Aao Milkar Bachaye Class 11 Extra Questions आओ मिलकर बचाएं Class 11 Important Questions

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Aao Milkar Bachaye Class 11-NCERT MOST IMPORTANT QUESTION ANSWERS

आओ मिलकर बचाएं (निर्मल पुतुल)

                    

प्रश्न - माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है ?


 उत्तर -'माटी का रंग' प्रयोग करते समय कवयित्री ने संथाल क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों को उजड़ने से बचाने तथा उनके होने की पहचान को बनाए रखने की ओर संकेत किया है। कवयित्री चाहती है कि संपूर्ण मानव जाति प्रयास करे ताकि आज होने वाला प्रकृति का विनाश रुक सके। हमारे वन सुरक्षित रह सकें। वनों में रहने वाले संथाल क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोगों की पहचान जिंदा रह सके। उनके चेहरे पर झलकता संथाल क्षेत्र की मिट्टी का रंग सदैव बना रहे। 


प्रश्न -  भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?


उत्तर – भाषा में झारखंडीपन से अभिप्राय भाषा में आए झारखंड प्रदेश में बोली जाने वाली बोली के प्रभाव से है। क्षेत्रीय आधार पर भाषा का स्वरूप बदल जाता है। भाषा में क्षेत्रीयता के गुण अपने आप आ जाते हैं। यही क्षेत्रीयता का प्रभाव जातियों की पहचान बन जाता है। कवयित्री चाहती है संथाल क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समाज की भाषा का झारखंडीपन बरकरार रहे। कवयित्री मानव जाति से प्रार्थना करती है कि वे प्रकृति को विनाश से बचाएं। प्रकृति के बचने से आदिवासी जातियों का अस्तित्व बचेगा और भाषा का नया रूप भी सुरक्षित रहेगा। कवयित्री क्षेत्रीय भाषा और जातियों के अस्तित्व को बचाने की कोशिशें करने की प्रार्थना करती है। दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता है।



प्रश्न - दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है ?


उत्तर-  दिल का भोलापन मानव को छल-कपट से दूर रह कर प्रेम और भाईचारे का जीवन जीने की प्रेरणा देता है तो स्वभाव का अक्खड़पन और जुझारूपन काम को पूरी लगन और मेहनत से करने की शक्ति प्रदान करता है। कवयित्री चाहती है कि संथाल क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समाज के भोलेपन को बचाने के प्रयत्न किए जाएं तो वहीं उनमें अक्खड़पन और जुझारूपन को मिटने न दिया जाए। यही गुण उनकी लक्ष्य प्राप्ति में सहायता करते हैं।


प्रश्न - प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है ?


उत्तर - इस कविता संकेत में कहा गया है कि आदिवासी समाज पूरी तरह वनो पर ही निर्भर है। वनों से प्राप्त लकड़ी, शिकार आदि के द्वारा ही उनका जीवन चलता है। आज वनों के विनाश का संकट उभर आया है तो इस आदिवासी समाज के लिए खतरा पैदा हो गया है। ये लोग अनपढ़ हैं। शिक्षा के अभाव में तथा जागरूकता की कमी के कारण ये किसी और व्यवसाय की ओर उन्मुख नहीं होते। अपने विस्थापन का खतरा पैदा होते ही ये अपना उत्साह छोड़ बैठे हैं। इनके भीतर की उमंग और जोश  ठंडा पड़ गया है। इनके गीत और होठों की हंसी खो गई है। अज्ञान के कारण ये अभी तक तीर, धनुष, कुल्हाड़ी जैसे प्राचीन साधनों के द्वारा ही शिकार करते हैं ये सब इस जाति के नकारात्मक पक्ष की ओर संकेत करते हैं।


 


प्रश्न -  निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए


       (क) ठंडी होती दिनचर्या में जीवन की गर्माहट ।


       (ख) थोड़ा-सा विश्वासथोड़ी-सी उम्मीद


       थोड़े-से सपने आओ मिलकर बचाएँ।


उत्तर - ( क ) भाव सौंदर्य-यहां कवयित्री की चिंता प्रकट हुई है। वनों के विनाश के कारण आदिवासी समाज विस्थापन की पीड़ा झेलने के लिए मजबूर है। वनों पर आश्रित उनकी दिनचर्या ठंडी पड़ गई है। उनके जीवन के ठंडे पड़ चुके उत्साह को हम फिर से अपने प्रयासों द्वारा लौटा सकते हैं। उनके जीवन की उमंग को हम अपनी कोशिशों से जगा सकते हैं जिससे वे फिर अपनी दिनचर्या को उत्साह से भर सकें।


शिल्प सौंदर्य -


(i) 'ठंडी होती दिनचर्या' से कवयित्री का अभिप्राय आदिवासी समाज की वनों पर आश्रित शिकार संबंधी क्रियाओं से है।


(ii) कवयित्री ने प्रतीकात्मक शब्दावली का प्रयोग किया है,   'गर्माहट' उत्साह और उमंग का प्रतीक है।


(iii) छन्द मुक्त कविता है।


(iv) शांत रस विद्यमान है।


(V) प्रसाद गुण युक्त शब्दावली भावाभिव्यक्ति में सहायक है। 


(ख) भाव सौंदर्य – कवयित्री चाहती है कि हम अपने प्रयासों से लोगों के विश्वास और आशा को जीवित रखने का प्रयास करें। आज प्रत्येक व्यक्ति के प्रति अविश्वास का वातावरण बनता जा रहा । हर व्यक्ति संदेह के घेरे में घिरता जा रहा है। उसका विश्वास धूमिल पड़ता जा रहा है। उसकी उम्मीद और सपने टूटते जा रहे हैं। कवयित्री मानव जाति से आग्रह करती है कि चलो मिल-जुल कर एक साथ हम-सब प्रयास करें और टूटते हुए विश्वास, धूमिल पड़ती उम्मीद और टूटते सपनों को बचाने की कोशिश करें।


     शिल्प सौंदर्य


  (i) आज के अविश्वास भरे वातावरण की ओर संकेत है।


 (ii) अनुप्रास अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग है।


  (iii) छंदमुक्त कविता है।


 (iv) शांत रस एवं प्रसाद गुण विद्यमान है।


  (v) शैली में आग्रह का स्वर है।


   (vi) खड़ी बोली सहज, सरल एवं भावाभिव्यक्ति में सक्षम  है।


प्रश्न -  बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?


उत्तर – बस्तियों को शहरी प्रदूषण की प्रवृत्ति से बचाने की आवश्यकता है। शहरों में जनसंख्या को बसाने के लिए लगातार वनों को नष्ट कर उनके स्थान पर इमारतें बनाई जा रही हैं। शहरों में प्रदूषण के कारण शुद्ध वायु तक का अभाव होता जा रहा है। प्राकृतिक संपदा के विनाश और प्रदूषण की शहरी प्रवृत्ति अब जंगलों और उनमें बसी बस्तियों तक पहुंचने लगी है। हमें अपने जंगलों और बस्तियों को शहरी प्रदूषित वातावरण से बचाने के प्रयास करने होगें।सारी मानव जाति के मिले-जुले प्रयासों द्वारा इस जाति के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।






Aao Milkar Bachaye Class 11 Hindi-EXTRA MOST IMPORTANT QUESTION



प्रश्न - प्राकृतिक जीवन की किन चीज़ों को कवयित्री बचाना चाहती है ?


 उत्तर – कवयित्री प्राकृतिक विनाश से दुःखी है। प्रकृति  को बचाने के लिए यह मानव जाति से एकजुट होकर प्रयास करने का आग्रह करती है। आज जंगलों की ताज़ी हवा समाप्त होती जा रही है। प्रदूषण  बढ़ रहा है। नदियों का पवित्र जल प्रदूषण के कारण मैला होता जा रहा है। मिट्टी की सुगंध रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों द्वारा समाप्त होती जा रही है। पहाड़ों की स्वाभाविक सुंदरता नष्ट हो रही हैं। कवयित्री इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों को बचाना चाहती है।



प्रश्न -  बस्तियों को नंगी होने से बचाने के लिए कवयित्री का क्या अभिप्राय है?


 उत्तर – कवयित्री सारी मानव जाति से प्रार्थना कर रही है कि चलो हम कुछ कोशिश करें। हम अपनी बस्तियों को नंगी होने से बचा लें। हम बस्तियों को मानव और वनस्पति रहित होने से बचाएं। कवयित्री का संकेत है कि प्रकृति के लगातार बढ़ते विनाश से बस्तियां उजड़ती जा रही हैं। संथाली समाज विस्थापित-सा होता जा रहा है। बस्तियाँ पेड़ पौधों की संपदा के साथ-साथ मानव से भी रहित होती जा रही हैं। जब प्रकृति का अस्तित्व खतरे में है तो मानव का अस्तित्व तो खतरे में पड़ेगा ही।


प्रश्न - संथाली समाज में नव-चेतना कैसे लाई जा सकती है?


उत्तर- संथाली समाज में फैली कुरीतियों की ओर संकेत करते हुए कवयित्री कहती है कि चलो, हम सब प्रयास करके पूरी बस्ती को अशिक्षा और कुरीतियों  से बचाएँ। हम कोशिश करें तो लोगों में से अशिक्षा, अंधविश्वास जैसी बुराइयां समाप्त हो सकती हैं। आदिवासियों का जीवन संकट में पड़ जाने के कारण उनके चेहरे से संथाल क्षेत्र की मिट्टी का रंग उड़ने लगा है। अपने प्रयासों से हम बस्ती के लोगों की परंपरागत संस्कृति के रंग को सुरक्षित रख सकते हैं।



प्रश्न -  आदिवासियों की वर्तमान दशा कैसी है ?


उत्तर - प्रकृति के विनाश के कारण विस्थापित होती जा रही आदिवासी जाति के प्रति चिंता व्यक्त करती हुई कवयित्री मानव जाति से आग्रह करती है कि हम सब कोशिश करके अपने अस्तित्व के लिए जूझती आदिवासी सभ्यता की सहायता कर सकते हैं। आज प्रकृति पर निर्भर आदिवासियों की प्रकृति पर आश्रित दिनचर्या समाप्त होती जा रही है। उनके जीवन का उत्साह और मन की खुशियों का अंत होता जा रहा है। वे स्वयं को अपने प्राकृतिक परिवेश से टूटा हुआ अनुभव कर रहे हैं। वे दिशा भूल  चुके हैं।






प्रश्न - विस्थापित होती जा रही आदिवासी जाति को बचाने के लिए कवयित्री क्या सुझाव देती है?



उत्तर – कवयित्री मानव जाति को सचेत करते हुए बताती है कि विस्थापित होती आदिवासी जाति को बचाने का

आधार है कि हम प्रकृति को बचाएं। हम जंगलों की ताजी हवा को प्रदूषण से बचाएं। नदियों के जल की पवित्रता को बनाए रखने का संकल्प लें। पहाड़ों के मौन को बचाने की कोशिश करें। अपनी मिट्टी की खुशबू को बचाने के हर संभव प्रयास करें। लुप्त होती जा रही फसलों की लहलहाहट को जीवित रखने की कोशिश करें तभी आदिवासी समाज की गीतों की धुनें इनमें गूंज पाएंगी। यदि प्रकृति नहीं बचेगी तो इनमें रहने वाली प्रकृति पर आश्रित जातियां भी अपना अस्तित्व खोने पर विवश हो जाएंगी।




प्रश्न - 'अविश्वास भरे दौर' से कवयित्री का क्या आशय है?   इससे कैसे मुक्त हुआ जा सकता है?


उत्तर - कवयित्री का मानना है आज का जमाना कुछ ऐसा बन गया है जिनमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरे पर अविश्वास करता है। हर कोई संदेह के घेरे में घिरा दिखाई देता है। कोई भी विस्थापित हो रहे आदिवासी समाज की सहायता के लिएआगे नहीं आ रहा। इसका प्रमुख कारण आज के युग में फैली संदेह और अविश्वास की भावना है। कवयित्री आग्रह करती है कि चलो हम सब मिल कर प्रयास करें और मिटते हुए विश्वास को बचा लें। धूमिल पड़ती आदिवासी समाज की आशा की किरण को फिर से थोड़ी आशा देकर जीवित करें। उनके थोड़े से सपनों को बचाने की कोशिश करें। हम सब अपने प्रयासों से उनके मिटते अस्तित्व को बचा सकते हैं।


प्रश्न - 'भीतर की आग' क्या होती है ?


उत्तर - भीतर की आग' का शाब्दिक अर्थ अंतरमन का उत्साह है। यहाँ कवयित्री ने इसका प्रयोग आदिवासियों के जीवन में व्याप्त उमंग, उत्साह, जोश, आक्रोश, असंतोष आदि भावनाओं को व्यक्त करने के लिए किया है। 


प्रश्न - 'आओ मिलकर बचाएँ' कविता मे निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।


उत्तर—इस कविता के माध्यम से कवयित्री ने समाज को आदिवासियों के विस्थापन पर चिंता व्यक्त करते उस प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखने का संदेश दिया है जिसमें वे अपना जीवन सहज रूप से व्यतीत कर सकें क्योंकि प्रकृति सुरक्षित रहेगी तो उनका जीवन भी फले-फूलेगा। 

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