Manviya Karuna ki Divya Chamak Short Question Answers-Class 10 Hindi Important Questions

Manviya Karuna ki Divya Chamak Short Question Answers-Class 10 Hindi Important Questions

Manviya Karuna ki Divya Chamak Short Question Answers-Class 10 Hindi Important Questions
Manviya Karuna ki Divya Chamak Short Question Answers-Class 10 Hindi Important Questions


Manviya Karuna ki Divya Chamak Short Question Answers-Class 10 Hindi Important Questions - NCERT IMPORTANT QUESTION

प्रश्न 1. फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?


उत्तर- जिस प्रकार देवदार का पेड़ लंबा-चौड़ा और सघन होता है और सबको ठण्डी छाया देता है। उसी प्रकार फादर बुल्के सबको आशीर्वाद देते थे। वे अपने सब साथियों के घरों में उत्सवों और संस्कारों पर पुरोहित के समान उप स्थित रहते थे। उनके चेहरे और आँखों से हमेशा वात्सल्य टपकता रहता था। वे सबसे स्नेह करते थे और सबके सुख-दुख में भाग लेते थे। इसलिए लेखक ने फादर की उपस्थिति को देवदार की छाया जैसा कहा है।




प्रश्न - फादर बुल्के भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है? 


उत्तर- संन्यास लेते समय फादर बुल्के ने भारत जाने की शर्त रखी थी। भारत में आकर उन्होंने पादरी की शिक्षा के अतिरिक्त बी.ए. एम.ए. तथा पी-एच.डी. की शिक्षा प्राप्त की। यही नहीं उन्होंने रामकथा पर शोध कार्य किया और राँची के जेवियर्स कॉलेज में हिन्दी तथा संस्कृत के विभागाध्यक्ष बने। वे भारत को ही अपना देश मानते थे और यहाँ की मिट्टी में रच-बस गए थे। उन्होंने अंग्रेजी-हिंन्दी कोश तैयार किया और बाइबल का हिन्दी में अनुवाद किया? वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। वे भारतीय लोगों के उत्सवों और संस्कारों में अभिनव सदस्य के रूप में उपस्थित रहते थे। इसलिए यह कहना उचित है कि फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं।


प्रश्न - पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है? 


उत्तर फादर बुल्के ने हिंदी में एम. ए. की परीक्षा पास की और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोध करते हुए'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' विषय पर शोध प्रबन्ध लिखा। यही नहीं सेन्ट जेवियर्स कॉलेज, राँची में वे हिंदी-संस्कृत के विभागाध्यक्ष भी बने। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बड़ी जोरदार वकालत की। वे हिंदी के प्रति लोगों की उदासीनता को देखकर झुंझला उठते थे। इन प्रसंगों के आधार पर फादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है।


प्रश्न  - इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए?

उत्तर - इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्क की जो छवि उभरती है उसके अनुसार वे एक लंबी आकृति वाले व्यक्ति थे, जिनका शरीर पादरी के सफेद चोगे से ढका रहता था। उनके शरीर का रंग गोरा था। दाढ़ी भूरी सफेद थी और आँखें नीली थीं जिनसे अपार स्नेह टपकता था। वे मानों बाहें खोलकर सामने वाले को गले लगाना चाहते थे। उनमें बड़ी ममता और अपनत्व था। आचरण तथा व्यवहार से वे शुद्ध भारतीय थे। वे बड़े मिलनसार और स्नेह की वर्षा करने वाले थे। उनके उपदेश मनुष्य को कर्म करने की प्ररेणा देते थे। वे कभी-भी किसी पर क्रोधित नहीं हुए। लेखक ने उनकी तुलना फल-फूल, व गंधयुक्त, ऊँचे-लम्बे, महाकाय वृक्ष के साथ की है। वे सबको स्नेह, सांत्वना, सहारा और करुणा प्रदान करते थे।


प्रश्न - लेखक ने फादर बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' क्यों कहा है? 


अथवा


'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।


 उत्तर- फादर बुल्के करुणा की साक्षात मूर्ति थे। उनके मन में सभी परिचित जनों के लिए अपार ममता और सद्भावना थी। यही नहीं वे सब के प्रति वात्सल्य भाव रखते थे। उन्होंने कभी किसी पर क्रोध नहीं किया। हमेशा लोगों को स्नेह और प्रेम दिया। वे दुःख में सभी का साथ निभाते थे। उन्होंने कभी किसी से कुछ नहीं लिया, केवल दिया ही। उन्होंने ही लेखक के पुत्र के मुँह में अन्न का पहला दाना डाला और बाद में उसकी मृत्यु पर सांत्वना भी व्यक्त की। इसलिए लेखक ने फादर बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहा है। 


प्रश्न 7. आशय स्पष्ट कीजिए

(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।

(ख) फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है? 


उत्तर- (क) फादर बुल्के की मृत्यु पर उनके असंख्य प्रिय जन, विज्ञान शिक्षक तथा साहित्यकार आए थे। वे सभ अत्यधिक रोए और दु:खी हुए। उनके बारे में लिखना व्यर्थ में स्याही बर्बाद करना है। अर्थात् उनकी मृत्यु पर रोने वालों की संख्या अत्यधिक थी।


(ख) लेखक के अनुसार जब भी हम फादर कामिल बुल्के को याद करते हैं तो उनका करुणापूर्ण और शान्त व्यक्तित्व हमारे सामने उभरकर आ जाता है। उनकी मृत्यु के बारे में सोचकर हमारे मन में उदासी छा जाती है। तब ऐसा लगता है कि मानो एक उदास शांत संगीत सुनाई दे रहा है।



Manviya Karuna ki Divya Chamak Short Question Answers-Class 10 Hindi Important Questions
अन्य परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्न




प्रश्न - लेखक को प्राय फादर के विषय में क्या आश्चर्य होता था?


प्रश्न 4. उत्तर फादर का जन्म बेल्जियम के शहर रेम्स चैपल में हुआ था। उनके पिता व्यवसायी थे तथा माता गृहिणी थी। उनके अतिरिक्त उनके दो और भाई तथा एक बहन थी। इस प्रकार उनका एक भरा-पूरा परिवार था। इसके अतिरिक्त वे स्वयं इंजीनियरिंग की अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे। इस पृष्ठभूमि में उनके भावी जीवन में एक गृहस्थ होने की प्रबल संभावनाएँ होते हुए भी उनका अचानक संन्यासी वह भी भारत आकर संन्यासी बन जाना आश्चर्य जनक था। अतः इसी विषय को सोचकर लेखक को फादर के विषय में आश्चर्य होता था। 


प्रश्न - लेखक ने फादर बुल्के को संकल्प से संन्यासी क्यों कहा है?



उत्तर- लेखक की मान्यता है कि मन के संन्यासी सांसारिकता से निर्लिप्त रहते हैं। संन्यास लेने के पश्चात् संन्यासी किसी से किसी प्रकार का रिश्ता नहीं रखते जबकि फादर बुल्के एक बार जो रिश्ता बना लेते थे, उसे तोड़ते नहीं थे। उनसे दसियों साल बाद मिलने पर भी रिश्तों की वही गंध महसूस होती थी। इसीलिए लेखक को लगता है कि वे मन से संन्यासी नहीं थे। परन्तु चूंकि रिश्तों को निबाहते हुए भी उनका आचरण और कर्म संन्यासियों जैसा था इसीलिए लेखक ने उन्हें मन से संन्यासी न कहकर संकल्प से संन्यासी कहा है।


प्रश्न - संस्मरण के आधार पर फादर बुल्के के हिंदी प्रेम को स्पष्ट कीजिए।

                             अथवा


 कामिल बुल्के के साहित्यिक रूप को स्पष्ट कीजिए। 


संस्मरण के आधार पर कहा जा सकता है कि फादर बुल्के एक हिंदी भाषी भारतीय से भी बढ़कर हिंदी प्रेमी थे। उन्होंने अंग्रेजी भाषी होते हुए भी न केवल हिंदी में एम. ए. व पी. एच-डी. की उपाधियाँ प्राप्त की अपितु हिंदी साहित्य विशेषकर रामकथा पर अप्रतिम और अविस्मरणीय शोध कार्य किया। उन्होंने इसके अतिरिक्त मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ब्लू बर्ड व बाइबिल का हिंदी अनुवाद किया तथा अन्य अनेक पुस्तकों की हिंदी भाषा में रचना की। वे ताउम्र अपने हिंदी प्रेम के कारण ही हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की वकालत हर मंच से करते रहे और हिंदी वालों द्वारा ही हिंदी की उपेक्षा पर दुःखी होते रहे। 


प्रश्न -  लेखक के प्रति फादर की आत्मीयता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।



उत्तर - फादर कामिल बुल्के लेखक को अपने छोटे भाई की तरह समझते थे। लेखक के प्रति उनमें एक विशेष प्रकार की आत्मीयता थी यही कारण था कि वे लेखक के हर सुख व दुःख के अवसर पर उसके साथ खड़े रहते थे। वे लेखक के घर-परिवार के बारे में निजी दुःख तकलीफ के बारे में अकसर पूछा करते थे। उन्होंने ही उसके पुत्र के मुख में अन्न का पहला दाना डाला था तथा उन्होंने ही लेखक की पत्नी और पुत्र की मृत्यु पर अपने सांत्वना भरे शब्दों 'हर मौत दिखाती है जीवन को नई राह' से लेखक को एक नई राह दिखाई थी।


प्रश्न  - फादर का अंतिम संस्कार कहाँ किया गया? उनके अंतिम संस्कार में कौन-कौन शामिल हुए?


 उत्तर- फादर का अंतिम संस्कार दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास स्थित निकलसन कब्रगाह में किया गया उनके अंतिम संस्कार में लेखक सहित फादर के अभिन्न मित्र डॉ. रघुवंश व उनके पुत्र राजेश्वर सिंह, इलाहाबाद के प्रसिद्ध विज्ञान शिक्षक डॉ. सत्यप्रकाश, पादरी फादर पास्कल तोयना, पादरी फादर रेक्टर पास्कल, जैनेन्द्र कुमार, विजयेंद्र स्नातक, अजित कुमार, डॉ. निर्मला जैन तथा मसीही समुदाय के कुछ लोग शामिल थे।


प्रश्न- ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक' नामक संस्मरण का प्रमुख संदेश क्या है? स्पष्ट कीजिए।


 उत्तर- प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने फादर कामिल बुल्के के जीवन की प्रमुख घटनाओं और उनके व्यक्तित्व के उदात्त गुणों का अत्यंत भावपूर्ण शैली में उल्लेख किया है। लेखक ने बताया कि फादर बुल्के बेल्जियम से भारत आए और यहाँ के होकर रह गए। लेखक को उनके जीवन की शैली को देखकर लगा कि मानो वे यहाँ के पुरोहित बन गए। उन्होंने भारतीय संस्कृति के आदशों को पूर्ण रूप से अपने जीवन में उतार लिया था। इसलिए उन्हें भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग कहा गया। उनके हिंदी के प्रति अथाह प्रेम को देखकर तो कहना पड़ेगा कि हिंदी भाषियों को अपनी मातृ भाषा का प्रेम फादर बुल्के से सीखना चाहिए। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करना चाहते थे। उन्होंने यहाँ के लोगों के जीवन में मनाए जाने वाले उत्सवों में हृदय से भाग लिया। वे लोगों के जीवन के सुख-दुःखों में भी सम्मिलित होते थे। वे सुख के समय आशीर्वाद देते और दुःख के समय सहानुभूति एवं करुणा व्यक्त करते। उन्हें साहस और धैर्य देते। वे सच्चे भारतीय थे। उन्होंने कभी महसूस नहीं होने दिया कि वे विदेशी हैं। उन्होंने कभी किसी को ईसाई धर्म अपनाने के लिए नहीं कहा अपितु उन्होंने बाइबिल का हिंदी में अनुवाद किया ताकि भारत के लोग बाइबिल को भली-भाँति समझ सकें। उन्होंने रामकथा के उद्भव एवं विकास पर शोधप्रबंध प्रस्तुत किया जिससे रामकथा के प्रति उनकी रुचि का पता चलता है। मानवीय करुणा की दिव्य चमक सदा उनके चेहरे पर चमकती रहती थी।



Post a Comment

0 Comments