लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप -Lakshman Murcha Extra Question Answer-Class 12 Hindi Important Questions

 लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप -Lakshman Murcha Extra Question Answer-Class 12 Hindi Important Questions

लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप -Lakshman Murcha Extra Question Answer-Class 12 Hindi Important Questions
लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप -Lakshman Murcha Extra Question Answer-Class 12 Hindi Important Questions


Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap -NCERT IMPORTANT QUESTION

लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप (तुलसीदास)


प्रश्न  - पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।


उत्तर - पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का बादल ही कर सकता है—तुलसी का यह काव्य-सत्य समकालीन युग में भी सत्य था और आज भी सत्य है। भक्त यदि भगवान् के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से भक्ति और कर्म करे तो पेट की आग ही नहीं वरन भक्त का उद्धार भी हो सकता है। इस सृष्टि में ईश्वर ही सत्य, वही जन्मदाता और पालनहार है फिर जिस प्रभु ने जन्म दिया हो क्या वह अपने बच्चों का पेट नहीं भरेगा। भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर जब ईश्वर भक्ति का मेघ बरसता है तो भक्त को संपूर्ण संसार की खुशियां मिल जाती हैं। इस प्रकार यदि भक्त भगवान् के प्रति एकनिष्ठ भक्ति करता है और अपना कर्म भी निष्ठापूर्वक निभाता है तो ईश्वर उसकी पेट की आग को ही शांत नहीं करता बल्कि उसके जीवन का भी उद्धार कर देता है



Lakshman Murcha Class 12 Hindi-MOST IMPORTANT EXTRA QUESTIONS


प्रश्न -  शोक ग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?


                                अथवा


शोक के वातावरण में हनुमान के अवतरण का क्या प्रभाव पड़ा था ?


उत्तर – लक्ष्मण-मूर्छा के पश्चात् समस्त माहौल शोक ग्रस्त हो गया था। राम लक्ष्मण को अपने हृदय से लगाकर फूट फूट कर रो रहे थे। इनके साथ-साथ समस्त भालू-वानर सेना राम को देख अत्यंत दुखी थे। यहाँ तक कि राम सेना का प्रत्येक प्राणी, वीर शोक मग्न था। श्री राम तो सामान्य मनुष्य की भांति करुणावस्था में पहुँच चुके थे। वे बार-बार लक्ष्मण को देखकर अनेक बातें याद करते हुए रो रहे थे लेकिन जैसे ही हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर शोक सभा में पहुँचे तो वे पूरा का पूरा पर्वत ही अपने हाथ पर उठा लाए थे। हनुमान को देख राम तथा समस्त जन थोड़े खुश हुए तथा शीघ्र ही वैद्य जी ने लक्ष्मण को संजीवनी बूटी पिलाई तो लक्ष्मण हर्षित होकर उठ खड़े हुए। राम सहित समस्त वानर सेना खुश हो गई। इस प्रकार शोक ग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को वीर रस का आविर्भाव कहा गया है।





प्रश्न - तुलसी दास ने पेट की आग के विषय में क्या कहा है ? उसे किस प्रकार शांत किया जा सकता है ? 


उत्तर - गोस्वामी तुलसी दास ने पेट की आग को अति भयानक माना है जो हरेक को सता रही है। मजदूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर-चाकर, कुशल अभिनेता, चोर, दूत, बाज़ीगर आदि सभी पेट की आग से परेशान है। इसे बुझाने के लिए ऊँचे-नीचे सब प्रकार के काम करने को विवश हैं। यह आग तो समुद्र की आग से भी भयानक है। इसे तो केवल श्री राम के नाम और उनकी भक्ति से ही मिटाया जा सकता है।


प्रश्न - तुलसी के कवित्त के आधार पर पेट की आग का वर्णन कीजिए।


उत्तर -तुलसी मानते हैं कि पेट की आग बड़ी भयंकर है जो हर प्राणी को मृत्यु तक सताती है, परेशान करती है। हर व्यक्ति अपनी-अपनी कुशलता के आधार पर इसी को बुझाने में हर पल लगा रहता है, व्यापारी, मजदूर, किसान, नौकर-चाकर, चोर-दूत, नेता-अभिनेता, बाज़ीगर भाटा, भिखारी आदि सब इसे बुझाने में ही लगे हुए हैं। पेट के लिए कोई पढ़ता-लिखता है तो कोई कलाएँ सीखता है। कोई विद्याएं सीखता है तो कोई पर्वतों पर भटकता दिखाई देता है। कोई दिन-भर जंगलों में शिकार की खोज में भटकता रहता है। पेट की आग के लिए उनका ध्यान धर्म-कर्म की ओर भी नहीं जाता। लोग बेटे-बेटी तक को अपने पेट की आग को बुझाने के लिए बेच देते हैं। यह आग तो समुद्र की आगसे भी भयानक है।



प्रश्न  - पेट की आग को समुद्र की आग से भी भयानक क्यों माना गया है ?


 उत्तर - समुद्र की आग (बड़वानल) जल में भी धधकती रहती है पर वह भी पेट की आग से भयानक नहीं है।पेट की आग बुझाने के प्रयास में तो इंसान जानवर से भी नीचे गिर जाता है। उसका विवेक नष्ट हो जाता है, वह पशु की भांति हिंसक हो जाता है और उसी की तरह गिर जाता है। वह धर्म-अधर्म, बेटा-बेटी आदि को भुला कर केवल अपना पेट भरना चाहता है। वह तो इतना नीचे भी गिरने को तैयार हो जाता है कि अपने बेटे-बेटी को बेचने को भी तैयार हो जाता है और पशु समान व्यावहार करने लगता है।


प्रश्न  - तुलसी का युग कैसा था ? लिखिए। 


उत्तर - तुलसी युग चारों तरफ से विविध समस्याओं से घिरा हुआ था। समाज में गरीबी, बेरोजगारी, अंधविश्वास - का बोलबाला था। लोग बेरोज़गार थे, उन्हें नौकर की प्राप्ति नहीं होती थी। लोग गरीब थे। रावण रूपी दरिद्रता ने सब को घेर रखा था। सब लोग त्राहि-त्राहि करते थे। किसानों को खेतों से ठीक फसल प्राप्त नहीं होती थी और व्यापारियों को व्यापार नहीं मिलता था। भिखारी भीख प्राप्त नहीं कर पाते थे। सब लोग परेशान थे। वे समझ नहीं पाते थे कि वे 'क्या करे और कहाँ जाएं।'कहते हैं कि—“हम कहाँ, जाएँ, क्या करें ?"




प्रश्न  - तुलसी ने अपने बारे में दुनिया को क्या कहा है ? क्यों ?


उत्तर- तुलसी ने दुनिया को अपने बारे में कहा है कि उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है। उन्हें कोई धूर्त कहे या अवधूत योगी, राजपूत कहे या जुलाहा, छोटा कहे या बड़ा- उन्हें हम से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उन्हें किसी की बेटी से अपने बेटे की शादी नहीं करनी थी कि जिस से किसी की जाति में बिगाड़ उत्पन्न होता हो। वे तो केवल राम के भक्त हैं। उन्हें जो कोई कहना चाहता है वह कहता रहे। वे माँग कर खा लेते हैं, मसजिद में जा कर सो जाते हैं, अपनी धुन में मस्त रहते हैं और उन्हें दुनिया से न तो कुछ लेना है और न ही देना है। तुलसी ने संभवतः ऐसा इसलिए कहा होगा कि उस समय के लोग उन्हें, उन के विचारों के कारण, बुरा-भला कहते होंगे। उनसे व्यवहार नहीं करना चाहते होंगे। 


प्रश्न -  तुलसी की फक्कड़ता किस प्रकार प्रकट हुई है ?


उत्तर -तुलसी ने गृहस्थ त्याग दिया था। उन कोई भी अपना पराया नहीं था। उन्हें सांसारिक मान-मर्यादाओं से कुछ नहीं लेना-देना था। उन्हें जात-पात की कोई परवाह नहीं थी। उन्हें समाज से रिश्ते नहीं बनाने थे, इसलिए वे किसी की कोई परवाह नहीं करते थे। 




प्रश्न -  राम ने नारी के संबंध में जो टिप्पणी की है, उस विषय में आप क्या सोचते हैं ?


 उत्तर - राम ने नारी के विषय में कहा था- 'नारि हानि विसेष छति नहीं'। उन्हीं ने अपने भाई की तुलना में नारी को विशेष महत्त्व नहीं दिया था और उनकी क्षति को भाई की क्षति की अपेक्षा कम माना था। वस्तुतः राम ने यह टिप्पणी दुःख और कष्ट के समय अनर्गल चीत्कार करते हुए की थी जिस उनका अपने भाई के प्रति प्रेम-भाव प्रकट हुआ है।

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