Class 12 Hindi Important Questions-Pahalwan ki Dholak Short Question Answer | पहलवान की ढोलक
Class 12 Hindi Important Questions-Pahalwan ki Dholak Short Question Answer | पहलवान की ढोलक |
Pahalwan ki Dholak -NCERT MOST IMPORTANT QUESTION
पहलवान की ढोलक (फणीश्वर नाथ रेणु)
प्रश्न - लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं यह ढोल है ?
उत्तर – लुट्टन सिंह पहलवान ने ऐसा इसलिए कहा होगा कि उसका गुरु कोई पहलवान नहीं यही ढोल है क्योंकि उन्होंने किसी पहलवान से कुश्ती लड़ना नहीं सीखा था और न ही उसका लक्ष्य एक पहलवान बनना था। वह तो बचपन में गाय चराता हुआ गायों की धार का गर्म दूध पीया करता था। इसी से शरीर से हट्टा-कट्टा हो गया था। वह लोगों से बदला लेने के लिए कसरतें किया करता था। जब श्यामनगर में वह मेला देखने गया तो वहाँ के दंगल में ढोल बज रहा था पहलवान कुश्ती कर रहे थे। तो अचानक ही पहलवान से लड़ने के लिए अखाड़े में कूद पड़ा और अंत में उसने निरंतर ढोल से प्रेरणा लेते हुए उस प्रसिद्ध चाँद सिंह पहलवान को हरा दिया।
प्रश्न - गाँव में महामारी फैलने और बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा ?
उत्तर— गाँव में महामारी फैलने तथा बेटों के देहांत के बावजूद भी लुट्टन सिंह पहलवान ढोल इसलिए बजाता रहा
क्योंकि जब गाँव में महामारी फैली तो सारा गाँव हैजे और मलेरिये की चपेट में था। गाँव में चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। घर के घर खाली हो गए थे। रात में चारों ओर सन्नाटा छा जाता था। उसी रात के सन्नाटे को तोड़ने तथा लोगों में जीने की उमंग पैदा करने के लिए वह ढोल बजाता था।
जब उसके दोनों बेटे काल की चपेट में आ गए तो वे असह वेदना से बिलखते हुए अपने बाबा को कहने लगे कि बाबा ! उठा-पटक दो वाला ताल बजाओ अर्थात् चटाक-चट-धा, चटाक-चट धा ताल बजाओ। जिसे वह सारी रात बजाता रहा। सुबह होते ही उसके दोनों बेटे मृत्यु को प्राप्त हो गए। अतः अपने बेटों की अंतिम इच्छा को पूर्ण करने के लिए बेटों के देहांत के बावजूद भी लुट्टन सिंह पहलवान ढोल बजाता रहा।
प्रश्न - ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था ?
उत्तर - ढोलक की आवाज़ पूरे गाँव वालों में धीरज, साहस और ताजगी प्रदान करती थी। रात् के सन्नाटे के सामने चुनौती पैदा कर देती थी। जब पूरा गाँव महामारी के कारण मलेरिये और हैजे से पीड़ित होकर अधमरा, निर्बल और निस्तेज हो गया था तब इस भयंकर वातावरण में ढोलक की आवाज़ गाँव वालों को संजीवनी प्रदान किया करती थी।
बीमार और दुखी लोगों में संजीवनी शक्ति भरती थी। बच्चे, जवान और बूढ़ों की आँखों के आगे दंगल का दृश्य पैदा कर देती थी। ढोल की आवाज़ सुनकर कमजोर रगों में बिजली सी दौड़ पड़ती थी। मरते हुए प्राणियों को भी आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी लोग मृत्यु से भी नहीं डरते थे। इसे सुनकर लोगों के मन में जीने की नई उमंग जाग जाती थी।
प्रश्न - महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था ?
उत्तर - सूर्योदय दृश्य - महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय होते ही रोते-चिल्लाते, दुःखी होते हुए अपने अपने घरों से बाहर निकलते थे। वे महामारी की भेंट चढ़ रहे पड़ोसियों और परिचित लोगों के घर-घर जाकर हिम्मत बंधाते थे। जिस माँ का बच्चा मलेरिये और हैजे का शिकार हो जाता तथा किसी का पति मर जाता तो गाँव वाले उनको हौसला देने का प्रयास करते थे। घर में पड़े मुर्दों को बिना कफ़न में ही नदी की भेंट चढ़ा दिया करते थे।
सूर्यास्त दृश्य — गाँव में सूर्यास्त होते ही सब तरफ सन्नाटा छा जाता था। गाँव के लोग भयभीत होकर अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते थे। रात्रि के गहन अंधकार में झोंपड़ियों से बोलने तक की भी आवाज़ बाहर नहीं आती थी, यहाँ तक कि रात की विभीषिका के कारण उनके बोलने की शक्ति भी कमजोर हो जाती थी। यदि समीप किसी माँ का बेटा मर जाता था तो उसे अंतिम बार माताओं को बेटे कहने की भी किसी में हिम्मत भी नहीं होती थी। केवल रात की इस आपदा को पहलवान की ढोलक चुनौती देती रहती थी। वह सारी रात उसको बजाता रहता था। यही ढोलक की आवाज़ इन अधमरे गाँव वालों में संजीवनी देने का कार्य करती थी। इसी आवाज़ से उनकी शक्तिहीन रगों में बिजली सी दौड़ जाती थी।
प्रश्न. आशय स्पष्ट करें
आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश से आशय यह है कि मलेरिया और हैजे के फैलने से संपूर्ण वातावरण बैचेन था। चारों ओर भयानक अंधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था। ऐसे भयानक वातावरण में आकाश से टूटकर यदि कोई तारा भावुक होकर पृथ्वी पर जाना भी चाहता था तो इस आपदा पूर्ण वातावरण से त्रस्त उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही कमजोर हो जाती थी। अमावस्या के गहन अंधकार में आकाश से टूटने वाले तारों का प्रकाश भी पृथ्वी तक दिखाई नहीं देता था। ऐसी स्थिति में आकाश के अन्य तारे उस तारे की भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिला कर हँस पड़ते थे।
Pahalwan ki Dholak-MOST IMPORTANT QUESTION ANSWERS
परीक्षा उपयोगी अन्य प्रश्न
प्रश्न - लुट्टन सिंह पहलवान का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर –'पहलवान की ढोलक' फनीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित एक आंचलिक कथा है। लुट्टन सिंह इस कथा का केंद्र बिंदु है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) व्यक्तित्व – लुट्टन सिंह पहलवान का वास्तविक नाम लुट्टन सिंह था। पहलवान तो वह बाद में प्रसिद्ध हुआ। वह लंबा चोगा तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बांधता था। लुट्टन सिंह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। उसके माता पिता नौ वर्ष की अवस्था में उसको अकेला छोड़कर मर गए थे। सौभाग्यवश उसकी बचपन में ही शादी हो गई थी।
(ii) साहसी– लुट्टन सिंह पहलवान अत्यंत साहसी पुरुष था। वह अत्यंत सुडोल और हट्टा-कट्टा था। वह प्रत्येक परिस्थिति का डट कर सामना किया करता था। वह कभी भी घबराता नहीं था। अपने साहस के बल पर उसने प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को हरा दिया था। महामारी फैलने के कारण जब रात्रि की आपदा से सारा गाँव शिशुओं की तरह थर-थर कांपता था तब लुट्टन सिंह अकेला सारी रात ढोलक बजाया करता था। यह उसके साहस का प्रमाण है।
(iii) भाग्यहीन - लुट्टन सिंह पहलवान साहसी होने के साथ-साथ भाग्यहीन भी था। बचपन में ही नौ वर्ष की अवस्था में उसको छोड़कर उसके माता-पिता चल बसे, उसकी सास ने उसको पाला-पोसा। बाद में उसके दोनों बेटे भी काल का शिकार हो गए। जिस वीरता के बलबूते वह श्यामनगर का राज-पहलवान बना था। राजा की मृत्यु के बाद उसको श्यामनगर भी छोड़ना पड़ा।
(iv) निडर- लुट्टन सिंह एक निडर पुरुष था। जब सारा गाँव महामारी के कारण भयभीत होकर अपनी झोंपड़ियों में गुम हो जाता था तब अकेला लुट्टन सिंह रात्रि के सन्नाटे में निडरता से सारी रात अपना ढोल बजाया करता था। श्यामनगर के दंगल में भी वह चाँद सिंह पहलवान के साथ लड़ते हुए नहीं डरा। राजा और लोगों के मना करने पर भी उसने निडरता से चाँद सिंह के साथ कुश्ती की तथा अंत में उसको हराया। इस शेर के बच्चे को दंगल में हराना ही उसका निडरता का उदाहरण है।
(v) सहयोगी- लुट्टन सिंह पहलवान होने के साथ-साथ एक मानवीय संवेदनशील व्यक्ति था। वह दुःख-सुख में सभी गाँव वालों का साथ देता था। महामारी में जब गाँव में कहर मच रहा था तब वह लोगों में जीने की उमंग प्रदान करने के लिए ही रात में ढोल बजाया करता था तथा दिन में घर-घर जाकर अपने सभी पड़ोसियों और गाँव वालों का हाल-चाल पछकर धैर्य देता था।
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