Important Questions Class 11 Hindi-Galta Loha Class 11 Hindi Extra Questions गलता लोहा

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Important Questions Class 11 Hindi-Galta Logs Class 11 Hindi Extra Questions गलता लोहा
Important Questions Class 11 Hindi-Galta Loha Class 11 Hindi Extra Questions गलता लोहा

Galta Loha-NCERT IMPORTANT QUESTION

 प्रश्न  - कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है ?


उत्तर – धनराम लुहार जाति का लड़का था। वह पढ़ाई-लिखाई में कुछ कमज़ोर था। एक दिन स्कूल में मास्टर साहब ने जब उससे सवाल पूछा तो उसे नहीं आया। उन्होंने उसे स्पष्ट कहा कि उसके दिमाग में लोहा भरा है उसमें विद्या का ताप नहीं लग सकता। वास्तव में धनराम के पिता के पास भी इतना धन नहीं था कि वह अपने पुत्र को पढ़ा-लिखा सके। इसी कारण धनराम के थोड़ा बड़े होते ही उसने उसे अपने पुश्तैनी काम में लगा दिया था। उसने अपने पुत्र धनराम को धौंकनी फूँकने से लेकर घन चलाने का पूरा काम सिखा दिया था। इसी प्रसंग में किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का ज़िक्र आया है।


प्रश्न  -  धनराम मोहन को अपना प्रविंद्वी (प्रतियोगी)क्यों नहीं समझता था ?


 उत्तर - मोहन धनराम से कहीं ज्यादा तेज बुद्धि का था। मोहन ने कई बार मास्टर साहब के आदेश पर अपने हमजोली धनराम को बेंत भी लगाए थे और उसके कान भी खींचे थे। यह सब होने पर भी धनराम मोहन के प्रति जलन का भाव नहीं रखता था और न ही उसे अपना प्रतिद्वंद्वी मानता था। इसका मुख्य कारण यह था कि उसके मन में बचपन से ही यह बात बैठ गई थी कि मोहन उच्च जाति का है और वह निम्न जाति का है। अतः मोहन का उस पर अधिकार है। इसके अलावा मास्टर साहब का यह कहना कि मोहन एक दिन बड़ा आदमी बनकर स्कूल का नाम रोशन करेगा उसे मोहन के प्रति उच्च भाव रखने पर मजबूर कर देता है। उसे भी मोहन से बहुत आशाएँ थीं और वह अपनी हद जानता था। इसी कारण धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझता था।




प्रश्न  - मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने जुबान के चाबुक कहा है और क्यों ? 


उत्तर – धनराम एक निम्न जाति का लड़का था। उसका पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता था। उसे स्कूल के बाद अपने लुहार पिता के साथ भी काम करना पड़ता था। पढ़ाई में जब उसे एक दिन सवाल नहीं आया तो मास्टर साहब ने उसे कहा- "तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे ! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ?" मास्टर साहब के इसी कथन को लेखक ने जुबान का चाबुक कहा है। मास्टर साहब के इस कथन ने चमड़े के चाबुक से भी गहरी चोट की थी। इस कथन को सुनकर धनराम के दिमाग में यह बात बैठ गयी थी कि वह पढ़-लिख नहीं सकता और उसे तो अपने पुश्तैनी लोहारगिरी के काम को ही करना है। जुबान से निकले शब्दों की चोट अक्सर गहरी होती है। मास्टर साहब के इस कथन ने भी धनराम पर गहरा प्रभाव डाला था। इसी कारण लेखक ने इस कथन को जुबान का चाबुक कहा है।




प्रश्न -  उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी- कहानी का यह वाक्य  किसके लिए कहा गया है ? किस प्रसंग में कहा गया है।

मोहन अपने बचपन के सहपाठी धनराम लुहार के पास हँसुवे की धार तेज कराने के लिए जाता है। धनराम उसके हँसुवे की धार तेज़ करने के बाद लोहे की एक मोटी छड़ को भट्ठी में गलाकर गोलाई में मोड़ने की कोशिश कर रहा था किंतु सफल नहीं हो पा रहा था। तभी धनराम के हाथ से हथौड़ा लेकर मोहन नपी-तुली चोट लोहे पर करता है तथा धौंकनी फूँककर लोहे को दोबारा भट्ठी में गर्म करके उसे ठोक-पीटकर एक सुघड़ गोले के रूप में बदल देता है। वह समस्त जातीय भेदभावों को भुलाकर धनराम की भट्ठी पर लोहे के छल्ले की त्रुटिहीन गोलाई को देखकर बहुत संतुष्ट था। इसी प्रसंग में यह कथन कहा गया है। इस प्रकार यह वाक्य मोहन के लिए कहा गया है।



Galta Loha-EXTRA QUESTIONS ANSWERS



प्रश्न  - वंशीधर जी बुढ़ापे के कारण किस बात से परेशान थे ?


उत्तर - वंशीधर जी पुरोहिताई का काम करते थे। यही उनके परिवार के भरण-पोषण का साधन था। बुढ़ापा आने पर उनका शरीर कमजोर हो गया और वे पुरोहिताई करने में कठिनाई अनुभव करने लगे। वे बुढ़ापे के कारण और व्रत-उपवास करने में समर्थ नहीं थे। जब उन्हें गणनाथ जाकर चंद्रदत्त जी के लिए रूद्रीपाठ करना था तो वे बुरी तरह परेशान हो उठे। वे दो मील की सीधी चढ़ाई चढ़कर वहाँ जाने में असमर्थ थे। उनकी परेशानी यह भी थी कि वे अपने यजमानों को किसी अनुष्ठान के लिए मना भी नहीं कर सकते थे और बुढ़ापे के कारण अनुष्ठानों को कर पाना भी उनके लिए संभव नहीं था।


प्रश्न  -  लेखक ने मास्टर त्रिलोक सिंह के रौब को किन शब्दों में व्यक्त किया है ?


 उत्तर- लेखक कहता है कि मास्टर त्रिलोक सिंह का स्कूल में बड़ा रौब था। बच्चे पूरी तरह उनके अनुशासन में हुए थे। मास्टर त्रिलोक सिंह जब गोपाल सिंह की दुकान से हुक्के का आखिरी कश खींचकर स्कूल की चारदीवारी  में कदम रखते थे तो चारों ओर खामोशी छा जाती था। कुछ देर पहले धमाचौकड़ी मचाते, उठा-पटक करते और बांज के पेड़ों पर झूलते बच्चे एकदम शांत हो जाते थे। उनका बच्चों पर बड़ा भारी रौब था।


प्रश्न  - धनराम ने अपना पुश्तैनी काम कैसे संभाला ?


उत्तर- धनराम जब पढ़ रहा था तो उसके पिता उसे धौंकनी फूँकने और सान लगाने के कामों में उलझाकर रखते थे। धीरे-धीरे उन्होंने हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या उसे सिखा दी। उसके पिता गंगाराम अक्सर काम में गलती होने पर छड़, बेंत और हत्थे आदि से उसकी पिटाई भी करते रहते थे। धीरे-धीरे धनराम लुहारगिरी के अपने पुश्तैनी काम में परिपक्व होने लगा। एक दिन अचानक धनराम के पिता गंगाराम का स्वर्गवास हो गया और धनराम ने बड़े ही सहज भाव से अपना पुश्तैनी काम सँभाल लिया।




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