Class 12 Hindi Important Questions-Usha Class 12 Extra Questions उषा

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Usha -NCERT MOST IMPORTANT QUESTION

उषा (शमशेर बहादुर सिंह)

प्रश्न  - कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि 'उषा' कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है?


उत्तर–प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह ने गतिशील बिंब योजना का प्रयोग करते हुए गाँव की सुबह का सुंदर शब्द चित्र प्रस्तुत किया है। बहुत सुबह पूर्व दिशा में सूर्य दिखाई देने से पहले वह नीले शंख के समान दिखाई दे रहा था। उसका रंग ऐसा लग रहा था जैसे किसी गाँव की महिला ने चूल्हा जलाने से पहले राख से चौका पोत दिया था। उसका रंग गहरा था। कुछ देर बाद हल्की-सी लाली ऐसे दिखाई दी जैसे काली सिल पर ज़रा-सा लाल केसर डाला हो और फिर उसे धो दिया हो या किसी ने स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दी हो। आकाश के नीलेपन में सूर्य ऐसे प्रकट हुआ जैसे नीले जल में किसी का गोरा सुंदर शरीर झिलमिलाता हुआ प्रकट हो रहा हो। लेकिन सूर्य के दिखाई देते ही यह सारा प्राकृतिक सौंदर्य मिट गया। कवि के द्वारा प्रस्तुत बिंब योजना गतिशील है और उससे पल-पल बदलते गाँव के प्राकृतिक दृश्यों की सुंदरता प्रकट हो पाई है।


प्रश्न  -भोर का नभ

         राख से लीपा हुआ चौका

         ( अभी गीला पड़ा है)


उत्तर – भोर के नभ का रंग नीला होता है, पर साथ ही उसमें सफ़ेदी भी बिखरी होती है। राख से लीपे हुए चौके - में भी नीलिमा अथवा श्यामलता के साथ सफेदी का मिश्रण होता है। यही कारण है कि कवि ने भोर के नभ को राख से लीपे चौके की संज्ञा दी है। राख के ताज़े लीपे चौके में नमी भी होती है। भोर के नभ में भी यह गीलापन है।




Usha -MOST IMPORTANT EXTRA QUESTIONS ANSWERS



प्रश्न -  सूर्योदय से उषा का कौन-सा जादू टूट रहा है ? 


उत्तर – उषा का उदय आकर्षक होता है। नीले गगन में फैलती प्रथम सफ़ेद लाल प्रातःकाल की किरणें हृदय को अचानक अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। उसका बरबस आकर्षित करना ही जादू है। सूर्य उदय होते ही यह भव्य प्राकृतिक दृश्य सूर्य की तरुण किरणों में समाप्त हो जाता है। उसका सम्मोहन और प्रभाव नष्ट हो जाता है।


 प्रश्न -  भोर के नभ को राख से लीपा गया चौका क्यों कहा गया है ?


उत्तर - भोरके नभ का रंग नीला होता है पर साथ ही उसमें सफेदी भी होती है राख से लेते हुए चौके में भी नीलिमा और श्यामलता के साथ सफेदी मिली होती है यही कारण है कि कवि ने भोर के नभ को राख से लीपे चूल्हे की संज्ञा दी है।



प्रश्न -  कविता में प्रयुक्त उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार छांटिए । 


 उत्तर – उपमा – 

 (i) बहुत नीला, राख जैसे।

 (ii) काली सिल ज़रा-से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो।


  उत्प्रेक्षा – 

(i) स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने।

(ii) नील जल में या किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो।

(।।।)प्रातः नभ था बहुत नीला, शंख जैसे मल दी हो किसी ने।


 प्रश्न - 'उषा' कविता में प्रातःकालीन आकाश में पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथनों को स्पष्ट कीजिए।


उत्तर – पवित्रता – जिस स्थान पर मंगल कार्य करना हो, उसे राख से लीप कर पवित्र बना लिया जाता है। लीपे हुए चौके के समान ही प्रातःकालीन आकाश भी पवित्र है।


निर्मलता – कालापन मलिन अथवा दोषपूर्ण माना जाता है। उसको निर्मल बनाने के लिए उसे जल आदि से धो लेते हैं। जिस प्रकार काली सिल पर लाल केसर रगड़ने से तथा बाद में उसे धोने से उस पर झलकने वाली लालिमा उसकी निर्मलता की सूचक बन जाती है, उसी प्रकार प्रातःकालीन आकाश भी हल्की लालिमा से युक्त होने के कारण निर्मल दिखाई देता है।


उज्ज्वलता-  जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीर उज्ज्वल चमक से युक्त तथा मोहक लगता है उसी प्रकार प्रातः कालीन आकाश भी उज्ज्वल प्रतीत होता है।



प्रश्न - 'उषा' कविता के आधार पर प्रातःकालीन सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।

                       अथवा


सूर्योदय से पहले आकाश में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं ?


                           अथवा


'उषा' कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - प्रातः काल का दृश्य बड़ा मोहक होता है। उस समय श्यामलता, श्वेतिमा तथा लालिमा का सुंदर मिश्रणदिखाई देता है। रात्रि की नीरवता समाप्त होने लगती है। प्रकृति में नया निखार आ जाता है। आकाश में स्वच्छता, निर्मलता तथा पवित्रता  दिखाई देती है। तालाबों तथा नदियों के स्वच्छ जल में पड़ने वाले प्रतिबिंब बड़े आकर्षक तथा मोहक दिखाई देते हैं। आकाश लीपे हुए चौके के समान पवित्र, हल्की लाल केसर से युक्त सिल के समान तथा जल में झलकने वाली गोरी देह के समान दिखाई देता है।


प्रश्न -  'उषा' कविता के आधार पर अपनी कल्पना में संध्या के सौंदर्य का चित्रण कीजिए। 


उत्तर - जिस प्रकार सर्योदय से पहले का दृश्य बड़ा आकर्षक होता है, उसकी प्रकार संध्या के समय सूर्य के डूबने से पहले का दृश्य भी बड़ा मोहक होता है पक्षी अपने पंख फैला कर अपने अपने घोंसलों की ओर उड़ रहे होते हैं ।चरवाहे अपने पशुओं को लेकर घरों की ओर लौट रहे होते हैं ।उस समय आकाश में  लालिमा और श्यामलता का मिश्रण दिखाई देता है।



प्रश्न -  प्रातः नभ था- बहुत नीला, शंख जैसे

         भोर का नभ, राख से लीपा हुआ चौका

         ( अभी गीला पड़ा है।)

           बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से

           कि जैसे धुल गई हो स्लेट पर या लाल खड़िया

           चाक मल दी हो किसी ने।      

           -इन पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।


उत्तर – प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्रातःकालीन सुंदरता को बड़े आकर्षक रूप में चित्रित किया है। कविता में कल्पना तत्व की प्रधानता है। कवि ने सूर्योदय से पूर्व वातावरण में व्याप्त नीलिमा को उभारने के लिए विभिन्न उपमा दी हैं। कवि ने प्रातः काल के क्षणिक सौंदर्य को अपनी तीव्र अनुभूति के माध्यम से सरल, सरस तथा चित्रात्मक भाष में व्यक्त किया है। उपमा तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग है। प्रभातः कालीन आकाश का सहज चित्रण किया गया है। 


प्रश्न  - निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए        


         नील जल में या

         किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो।

           और

         जादू टूटता है इस उषा का अब : सूर्योदय हो रहा है।


उत्तर – इन पंक्तियों में कवि ने सूर्योदय से पूर्व के आकाश की शोभा के चित्रण में बड़ी सूक्ष्म दृष्टि तथा मौलिक कल्पना का परिचय दिया है। आकाश में उभरने वाले क्षणिक रंग का बड़ा सजीव चित्रण है। नीले जल में झिलमिलाती गोरी देह का शब्द-चित्र पाठक पर जादू का-सा प्रभाव डालता है। उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग है। सरस तथा मधुर शब्दावली का प्रयोग है। नीला जल नीले आकाश का तथा झिलमिला देह उगते सूर्य का प्रतीक है। नीले आकाश की उज्ज्वलता का भी भावपूर्ण चित्रण है।


 प्रश्न  - कवि ने सूर्योदय से पीले आकाश को राख से लीपे हुए गीले चौके के समान क्यों कहा है? 


उत्तर लीपा हुआ -सूर्योदय से पहले आकाश में कुछ पीलापन होता है। उस समय वह मटमैला-सा प्रतीत होता है। राख से का भी जब तक गीला होता है, मटमैला-सा प्रतीत होता है। अतः आकाश को लीपे हुए चौके की संज्ञा देना उपयुक्त प्रतीत होता है।


प्रश्न  -  सिल और स्लेट का उदाहरण देकर कवि ने आकाश के रंग के बारे में क्या कहा है ? 


उत्तर – कवि ने आकाश के रंग के बारे में सिल का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया है कि यह आकाश ऐसा लगताहै जैसे किसी काली सिल पर केसर धुल-सी गई हो। स्लेट का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि आकाश ऐसा लगता है जैसे किसी ने स्लेट पर लाल रंग की खड़िया मिट्टी मल दी हो। इस उदाहरण द्वारा कवि ने श्वेतिमा तथा कालिमा के समन्वय का वर्णन कर आकाश की शोभा का वर्णन किया है।

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