अतीत में दबे पांव-Ateet mein Dabe Paon Extra Question Answer-Class 12 Hindi Important Questions

अतीत में दबे पांव-Ateet mein Dabe Paon Extra Question Answer-Class 12 Hindi Important Questions

अतीत में दबे पांव-Ateet mein Dabe Paon Extra Question Answer-Class 12 Hindi Important Questions
अतीत में दबे पांव-Ateet mein Dabe Paon Extra Question Answer-Class 12 Hindi Important Questions


Ateet mein Dabe Paon - NCERT IMPORTANT QUESTION ANSWERS 

अतीत में दबे पांव (ओम थानवी)

प्रश्न -  सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था कैसे ?



उत्तर – लेखक ‘ओम थानवी' ने अपनी यात्रा के समय जब सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़े दो महानगरों  मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के घरों, गलियों, सड़कों और खुदाई में वास्तुशिल्प से जुड़े सामान को देखा तो यह निष्कर्ष निकाला कि अगर सिंधु घाटी की सभ्यता के साथ विश्व की अन्य सभ्यताओं की तुलना की जाए तो सिंधु घाटी की सभ्यता साधन संपन्न थी उसमें कृत्रिमता एवं आडंबर नहीं था। इस निष्कर्ष स्वरूप उन्होंने कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जो इस प्रकार हैं 


जब मोहनजोदड़ो स्थित एक छोटा-सा संग्रहालय देखने गए तो वहाँ उन्होंने एक अलग बात अनुभव की कि इस संग्रहालय में औज़ार तो हैं परंतु हथियार कोई नहीं है। अगर सिंधु से लेकर हरियाणा तक खुदाई में मिले अवशेषों पर गौर किया जाए तो हथियार कहीं भी नहीं हैं। जिस प्रकार प्रत्येक राजा के पास हथियारों की एक बड़ी खेप होती है। परंतु यहाँ हथियार नाम की चीज़ नहीं है। पुरातात्विक विद्वानों के लिए यह बड़ा प्रश्न है कि सिंधु सभ्यता में शासन और सामाजिक प्रबंध के तौर-तरीके क्या रहे होंगे? यहाँ की सभ्यता में अनुशासन तो है परंतु किसी सत्ता के बल के द्वारा नहीं है। यह अनुशासन वहाँ की नगर योजना, वास्तुकला, मुहरों, ठप्पों, जल-व्यवस्था, साफ़-सफाई और सामाजिक व्यवस्था आदि की एकरूपता में देखी जा सकती है। दूसरी सभ्यताओं में प्रशासन राजतंत्र और धर्मतंत्र द्वारा संचालित है। वहाँ बड़े-बड़े सुंदर महल, पूजा स्थल, भव्य मूर्तियां, पिरामिड और मंदिर मिले हैं। राजाओं और धर्माचार्यों की समाधियाँ भी दूसरी सभ्यताओं में भरपूर मात्रा में मौजूद हैं। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में छोटी-छोटी नावें मिली हैं जबकि मिस्र की सभ्यता में बड़ी नावों का प्रचलन था। सांस्कृतिक धरातल पर यह तथ्य सामने आता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता दूसरी सभ्यताओं से अलग एवम् स्वाभाविक, साधारण जीवन-शैली पर आधारित थी। सिंधु सभ्यता के सामाजिक, धार्मिक एवम् सांस्कृतिक जीवन में किसी प्रकार की कृत्रिमता एवं आडंबर दिखाई नहीं पड़ता जबकि अन्य सभ्यताओं में राजतंत्र और धर्मतंत्र की ताकत को दिखाते अनेक प्रमाण मौजूद हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सिंधु सभ्यता संपन्न थी परंतु उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था





प्रश्न - सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाज-पोषित था।ऐसा क्यों कहा गया ? 



उत्तर—सिंधु सभ्यता की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियाँ और प्रवृत्तियाँ मानवता पर आधारित हैं। सिंधु सभ्यता मानव निर्मित और मानव आधारित है। सिंधु घाटी की खुदाई से मिले अवशेषों और खंडहरों को देखकर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि सिंधु सभ्यता के लोग साधारण जीवन जीने वाले और अनुशासन प्रिय थे।


सिंधु सभ्यता का मुख्य व्यवसाय पशु पालन एवं कृषि माना जाता है। वे पशुओं के साथ सहज जीवन जीते थे।  मिट्टी की एक बैलगाड़ी मिली है। बैलगाड़ी किसी भी समाज की सांस्कृतिक धरोहर हो सकती है जिसमें भव्यता और आडंबर कहीं भी दिखाई नही देता। सिंधु सभ्यता में घरों के खंडहरों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है। ये आकार में छोटे और साधारण परिवेश से मेल खाते हैं। दो मंजिला इमारतों की भी कल्पना की गई है। परंतु बहुमंजिला महल और भव्य इमारतें भी होंगी ऐसा अनुमान नहीं लगाया जा सकता। बर्तनों और मृद भांडों को देखकर भी यही कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता में खान-पान में साधारण बर्तनों का प्रयोग किया जाता था। सिंधु सभ्यता में औज़ारों का प्रयोग तो बहुत मिलता है परंतु हथियार भी प्रयोग में होते होंगे इसका कोई प्रमाण नहीं हैं। वे लोग अनुशासन प्रिय थे। परंतु यह अनुशासन किसी ताकत के बल के द्वारा कायम नहीं किया गया बल्कि लोग अपने मन और कर्म से हो अनुशासन प्रिय थे। बड़े मंदिरों और देवी-देवताओं की बड़ी मूर्तियों के अवशेष भी नदारद हैं। अगर सिंधु सभ्यता से जुड़े लोग धर्मपरायण होते तो इस खुदाई में किसी बड़े मंदिर और मूर्तियों के अवशेष अवश्य मिलते। मोहनजोदड़ो की खुदाई में एक दाढ़ी वाले नरेश की छोटी मूर्ति मिली है परंतु यह मूर्ति किसी राजतंत्र या धर्मतंत्र की प्रमाण नहीं कही जा सकती। विश्व की अन्य सभ्यताओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन से भी यही अनुमान लगाया जा सकता है कि सिंधु सभ्यता यही आशय लगता है कि सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य बोध है जो कि समाज पोषित है, राजपोषित अथवा धर्मपोषित नहीं है। 


प्रश्न - पुरातत्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि-"सिंधु-सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।"


उत्तर - सिंधु सभ्यता के लोग सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से मानवीय एवम् अनुशासन प्रिय थे। पुरातात्विक  खोजों में बर्तनों, सोने की सुइयों, बर्तनों, मृद-भांडों, छोटी नावों, बैलगाड़ी, छोटे-छोटे घर, तंग सीढ़ियाँ, नगर योजना, पानी व्यवस्था आदि मानवीय जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। औज़ार मनुष्य के व्यवसाय से जुड़े होते हैं। कृषि एवम् पशुपालन सिंधु सभ्यता के दो मुख्य व्यवसाय थे। संग्रहालय में रखी चीज़ों को अगर गौर से देखें तो वहाँ औज़ार जैसी चीजें तो बहुत रखी हैं परंतु हथियार कोई नहीं है। हथियार राजतंत्र की पहचान होते हैं। राजा और हथियारों का समन्वय एक सामान्य सी बात है। हथियारों और ताकत के बल से सिंधु घाटी के लोगों को अनुशासित किया गया हो ऐसा कोई  प्रमाण नहीं मिलता। वे जीवन में आत्मीयतापूर्ण अनुशासन रखते थे। अपने काम-धंधे में मस्त थे। यहाँ किसी बड़े राजा का शासन था अथवा अनुशासन राजा के डर से पैदा हुआ हो, यह दूर की बात लगती है। अपने-अपने कार्यों और धंधों से जुड़े लोग समझ से ही अनुशासित हैं; उनको किसी ताकत से अनुशासित नहीं किया जा सकता। पुरातात्विक चिह्नों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता ताकत से शासित की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।




प्रश्न - टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं। इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।


              अथवा


“अतीत में दबे पाँव" पाठ के कथ्य पर प्रकाश डालिए।


उत्तर - सिंधु घाटी की खुदाई में मिले स्तूप, गढ़, स्नानागार, टूटे-फूटे घर, चौड़ी और कम चौड़ी सड़कें, गलियाँ, बैलगाड़ियाँ, सीने की सुइयाँ, छोटी-छोटी नावें किसी भी सभ्यता एवम् संस्कृति का इतिहास कही जा सकती हैं। इन टूटे-फूटे घरों के खंडहर उस सभ्यता की ऐतिहासिक कहानी ब्यान करते हैं। मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ, औज़ार आदि चीजें उस सभ्यता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को नापने का बढ़िया औज़ार हो सकते हैं परंतु मोहनजोदड़ो के ये टूटे-फूटे घर अभी इतिहास नहीं बने हैं। इन घरों में अभी धड़कती जिंदगियों का अहसास होता है। संस्कृति और सभ्यता से जुड़ा सामान भले ही अजायबघर में रख दिया हो परंतु शहर अभी वहीं हैं जहाँ कभी था। अभी भी आप इस शहर की किसी दीवार के साथ पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। घर अब चाहे खंडहर बन गए हों परंतु जब आप इन घरों की देहरी पर कदम रखते हैं तो आप थोड़े सहम जाते हैं क्योंकि यह भी किसी का घर रहा होगा। जब किसी के घर में अनाधिकार से प्रवेश करते हैं तो डर लगना स्वाभाविक है। आप किसी रसोई की खिड़की के साथ खड़े होकर उसमें पकते पकवान की गंध ले सकते हैं। अभी सड़कों के बीच से गुज़रती बैलगाड़ियों की रुनझुन की आवाज़ सुन सकते हैं। ये सभी घर टूट कर खंडहर बन गए हैं परंतु इनके बीच से गुज़रती सांय-सांय करती हवा आपको कुछ कह जाती है। अब ये सब घर एक बड़ा घर बन गए हैं। सब एक-दूसरे में खुलते हैं। लेकिन मानना है कि "लेकिन घर एक नक्शा ही नहीं होता। हर घर का एक चेहरा और संस्कार होता है। भले ही वह पाँच हज़ार साल पुराना घर क्यों न हों।" इस प्रकार लेखक इन टूटे-फूटे खंडहरों से गुज़रते हुए इन घरों में किसी मानवीय संवेदनाओं का संस्पर्श करते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास होने के साथ-साथ धड़कती जिंदगी के अनछुए समयों का भी दस्तावेज़ होते हैं।




Ateet mein Dabe Paon-EXTRA QUESTIONS ANSWERS


प्रश्न - मोहनजोदड़ो के अजायबघर में खुदाई के समय मिली कौन-कौन सी चीजें रखी हैं?



                   अथवा


प्रश्न -मोहनजोदड़ो के अजायबघर का वर्णन करें।


 उत्तर- लेखक ओम थानवी जब मोहनजोदड़ो की यात्रा पर गए तो उनके गाइड ने एक छोटा अजायबघर भी दिखाया था। लेखक के अनुसार-"यह अजायबघर छोटा है जैसे किसी कस्बाई स्कूल की इमारत हो, सामान भी ज़्यादा नहीं है।" इस अजायबघर में रखी चीज़ों की संख्या पचास हज़ार से अधिक रही होगी। मोहनजोदड़ो की खुदाई से मिली महत्त्वपूर्ण चीजें अब कराची, दिल्ली और लंदन के अजायबघरों में रखी हुई हैं। इस अजायबघर में जो चीजें रखी गई हैं वे सिंधु सभ्यता के साक्षात दर्शन करवा देती हैं। काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल मृद-भांड, उन पर काले भूरे चित्र, दो ताँबे के आइने, कँघी, मिट्टी के बर्तन, दो पाटन की चक्की, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने। रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार, चौपड़ की गोटियाँ, कँगन और सोने के कँगन। सोने के कँगन अब शायद चोरी हो गए हैं। इस प्रकार सभ्य समाज का जो साजो-समान होता है वह सब सिंधु घाटी की सभ्यता में देखने को मिलता है। इस प्रकार सिंधु सभ्यता दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में सबसे अनूठी एवं संस्कृति प्रधान सभ्यता है।


प्रश्न - मोहनजोदड़ो कहाँ बसा हुआ था ? इस शहर के नाम का अर्थ क्या है और इसे अब किस नाम से पुकारते हैं ?


उत्तर – मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित पुरातात्विक स्थान पर बसा हुआ था जहाँ कभी सिंधु घाटी सभ्यता थी। 'मुअनजो-दड़ो' का शाब्दिक अर्थ है- मुर्दों का टीला। वर्तमान में इसे मोहनजोदड़ो नाम से पुकारा जाता  है।


प्रश्न - मोहनजोदड़ो कहाँ बसा हुआ था ? इसे विशेष प्रकार से क्यों बसाया गया था ?


उत्तर – मोहनजोदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता के समय छोटे-मोटे टीलों पर बसा हुआ था। ये टीले प्राकृतिक नहीं थे। - ईंटों से धरती की सतह को ऊँचा उठाकर इसे बसाया गया था। इसे टीलों पर इसलिए बनाया गया था कि बाढ़ आदि के कारण सिंधु नदी के जल से इसे बचाया जा सके।


प्रश्न - वर्तमान में सिंधु घाटी सभ्यता को किस रूप में देखा और महसूस किया जा सकता है ?


उत्तर – सिंधु घाटी सभ्यता को वर्तमान में इसकी सूनी पड़ी गलियों-सड़कों पर घूम कर देखा जा सकता है। इसकी टूटी-फूटी दीवारों, खंडहरों, घरों, दहलीजों, सीढ़ियों, पायदानों आदि को देखा और महसूस किया जा सकता है। इसके माध्यम से इतिहास के पार झांका जा सकता है।




प्रश्न -  मोहनजोदड़ो के अवशेष कितने पुराने हैं ? इन्होंने भारत को प्राचीन सभ्यताओं की किस श्रेणी में ला खड़ा किया है ?


                अथवा


'अतीत में दबे पाँव" पाठ के आधार पर बौद्ध स्तूप का वर्णन कीजिए।


उत्तर - मोहनजोदड़ो के अवशेष ईसा पूर्व के हैं। इसके सबसे बड़े और ऊँचे चबूतरे पर बने बौद्ध स्तूप में छब्बीस सदी पहले की ईंटें लगी हुई हैं जिसमें भिक्षुओं के भी कमरे हैं। इस खोज ने भारत को मिस्र और मेसोपोटामिया (इराक) की प्राचीन सभ्यताओं के समकक्ष खड़ा कर दिया है।


प्रश्न -  इस आदिम शहर की सभ्यता-संस्कृति की अधिकाँश वस्तुएँ अब कहाँ हैं ?


 उत्तर - इस आदिम शहर की सभ्यता-संस्कृति से संबंधित वस्तुएँ अब कराची, लाहौर, दिल्ली और लंदन के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।


प्रश्न - सिंध क्षेत्र में सर्दियों में वातावरण कैसा होता है ? 


उत्तर  -सिंधु घाटी की सभ्यता का क्षेत्र सिंध राजस्थान से कुछ मिलता-जुलता है। सर्दियों में भी दोपहर के समय धूप चौंधियानी वाली होती है। वह राजस्थान की धूप की तरह पारदर्शी नहीं है जिस कारण सारा वातावरण और दिशाएँ फीके-से रंग में रंगी हुई प्रतीत होती हैं। रेत के टीले नहीं हैं और खेतों में हरियाली है। खुला आसमान, सूना परिवेश, धूल, बबूल और अधिक गर्मी और सर्दी यहाँ के वातावरण की विशिष्टताएँ हैं।




प्रश्न - मोहनजोदड़ो में कौन-सा निर्माण अभी भी अपने मूल स्वरूप के बहुत नजदीक दिखाई देता है ? अन्य संरचनाओं की स्थिति कैसी है ?


उत्तर – मोहनजोदड़ो में अनुष्ठानिक महाकुंड' ही अभी तक अपने मूल स्वरूप के बहुत निकट दिखाई देता है जो अद्वितीय वस्तु कला का नमूना है। अन्य इमारतें और संरचनाएँ इतनी उजड़ी हुई हैं कि कल्पना से ही उनके उपयोग का अंदाजा लगाया जा सकता है।


प्रश्न - मोहनजोदड़ो की सड़कों की क्या विशेषता है ? 


 उत्तर- -मोहनजोदड़ो की लगभग सभी सड़कें सीधी या फिर आड़ी हैं। आज के वास्तुकारक इसे 'ग्रिड प्लान' कहते हैं।


प्रश्न - विश्व के कौन-से नगर 'ग्रिड प्लान' के अनुसार बने हुए हैं ?


 उत्तर – विश्व के प्रसिद्ध नगर ब्रासीलिया, चंडीगढ़ और इस्लामाबाद 'ग्रिड' शैली के शहर हैं जो आधुनिक नगर नियोजन के प्रतिमान ठहराए जाते हैं।


प्रश्न - महाकुंड की विशेषताएँ लिखिए।


उत्तर - स्तूप की दायीं तरफ एक लंबी गली के आगे महाकुंड है। गली को दैव मार्ग (डिविनिटि स्ट्रीट) नाम दिया गया है। माना जाता है कि उस सभ्यता में सामूहिक स्नान किसी अनुष्ठान का हिस्सा होता था। कुंड चालीस फुट लंबा और पच्चीस फुट चौड़ा और सात फुट गहरा है। इसमें उत्तर और दक्षिण की ओर से सीढ़ियाँ उतरती हैं। इसके तीन तरफ साधुओं के लिए कमरे बने हैं। उत्तर दिशा में दो पंक्तियों में आठ स्नानघर हैं और इसमें से किसी का भी दरवाज़ा दूसरे दरवाज़े के सामने नहीं खुलता। इस कुंड में पक्की ईंटों का जमाव है जिससे पानी रिस न सके और बाहर का गंदा पानी भीतर न जा सके। कुंड के तल और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का प्रयोग किया गया है पीछे की दीवारों के साथ दूसरी दीवार खड़ी की गई है जिसमें सफ़ेद डामर का प्रयोग है। पानी को बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटों से बनी हुई नालियाँ हैं जो ढकी हुई हैं।



प्रश्न - 'कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स' किसे कहा गया है ? इसका निर्माण क्यों किया गया होगा ?


महाकुंड के उत्तर-पूर्व में एक बहुत बड़ी इमारत के अवशेष हैं जिसके तीन तरफ बरामदे और बीचों-बीच उत्तर खुला स्थान है। इसमें बीस खंभों वाला एक बड़ा हॉल है। दक्षिण की तरफ एक ओर टूटी-फूटी इमारत हैं। माना जाता है कि बरामदों के साथ अनेक छोटे-छोटे कमरे होंगे। पुरातत्व शास्त्री मानते हैं कि धार्मिक अनुष्ठानों में ज्ञान शालाएँ साथ-साथ सटा कर बनाई जाती थीं इसलिए इसे 'कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स' कहते हैं। यह भी अनुमान लगाया जाता है यह राज्य सचिवालय सभा-भवन या कोई सामुदायिक केंद्र रहा होगा।





प्रश्न -  मोहनजोदड़ो में जल निकासी की व्यवस्था किस प्रकार की गई थी ?


उत्तर – मोहनजोदड़ो में सभी नालियाँ ढकी हुई थीं जो सड़क के दोनों तरफ समांतर बनी हुई थीं। हर घर में एक स्नानघर था। घरों के भीतर से गंदा पानी नालियों से बाहर हौदी तक आता था और फिर नालियों के जाल में मिल जाता था। कहीं-कहीं नालियाँ बिना ढकी हुई थीं। 



प्रश्न -  मोहनजोदड़ो को 'जल संस्कृति' का नाम क्यों दिया जाता है ?


उत्तर – मोहनजोदड़ो में जल का प्रबंधन बहुत अच्छे और सुविचारित ढंग से किया गया था। इतिहासकारों के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता पहली ऐसी ज्ञात संस्कृति है जिन्होंने कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँचने की क्षमता प्राप्त की थी। केवल मोहनजोदड़ो में ही लगभग सात सौ कुएँ थे। नदी, कुएँ, कुंड, स्नानागार और बेजोड़ जल-निकासी के कारण ही मोहनजोदड़ो को जल संस्कृति का नाम दिया जाता है


प्रश्न - मोहनजोदड़ो में 'मुखिया' के घर की क्या विशेषता है ? 


उत्तर मोहनजोदड़ो में अधिकतर घर तीस-गुना-तीस फुट के हैं और कुछ घर इसमें दुगुने-तिगुने भी हैं पर  सबकी न्यूनाधिक वास्तु शैली एक-सी है। पर जिसे 'मुखिया' का घर कहते हैं उसमें करीब बीस कमरे और दो आँगन हैं।




प्रश्न -  मोहनजोदड़ो के अजायब घर में क्या रखा हुआ है ? 


उत्तर - मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त लगभग पचास हज़ार चीज़ों के नाम पंजीकृत है पर अजायब घर में रखी - गई वस्तुएँ हैं—काला पड़ गया गेहूँ, मुहरें, ताँबा-काँसा से बनी बर्तन, मिट्टी के बर्तन, चौपड़ की गोटियां, माप-तौल के पत्थर, दीये, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, खिलौने, पत्थर के औज़ार, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों की माला आदि ।


प्रश्न - मोहनजोदड़ो की सभ्यता के भग्नावशेषों में किसी भी हथियार का न मिलना क्या सिद्ध करता है ?


 उत्तर – मोहनजोदड़ो की सभ्यता के भग्न अवशेषों में से 50,000 से अधिक वस्तुएँ प्राप्त हो चुकी हैं। पर उनसे हथियार एक भी प्राप्त नहीं हुआ। साथ ही राजसत्ता या स्वामित्व प्रदर्शित करने वालों को अवशेष प्राप्त हुए हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता का समाज अति अनुशासित और मज़बूत था जिसे राजसत्ता की आवश्यकता ही नहीं थी। सबका समाज न तो धर्म द्वारा शासित था और न ही राजनीति के द्वारा चलता था। वह अपने ही बल पर अनुशासित था। 




प्रश्न - मोहनजोदड़ो की सभ्यता कैसी रही होगी ? पाठ के आधार पर अनुमान से लिखिए।


 उत्तर - मोहनजोदड़ो की सभ्यता भव्यता और उच्चता की पुजारी नहीं थी। वह निम्न या मध्यवर्गीय थी जिसकी भव्यता उनके भीतरी अनुशासन में छिपी हुई थी। वे लोग सभ्य, धर्म प्रेमी, कला प्रेमी और सुसंस्कृत थे पर उनकी सभ्यता 'लो प्रोफाइल' थी।


प्रश्न - मोहनजोदड़ो की सभ्यता से हमारा युग आज भी कुछ-कुछ जुड़ा हुआ था। कैसे ? 


उत्तर – मोहनजोदड़ो से जुड़ी सिंधु घाटी सभ्यता के समय ठोस पहियों वाली बैलगाड़ियाँ चला करती थीं, जिनके अवशेष प्राप्त हुए हैं। ऐसी ही बैलगाड़ियाँ कुछ वर्ष पहले तक गाँवों में चला करती थीं। लेखक का मानना है कि उनके गाँव में दुल्हन पहली बार ससुराल में ऐसी बैलगाड़ियों में ही आया करती थी।


प्रश्न -  मोहनजोदड़ो का क्या अर्थ है ? वर्तमान में इसे किस नाम से पुकारते हैं ?


उत्तर - मोहनजोदड़ो का अर्थ है- मुर्दों का टीला । यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित एक प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थान है जिसे अब मोहनजोदड़ो के नाम से पुकारा जाता है।



प्रश्न - 'स्तूप वाला चबूतरा' शहर में कहाँ स्थित है


उत्तर- - यह स्तूप वाला चबूतरा शहर के एक खास हिस्से में स्थित था। इस हिस्से को पुरातत्व के विद्वान् ‘गढ़' कहते हैं। ये गढ़ कभी न कभी राजसत्ता या धर्मसत्ता के केंद्र रहे होंगे। इन शहरों की खुदाई से स्पष्ट हो जाता है बाकी बड़ी इमारतें, सभा, भवन, ज्ञानशाला सभी अतीत की चीजें कही जा सकती हैं, किंतु ये 'गढ़' उस द्वितीय वास्तुकला कौशल के बाकी बचे नमूने हैं। 


प्रश्न - मोहनजोदड़ो की शहर संरचना कैसी थी ? आज के वास्तुकार इसे क्या कहते हैं


उत्तर – मोहनजोदड़ो शहर की संरचना और नगर नियोजन का अनूठा प्रमाण यहाँ की सड़कें अधिकतर सीधी हैं या फिर आड़ी हैं। आज के वास्तुकार इसे 'ग्रिड प्लान' कहते हैं। आज के नगरों के सैक्टर कुछ इसी नियोजन मेल खाते


प्रश्न -मोहनजोदड़ो की नगर योजना का वर्णन कीजिए।


                       अथवा


"सिंधु सभ्यता एक नगर संस्कृति थी" इस कथन की विवेचना कीजिए।



उत्तर - सिंधु घाटी की खुदाई से मिले अवशेषों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हिंदू सत्या एक नगर संस्कृति थी। जिस योजना के अनुसार मोहनजोदड़ो नगर बसा हुआ था ।यह योजना अपने आप में अनूठी योजना थी। यहां के सभी सड़कें सीधी हैं या आड़ी। इस नगर की प्रशासनिक इमारतें, सभा भवन, ज्ञानशाला और कोठार सड़क के दोनों ओर घर हैं ।लेकिन सड़क ओर किसी भी घर दरवाजा नहीं खुलता, सभी सड़क की ओर पीठ करके बनाए गए हैं। यह शैली आधुनिक काल में चंडीगढ़ शहर बसाने इस्तेमाल की गई आपको किसी के घर के मुख्य सड़क पहले सैक्टर भीतर दाखिल होना पड़ता है; गली में और फिर घर में प्रवेश किया सकता है। घर छोटे भी हैं और बड़े भी लेकिन सभी कतार में खड़े अधिकतर घरों काआकार तीस गुणा तीस फुट का है। कुछ इससे बड़े भी हो सकते हैं। ये सभी नियोजित व्यवस्थित थे। नगर में एक बड़ा घर शायद यह 'मुखिया' का घर होगा। इस घर में दो आँगन और लगभग बीस कमरे होंगे। इस नगर में उपासना केंद्र भी है 'रंगरेज़ कारखाना' भी। दो मंजिला घरों संख्या काफ़ी है। यह अनुमान लगाया सकता है भूमि तल मकानों में मज़दूर आदि रहते थे प्रथम तल मकान मालिक रहा करते थे। बड़े घरों में छोटे कमरे भी हैं इसका अर्थ यह हो सकता है कि शहर की जनसंख्या काफ़ी होगी। बड़े घरों के आँगन में सीढ़ियां हैं कुछ घर दो मंज़िला दिखते हैं परंतु उन सीढ़ियों निशान नहीं। शायद ऊपर चढ़ने लिए लकड़ी की सीढ़ियों प्रयोग किया जाता होगा कालांतर में नष्ट हो होंगी।' । इस प्रकार सिंधु सभ्यता नगर संस्कृति आधारित सभ्यता थी। 






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