वह कठोर दारोगा था तो धर्मनिष्ठ व्यक्ति भी।

 चाहे धन का महत्त्व है, पर मानवोपयोगी मूल्यों का महत्त्व उससे भी बढ़कर है। वह ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ था। कर्त्तव्य से बढ़कर उसके लिए कुछ भी नहीं था। इन्हीं गुणों के कारण वंशीधर सभी पाठकों के मन पर अपनी अनूठी छाप छोड़ता है।


प्रश्न - 'नमक का दारोगा' कहानी में पंडित अलोपीदीन व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं ?

उत्तर - पंडित अलोपीदीन 'नमक का दारोगा' कहानी के प्रमुख पात्र हैं। उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलू सामने आते हैं पर उनमें से प्रमुख दो पहलू हैं


 निपुण व्यवसायी -  पंडित अलोपीदीन धन के महत्त्व को भली-भाँति समझने वाला अति कुशल व्यापारी था। वह जानता था कि किस व्यक्ति से किस भाषा में बोल कर काम निकलवाया जा सकता है। किसी भी सफल व्यापारी का महत्त्वपूर्ण गुण मीठी जुबान है और पंडित अलोपीदीन मीठी जुबान में बोलने और व्यवहार करने में कुशल था। उसे धन लेने और देने का ढंग आता था। वह अपने प्रत्येक कार्य को किसी भी तरह  करवा लेता था। जब वंशीधर किसी भी अवस्था में रिश्वत लेकर उसका काम करने को तैयार नहीं हुआ था तो उसने अदालत के माध्यम से अपनी रक्षा कर ली थी। केवल अपनी रक्षा ही नहीं की थी, अपितु वंशीधर को नौकरी से निकलवा भी दिया था। वह हर वस्तु का मोल लगाना जानता था।


2. दूर-दृष्टि का स्वामी-  पंडित अलोपीदीन बहुत दूर की सोचता था। दारोगा वंशीधर ने गैर-कानूनी कार्य के लिए अलोपीदीन को गिरफ्तार किया था। उसे चालीस हज़ार रुपए रिश्वत भी अपने कर्त्तव्य से डिगा नहीं पाई थी। अलोपीदीन अदालत से छूट गया था, पर वह वंशीधर की कर्त्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी पर मन ही मन मुग्ध हो गया था। अपनी दूर दृष्टि के कारण उसने पहचान लिया था कि वंशीधर सामान्य दारोगा नहीं था। वह परिश्रमी, ईमानदार, निष्ठावान् और कर्त्तव्य पर अडिग रहने वाला आदमी था। ऐसा व्यक्ति सरलता से प्राप्त नहीं हो सकता। इसीलिए वह स्वयं उसके घर पहुँचा था और उसे अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त कर दिया था। जिस व्यक्ति ने उसे गिरफ्तार किया था उसी को उसने अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी थी। यदि उसके स्थान पर कोई सामान्य इंसान होता तो उसे इतना ऊँचा ओहदा देने की जगह उससे बदला लेने की बात सोचता।'



प्रश्न  - लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।' वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है ?

उत्तर- मुंशी वंशीधर के पिता द्वारा अपनी पुत्रियों के लिए प्रयुक्त यह वाक्य परिवार में उनकी हीन और उपेक्षा की स्थिति को प्रकट करती है। जिस प्रकार घास-फूस की वृद्धि और सुरक्षा की कोई परवाह नहीं करता। उसे खाद-पानी देने की कोई आवश्यकता कभी अनुभव नहीं की जाती पर फिर भी वह बढ़ता ही जाता है, उसी प्रकार परिवार में लड़कियाँ भी उपेक्षित रहकर युवावस्था की ओर तेजी से बढ़ती जाती हैं।


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प्रश्न  -पंडित अलोपीदीन के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर - दातागंज के पंडित अलोपीदीन ऐसे अनेक गुणों से संपन्न व्यक्ति थे जो सामान्य लोगों में दिखाई नहीं देते। उन्हीं

गुणों के कारण वे नगर के ही नहीं अपितु पूरे समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ

निम्नलिखित हैं


1. अति धनी एवं सम्मान प्राप्त  -  पंडित जी अपने क्षेत्र के अति संपन्न एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, जिस कारण उन्हें छोटे

बड़े सभी लोग जानते थे। जब उन्हें नमक-कांड में गिरफ्तार किया गया तो लोगों ने उन्हें कोसा और बुरा-भला कहा, लेकिनजब वे अदालत के द्वारा छोड़ दिए गए. लोगों ने उन्हें वाहवाही दी और मुंशी वंशीधर को कोसा।


2. चतुर व्यवसायी– पंडित अलोपीदीन व्यवसायी थे, लेकिन वे सीधे-सादे सरल स्वभाव वाले व्यवसायी नहीं थे। वे

अपना कोई भी काम निकलवाने के लिए दाँव-पेंच लगाना जानते थे। नमक-कांड में वे गिरफ्तारी से छूट जाने के लिए

चालीस हज़ार तक रिश्वत देने को तैयार थे तो अदालत में वकीलों आदि को उन्होंने खरीद ही लिया था। अपराधी होने पर भी वे अपराधी सिद्ध नहीं हुए थे। उन्हें गिरफ्तार करने वाले मुंशी वंशीधर को ही अदालत की नसीहत सुननी पड़ी थी और बाद में अपनी नौकरी से हाथ भी धोना पड़ा था।


3. मृदुभाषी – पंडित अलोपीदीन मृदुभाषी थे। वे अपनी जुबान से काम निकलवाना जानते थे। गिरफ्तारी के समय भी

उनकी जुबान पर कड़वाहट या धमकी नहीं थी और बाद में मुंशी वंशीधर को अपना मैनेजर बनाते समय भी उनकी जुबान

से रस टपक रहा था।


4. दूर-दृष्टि - पंडित जी बहुत दूर की सोचने वाले व्यक्ति थे। वे भली-भाँति समझ गए थे कि मुंशी वंशीधर सच्चा,

ईमानदार और धर्मनिष्ठ व्यक्ति था, जो किसी भी लालच में नहीं फँस सकता था। वह कर्त्तव्यनिष्ठ और परिश्रमी था। उस

जैसा काम करने वाला ढूँढ़ने पर भी नहीं मिल सकता था। जो कर्त्तव्य-भावना से पूर्ण चालीस हज़ार जैसी राशि को ठुकरा

सकता है, अपनी दारोगा की नौकरी त्याग सकता वह किसी भी अवस्था में बेईमानी नहीं कर सकता। इसीलिए उन्होंने

 वंशीधर को  ऊँची तनख्वाह पर अपनी जायदाद का मैनेजर नियुक्त कर दिया था। कोई भी सामान्य व्यक्ति कभी ऐसा करने की बात सोच भी नहीं सकता था, जैसे पंडित जी ने कर दिया था।


5. शान-शौकत में विश्वास -  पंडित जी संपन्न थे और उन्हें शान-शौकत और रईसी जीवन में गहरा विश्वास था। उनका पहनावा, शौक, बैलगाड़ियों की सजावट आदि इसी के परिचायक हैं।


 प्रश्न . मुंशी वंशीधर की चारित्रिक विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - मुंशी वंशीधर उस व्यक्तिगत विशिष्टता के स्वामी थे, जैसा आज के युग में चिराग(दीपक) लेकर ढूँढ़ने पर भी दिखाई नहीं देता। उनकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।


1. निर्धन एवं अभावग्रस्त -  मुंशी जी का परिवार अभावग्रस्त था। वे ऐसे परिवार से संबंधित थे जिसकी आय का साधन केवल उनके पिता थे जो किसी प्रकार खींचतान कर घर की गाड़ी खींच रहे थे। बहिनों की जिम्मेदारी उन पर थी और वे स्वयं भी विवाहित थे, पर उनके पास थोड़ी-सी पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था।



2. दृढ़ निश्चयी और कर्मठ-  मुंशी जी सुनते सब की थे पर करते अपने मन की ही थे। उनके पिता ने उन्हें दुनियादारी और रिश्वत के महत्त्व का पाठ पढ़ाया था, जो उन्होंने ध्यान से सुना अवश्य था, पर किया वही जो उनके मन को अच्छा लगा था। उन्होंने रिश्वत नहीं ली और अपना सिर नहीं झुकने दिया, चाहे उन्हें इस के लिए अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी थी। रात के समय जब सभी सो रहे थे तब भी वे अपनी पिस्तौल लेकर वहाँ चले गए थे जहाँ पंडित जी की नमक से भरी बैलगाड़ियाँ जा रही थीं।


3. कर्त्तव्यनिष्ठ एवं कठोर-  मुंशी जी कर्त्तव्यनिष्ठ और कठोर थे। वे जानते थे कि पंडित अलोपीदीन क्या थे और क्या कर सकते थे, पर वे अकेले ही उनके और उनके धन के सामने डट गए थे। अदालत में भी उन्होंने अकेले ही डटने का साहस किया था।


4. पारखी-  मुंशी जी पारखी दृष्टि रखते थे। जब पंडित जी उसके घर आए थे तो वे पारखी दृष्टि से यह जान गए थे कि उनसे समझदार स्वामी उन्हें कहीं नहीं मिलेगा। वे सरकारी विभागों की स्थिति को परख गए थे।





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