Class 11 Hindi Important Questions-Miya Nasiruddin Class 11 Extra Questions मियां नसीरुद्दीन


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Miya Nasiruddin-NCERT IMPORTANT QUESTION

मियां नसीरुद्दीन (कृष्णा सोबती)

प्रश्न  -  मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है ?

उत्तर- लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा इसलिए कहा है । वे अपने आप को खानदानी नानबाई कहते थे। वे अन्य नानबाइयों के मुकाबले में स्वयं को नानबाइयों में श्रेष्ठ इसलिए मानते थे क्योंकि उन्होंने नानबाई का प्रशिक्षण अपने परिवार की परंपरा से प्राप्त किया था। उनके पिता मियाँ बरकत शाही नानबाई गढ़यावाले के नाम से प्रसिद्ध थे और उन के बुजुर्ग बादशाह को भी नई-नई चीजें बनाकर खिलाते थे तथा उनकी प्रशंसा प्राप्त करते थे। मियाँ नसीरुद्दीन स्वयं छप्पन प्रकार की रोटियां बनाने में निपुण थे।


प्रश्न  - लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थी ?


 उत्तर – लेखिका एक दिन दोपहर के समय जामा मस्जिद के पास मटियामहल के पास से निकलती है। वह वहाँ से गढैया मुहल्ले की तरफ निकल जाती है। वहाँ उस की नज़र एक बिल्कुल सामान्य-सी अंधेरी दुकान पर पड़ती है। वहाँ वह निरंतर पट-पट की आवाज़ करते हुए आटे के ढेर को गूँथा जाना देखकर ठिठक जाती है। उसने सोचा कि शायद ये लोग इस आटे से सेवइयाँ बनाते होंगे। जब उसने पूछा तो उसे पता चला कि यह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है। मियाँ नसीरुद्दीन छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध थे। वह उन से उन की इस कारीगिरी का रहस्य जानने के लिए उनके पास गई थी।


प्रश्न  -  बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी ?


उत्तर – लेखिका ने जब मियाँ नसीरुद्दीन से उन के खानदानी नानबाई होने का रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया था कि उनके पिता शाही नानबाई गढ़यावाले के नाम से और दादा आला नानबाई के नाम से प्रसिद्ध थे। उन के बुजुर्ग बादशाह के लिए भी रोटियाँ बनाते थे। एक बार बादशाह ने उनके बुजुर्गों को ऐसी चीज़ बनाकर खिलाने के लिए कहा जो न आग से पके और न पानी से बने। उनके बुजुर्गों ने ऐसी चीज़ बादशाह को बनाकर खिलाई और बादशाह ने उनकी चीज़ की प्रशंसा भी की। लेखिका ने जब उस बादशाह का नाम पूछा तो वे नाराज़ हो गए क्योंकि उन्हें किसी बादशाह का नाम स्मरण नहीं था। लेखिका ने जब बहादुर ज़फ़र का नाम लिया तो उन्होंने खीजकर कहा कि यही नाम लिख लीजिए। लेखिका के इस प्रकार के प्रश्नों से मियाँ परेशान हो गए थे और उनकी दिलचस्पी लेखिका के प्रश्नों में समाप्त होने लगी।



 प्रश्न  - पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्द चित्र लेखिका ने कैसे खींचा है?


उत्तर – लेखिका के अनुसार मियाँ नसीरुद्दीन सत्तर वर्ष के हैं। वे चारपाई पर बैठे हुए बीड़ी की अपनी आदत पूरी कर रहे हैं। मौसमों की मार से उनका चेहरा पक चुका है। उनकी आँखों में काइयाँ भोलापन और पेशानी पर मंजे हुए कारीगर के तेवर हैं। वे पंचहज़ारी अंदाज़ से सिर हिला कर बात करते हैं। अखबार वाले उन्हें निठल्ले लगते हैं। वे छप्पन प्रकार की रोटियाँ पकाने के लिए प्रसिद्ध हैं। नानबाई का प्रशिक्षण उन्होंने अपने पिता से लिया था। बात को अपने हाथ से निकलता देख वे खीज जाते हैं और बात पलट देते हैं


EXTRA QUESTIONS ANSWERS-Miya Nasiruddin


प्रश्न  -  मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आप को अच्छी लगीं ? 


उत्तर – मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें हमें अच्छी लगी हैं


(i) मियाँ नसीरुद्दीन का पंचहजारी अंदाज़ से सिर हिलाकर लेखिका के प्रश्नों का उत्तर देना।


(ii) मियाँ नसीरुद्दीन का अखबार बनाने और पढ़ने वालों को निठल्ला कहना। 


(iii) लेखिका को नानबाई का प्रशिक्षण प्राप्त करने का ढंग बताना।


(iv) अपने पिता और दादा के नानबाई के रूप में प्रसिद्ध होने का वर्णन करते हुए भाव विभोर हो जाना। 


(v) गुरु और शिष्य के उदाहरण द्वारा शिक्षा, प्रशिक्षण आदि का महत्त्व बताना ।


(vi) अपने बुजुर्गों की प्रशंसा में बादशाह से संबंधित कथा सुनाना।





प्रश्न - मियां, कहीं अखबार नवीस तो नहीं हो? वह तो खोजियों की खुराफ़ात है-अखबार की भूमिका को देखते हुए इस पर टिप्पणी करें।


उत्तर- अखबार में पत्रकार की प्रमुख भूमिका होती है। वह इधर-उधर घूम फिरकर समाचार एकत्र करता है। उसके लिए वह दिन रात एक करता है । वह निरंतर इसी खोज में लगा रहता है कि उसे कोई ताजा अनोखा समाचार मिले तो वह अपनी अखबार को भेज सके।  अपने समाचार की सच्चाई के लिए उसे कई लोगों से पूछताछ भी करनी पड़ती है। कई लोग तो उसे ठीक से सहयोग देते हैं तो कहीं उसे लोगों की दुत्कार भी सहन करनी पड़ती है। वह खुराफ़ाती न होकर समाज को उस का आईना दिखाने वाला सच्चा समाज सेवक होता है।



प्रश्न  -  मियाँ नसीरुद्दीन ने नानबाई का काम किससे और कैसे सीखा था? 


उत्तर – मियाँ नसीरुद्दीन ने नानबाई का काम अपने पिता मियाँ बरकत से सीखा था। इनके पिता शाही नानबाई और गढ़यावाले के नाम से प्रसिद्ध थे। इन्होंने पहले बर्तन धोना, भट्टी बनाना और भट्टी को आँच देना सीखा था। इसके बाद इनके पिता ने इन्हें अलग-अलग प्रकार की रोटियाँ बनाना सिखाया था। इन्होंने अपने पिता द्वारा रोटियाँ बनाने के प्रशिक्षण को कार्यरूप में अपना लिया और पिता की मृत्यु के बाद उन्हीं की दुकान में नानबाई का व्यवसाय करने लगे।


प्रश्न  - लेखिका के यह पूछने पर कि क्या यहाँ और भी नानबाई हैं-मियाँ ने क्या उत्तर दिया ?


 उत्तर—लेखिका ने जब मियाँ नसीरुद्दीन से यह पूछा कि क्या यहाँ और भी नानबाइयों की दुकानें हैं तो मियाँ पहले तो उन्हें घूरने लगे कि लेखिका ने ऐसा प्रश्न क्यों पूछा फिर उत्तर दिया कि यहाँ बहुत से नानबाई हैं परंतु उन जैसा खानदानी नानबाई कोई नहीं है। अपने खानदानी नानबाई होने का सबूत देते हुए उन्होंने कहा कि उनके बुजुर्ग बादशाह के लिए भी रोटियाँ बनाते थे। एक बार हमारे एक बुजुर्ग से बादशाह ने कहा था कि मियाँ नानबाई कोई ऐसी चीज़ बनाओ जो न आग से पके और न पानी से बने। तब हमारे बुजुर्गों ने ऐसी ही चीज़ बनाई जिसे बादशाह ने खूब खाया और उस चीज़ की खूब प्रशंसा भी की। इस प्रकार उन्होंने स्वयं को इस क्षेत्र का सबसे अच्छा और खानदानी नानबाई सिद्ध किया।


प्रश्न  -'मियाँ नसीरुद्दीन' शब्द चित्र में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।


उत्तर – ‘मियाँ नसीरुद्दीन' शब्द चित्र में लेखिका ने खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का वर्णन करते हुए यह बताया है कि मियाँ नसीरुद्दीन नानबाई का अपना काम अत्यंत ईमानदारी और मेहनत से करते थे। यह कला उन्होंने अपने पिता से सीखी थी। वे अपने इस कार्य को किसी भी कार्य से हीन नहीं मानते थे। उन्हें गर्व है कि वे अपने खानदानी व्यवसाय को अच्छी प्रकार से चला रहे हैं। वे छप्पन प्रकार की रोटियाँ बना सकते थे। वे काम करने में विश्वास रखते हैं। इस प्रकार मियाँ नसीरुद्दीन के माध्यम से लेखिका यह संदेश देना चाहती है कि हमें अपना काम पूरी मेहनत तथा ईमानदारी से करना चाहिए। कोई भी व्यवसाय छोटा-बड़ा नहीं होता है। हमें अपने व्यवसाय के प्रति समर्पित होना चाहिए।











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