साखियाँ एवं सबद भावार्थ Class 9-Kabir Class 9 Explanation (Sakhi evam Shabad Full Explaination)

साखियाँ एवं सबद भावार्थ Class 9-Kabir Class 9 Explanation (Sakhi evam Shabad Full Explaination)

साखियाँ एवं सबद भावार्थ Class 9-Kabir Class 9 Explanation (Sakhi evam Shabad Full Explaination)


कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Explanation- साखी 1 की व्याख्या तथा भावार्थ।

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं ।

मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं। 1।


प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कबीर की "साखियां "से ली गई है। इन पंक्तियों में कबीर जी भक्ति के महत्व को बताते हुए कहते हैं ।


व्याख्या-  मेरे मन रूपी तालाब में भक्ति रूपी जल अच्छी प्रकार से भरा हुआ है जिसमें मेरी आत्मा रूपी हंस क्रीडा कर रहा हैं और वह हंस मोती रूपी मुक्ति के फल चुग रहा है और अब वह हंस उड़ कर कहीं नहीं जाना चाहता। कहने का भाव यह है कि अब मेरी आत्मा भक्ति में लीन हो गई है और भक्ति के माध्यम से ही मोक्ष को पाना चाहती है इसीलिए अब उड़कर कहीं नहीं जाना चाहती।


विशेष -


भाव पक्ष-


(1)भक्ति की महिमा का सुंदर वर्णन किया गया है।


कला पक्ष-


(1)पूरे पद में रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग है।

(2)"केली कराहिं" और "मुक्ता फल मुक्ता" में अनुप्रास अलंकार है।

(3)सधुकड़ी भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है।



कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Explanation- साखी 2 की व्याख्या तथा भावार्थ


प्रेमी ढूँढ़त मैंफिरौं, प्रेमी मिले न कोई।

प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ । 2 ।


प्रसंग-  प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित" कबीर की साखियां "से ली गई है इन पंक्तियों के माध्यम से कबीर जी सच्चे प्रेमी की पहचान बताते हैं।


व्याख्या-   कबीर जी कहते हैं कि मैं सच्चे प्रेमी अर्थात् परमात्मा से प्रेम करने वाले को ढूंढता फिर रहा हूं। जब सच्चे प्रेमी को दूसरा सच्चा प्रेमी अर्थात् परमात्मा से प्रेम करने वाला मिल जाता है, तो सारा जहर अमृत में बदल जाता है कहने का अभिप्राय है कि संसार की सब विषय वासनाओं यानी इच्छा रूपी जहर परमात्मा के सत्संग रूपी अमृत में बदल जाता है।


विशेष


भाव पक्ष-


(1)परमात्मा से प्रेम करने वाले भक्तों को ही सच्चा प्रेमी कहा गया है।


कला पक्ष-


(1)अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।

(2)सधुकड़ी भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है।



कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Explanation- साखी 3 की व्याख्या तथा भावार्थ।


हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि

स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि | 3 |


प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित "कबीर की साखियां" से ली गई है प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कबीर जी सच्चे ज्ञान की महिमा को बताते हैं।


व्याख्या-  कबीर जी कहते हैं कि हमें  ज्ञानरूपी हाथी पर चढ़कर और उसके ऊपर सहजता का दुलीचा डालकर बैठ जाना चाहिए ।संसार के लोग तो कुत्ते के समान हैं अगर वह भोंकते हैं तो उन्हें भोकने दें। कहने का भाव है कि जब व्यक्ति अपने सच्चे स्वरूप को पा लेता है तो संसार के लोग उसके बारे में तरह-तरह की बातें करते हैं तब उस व्यक्ति को संसार के लोगों की बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए।


विशेष


भाव पक्ष-

(1)सच्चे ज्ञान को प्राप्त करने की बात कही गई है।

(2)अपने सच्चे स्वरूप को पाने की बात कही गई है


कला पक्ष-

(1) पूरे पद में रूपक अलंकार का बहुत ही सुंदर प्रयोग है।

(2)संसार को कुत्ते के समान बताया गया है।

(3)सधुकड़ी भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है।


कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Explanation- साखी 4 की व्याख्या तथा भावार्थ



पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान

निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान। 4।



प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित "कबीर की साखियां" से ली गई है प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कबीर जी निष्पक्ष भाव से परमात्मा की भक्ति करने का संदेश देते हैं ।


व्याख्या- कबीर जी कहते हैं कि सारे संसार के मनुष्य परमात्मा के स्वरूप निर्गुण या सगुण को लेकर उसके पक्ष या विपक्ष में फंसे हुए है ।इसीलिए वह परमात्मा के सच्चे स्वरूप को भूल गए है। आगे कबीर जी कहते हैं कि जो व्यक्ति परमात्मा के सच्चे स्वरूप का भजन करता है वही सच्चा संत या सुजान अर्थात् सज्जन व्यक्ति कहलाता है।


भाव पक्ष-


(1)प्रस्तुत साखी के माध्यम से कबीर जी ने सच्चे संत की पहचान करवाई है।


(2)मनुष्य को वाद विवाद या पक्ष विपक्ष में न फंसकर परमात्मा के सच्चे स्वरूप का भजन करना चाहिए।



कला पक्ष-


(1)सरल सहज ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।


(2)भाषा में संगीतात्मक्ता विद्यमान है।


(3)"सोई संत सुजान" में अनुप्रास अलंकार है।


(4)पूरे पद में अन्त्यानुप्रास अलंकार है।



कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Explanation- साखी 5 की व्याख्या तथा भावार्थ


हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई।

कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकट न जाइ।।



प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कबीर की साखियों से ली गई है। इन पंक्तियों में कबीर जी भिन्न-भिन्न संप्रदायों से ऊपर उठने की बात कहते हैं।


व्याख्या-  कबीर जी कहते हैं कि हिंदू लोग राम राम की रट लगाते फिरते हैं और मुसलमान खुदा खुदा की रट लगा कर अपने आप को सही साबित करने का प्रयास करते हैं ।लेकिन कबीर जी के अनुसार यह दोनों मरे हुए हैं ।कबीर जी कहते हैं कि सच्चे अर्थों में तो वही व्यक्ति जीवित है जो इन दोनों अर्थात हिंदू और मुसलमान के निकट न जाकर परमात्मा का ध्यान करता है।



विशेष


भाव पक्ष


(1) इस साखी में कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि खुदा और राम दो अलग अलग नहीं है अपितु एक ही ब्रह्म का नाम है।



कला पक्ष


(1)सरल सहज ब्रज भाषा का प्रयोग।


(2)अनुप्रास अलंकार है।


(3) "कहै कबीर" में अनुप्रास अलंकार है।




कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Explanation- साखी 6 की व्याख्या तथा भावार्थ


काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।

मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम। 6 ।




प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कबीर की सखियों से ली गई है ।इन पंक्तियों के माध्यम से कबीर जी बाह्य आडम्बरों पर चोट करते हुए कहते हैं।




व्याख्या-  कबीर जी कहते हैं कि मुसलमानों के तीर्थ स्थान काबा और हिंदुओं के तीर्थ स्थान काशी में कोई भेद नहीं है।यह दोनों घूम फिर कर एक ही हो जाते हैं इसी प्रकार राम और रहीम में कोई भेद नहीं है जिस प्रकार मोटे आटे से चोकर अलग हो जाता है लेकिन अगर उसी मोटे आटे को पीस दिया जाए तो वह महीन मैदा बन जाता है ।इस प्रकार उसमें आटे के समान कोई भेद नहीं रहता। इसी प्रकार परमात्मा भी एक ही है और कबीर जी कहते हैं कि हमें परमात्मा को एक जान कर उसका आनंद लेना चाहिए।



विशेष

भाव पक्ष-


(1)कबीर जी स्पष्ट करना चाहते हैं कि धार्मिक संप्रदायों के कारण परमात्मा में कोई भेद नहीं हो जाता।


कला पक्ष


(1)सहज सरल ब्रज भाषा का प्रयोग है।


(2)"काबा फिरि कासी" में अनुप्रास अलंकार है।


(3)अलग-अलग विचारधाराओं को मोट चून कहा है।


(4)कबीर जी की गहरी और सच्ची अनुभूति प्रकट प्रकट हुई है।।



कबीर की साखियां एवं सबद Class 9 Explanation- साखी 7 की व्याख्या तथा भावार्थ।



ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ

सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ । 7।



प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कबीर की साखियां से ली गई है। इन पंक्तियों के माध्यम से कबीर जी कर्म सिद्धांत के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि



व्याख्या -कबीर जी कहते हैं कि उच्च जाति में या ऊंचे कुल में जन्म लेने मात्र से कोई व्यक्ति ऊंचा नहीं हो जाता ,जिस प्रकार यदि सोने की मटकी में मदिरा भरी हो तो साधु अर्थात सज्जन व्यक्ति तो उसकी निंदा ही करेगा कहने का अभिप्राय है कि मटकी भले ही सोने की है लेकिन उसके अंदर अगर शराब भरी हुई है तो वह किसी काम की नहीं ।इसी प्रकार ऊंचे कुल में जन्म लेने के बाद अगर व्यक्ति के कर्म अच्छे नहीं हैं तो वह अच्छा नहीं कहला सकता।


विशेष

भाव पक्ष-

(1)इन पंक्तियों में कबीर जी ने जाति पाति के भेदभाव और कर्म के सिद्धांत की ओर संकेत किया है।


कला पक्ष

(1)सहज एवं सरल ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।


(2)"सुरा भरा" में अनुप्रास अलंकार है।


(3)आम जनजीवन से उदाहरण लेकर समझाया गया है।








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