Class 10 Kshitij-Ek Kahani Yah Bhi Question Answer-एक कहानी यह भी के प्रश्न उत्तर

Class 10 Kshitij-Ek Kahani Yah Bhi Question Answer-एक कहानी यह भी के प्रश्न उत्तर

Class 10 Kshitij-Ek Kahani Yah Bhi Question Answer-एक कहानी यह भी के प्रश्न उत्तर
Class 10 Kshitij-Ek Kahani Yah Bhi Question Answer-एक कहानी यह भी के प्रश्न उत्तर


Class 10 Kshitij-Ek Kahani Yah Bhi Question Answer-एक कहानी यह भी के प्रश्न उत्तर- अभ्यास के प्रश्न उत्तर



1. लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा? 

 उत्तर - लेखिका के व्यक्तित्व को दो व्यक्तियों ने अत्यधिक प्रभावित किया। प्रथम तो पिताजी ने उसके व्यक्तित्व को बनाने बिगाड़ने में बहुत बड़ा योगदान दिया। पिताजी ने लेखिका के मन में हीनता की भावना पैदा की तथा उसे विद्रोही बनाया। पिताजी ने ही लेखिका को देश और समाज के प्रति जागरूक बनाया। यही नहीं लेखिका को उसके पिताजी ने रसोईघर के कार्यों से अलग रखकर उसे बुद्धिमान बनाने का प्रयास किया।


दूसरे लेखिका के व्यक्तित्व को शीला अग्रवाल ने भी प्रभावित किया। वे हिन्दी की प्राध्यापिका थीं। उन्होंने पहले तो लेखिका का परिचय साहित्य के व्यापक संसार से कराया, फिर उन्होंने ही लेखिका को क्रियाशील, क्रांतिकारी तथा आंदोलनकारी बनाया। उन्होंने लेखिका के मन में जोशीली बातें भर दो। जहाँ पिताजी उसे घर की चारदीवारी तक सीमित रखना चाहते थे, वहाँ शीला अग्रवाल ने उसे अन्याय तथा अत्याचार के विरुद्ध बाहर निकलकर विद्रोह करना सिखाया। 




प्रश्न 2. इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर क्यों संबोधित किया है?


उत्तर - इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोईघर को 'भटियारखाना' इसलिए कहा है क्योंकि रसोईघर की भट्ठी में हमेशा खाना पकाना चलता रहता है। घर की स्त्रियाँ दिन भर इसी काम में उलझी रहती हैं। पिताजी के अनुसार रसोईघर की इस भट्ठी में महिलाओं की प्रतिभा और क्षमता जलकर राख हो जाती है। चूंकि पिताजी अपनी लड़कियों को घर के चूल्हे चौके तक सीमित न रखकर उन्हें जागरूक बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रसोईघर को 'भटियारखाना' कहा है।


प्रश्न 3. वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर ? 



उत्तर- लेखिका ने कॉलेज में एक आंदोलन चला रखा था। कॉलेज के प्रिंसिपल ने लेखिका के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के लिए उसके पिता को बुलवाया। पिता जो पहले ही लेखिका की विद्रोही प्रवृत्ति से तंग आ चुके थे, उनको लगा कि उनकी बेटी मन्नू ने फिर कोई न कोई अपमानजनक काम किया होगा। वे अत्यधिक क्रोधित हो उठे और सोचने लगे कि ये लड़की उन्हें कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगी। परंतु कॉलेज जाकर जब उन्हें पता चला कि कॉलेज की सभी लड़कियाँ तीन लड़कियों के इशारे पर कक्षाएँ छोड़कर बाहर आ जाती हैं। उन तीन लड़कियों में से एक लेखिका भी है, तब यह पता चलने पर उनका सीना गर्व से फूल उठा। वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने प्राचार्य को उत्तर दिया कि ये आंदोलन तो वक्त की पुकार है; इन्हें कैसे रोका जा सकता है। घर आने पर अपने पिता के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर लेखिका को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो पाया तथा न ही कानों पर।



प्रश्न 4. लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।


 उत्तर- लेखिका और उसके पिता के विचार अलग-अलग थे। पिताजी चाहते थे कि लेखिका देश तथा समाज के प्रति जागरूक तो हो लेकिन वह घर तक ही सीमित रहे। मतलब यह है कि वे लेखिका के मन में विद्रोह और जागरण तो उत्पन्न कर देना चाहते थे, लेकिन उसे सक्रिय नहीं होने देते थे परन्तु लेखिका चाहती थी कि वह न केवल अपनी भावनाओं को प्रकट करे बल्कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय भाग ले लेखिका के विवाह को लेकर भी पिता और बेटी के विचारों में टकराहट उत्पन्न हुई। पिताजी नहीं चाहते थे कि लेखिका अपनी मर्जी से राजेन्द्र यादव से विवाह करे। परन्तु लेखिका ने अपने पिता की परवाह न करते हुए राजेन्द्र यादव से ही विवाह किया।


प्रश्न 5. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।


उत्तर -सन् 1942 से 1947 का समय स्वतंत्रता संग्राम का उल्लेखनीय काल था। इन दिनों पूरे देश में देशभक्ति का स्वर मुखरित हो रहा था। देश के युवक प्रभात फेरियाँ निकालते थे। नगरों में हड़तालें करवाते थे तथा जलसे जुलूसों में खुलकर भाग लेते थे। यहाँ तक कि युवतियाँ भी अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने लगी थीं। इस काल में घर-परिवार तथा स्कूल कॉलेज के नियम टूटने लगे थे। लड़के-लड़कियाँ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगे थे। इस काल में मन्नू भंडारी ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। अपने पिता के न चाहते हुए भी उसने सड़कों पर लड़कों के साथ घूम-घूमकर नारेबाजी की, भाषणबाजी की तथा हड़तालों और जुलूसों में भाग लिया। यहाँ तक कि कॉलेज की सभी कक्षाओं के विद्यार्थी उनके इशारे पर कक्षाएँ छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते थे।


Class 10 Kshitij-Ek Kahani Yah Bhi Question Answer-एक कहानी यह भी के प्रश्न उत्तर- रचना के आसपास


प्रश्न 1- लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले, लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।


उत्तर-  आज परिस्थितियाँ बदल चुकी है। विशेषकर महानगरों के बच्चे न तो गिल्ली डंडा खेलते हैं न ही पतंग उड़ाते हैं। छोटे नगरों में भी ऐसे खेल थोड़े बहुत मात्रा में हो देखने को मिलते हैं। सभी जगह मोहल्लेदारी समाप्त हो गई है। कोई बच्चा किसी दूसरे के घर में नहीं जाता। पहले संयुक्त परिवार होते थे। खुली गलियाँ तथा खुले मकान थे। आस-पड़ोस का माहौल बड़ा ही सजीव होता था। लेकिन अब वैसा माहौल नहीं रहा। अब बच्चे अपना समय टी.वी. देखने या कम्प्यूटर चलाने में बिताते हैं। माँ-बाप भी नहीं चाहते कि किसी पड़ोसी के बच्चे घर में हुड़दंग मचाए और उनकी शांति को भंग करें।


जहाँ तक लड़कियों का प्रश्न है वे भी अब घर की चारदीवारी को लाँघ चुकी हैं और विदेशों तक पहुँच गई है। महानगरों में लड़कियों पर लगे हुए अंकुश समाप्त हो चुके हैं। लड़कियाँ अब लड़कों के साथ घुल-मिलकर पढ़ती हैं और नौकरियाँ भी करती हैं। यही नहीं लड़कियाँ आजकल खेलकूद तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम में खुलकर भाग ले रही हैं। आजकल लड़कियाँ निडरता और साहस के साथ अपना काम करती हैं। इस प्रकार स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लड़कियों की स्वतंत्रता में वृद्धि हुई है।


प्रश्न 2. मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। परन्तु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः 'पड़ोस कल्चर' से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए। 



उत्तर- यह एक सत्य है कि मानव के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। मुसीबत के समय पड़ोसी ही सबसे पहले सहायता के लिए पहुँचते हैं। सगे-संबंधी बाद में पहुँचते हैं। परन्तु महानगरों में आस-पड़ोस का कोई महत्व नहीं रहा। पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करने चले जाते हैं। उनका छुट्टी का दिन घर के छोटे-मोटे कामों में गुजर जाता है। इसलिए वे न तो पड़ोसी के यहाँ जा पाते हैं और न ही पड़ोस के व्यक्ति को अपने यहाँ बुला पाते है।। महानगरीय जीवन की त्रासदी यह है कि सभी अपना कैरियर बनाने में लगे रहते हैं। किसी को किसी की न से खबर है न हो चिंता है। यही कारण है कि महानगर के लोग हँसना तक भूल गए हैं। उनमें न तो कोई उदारता है न हृदय की विशालता है और न ही कोई उल्लास है। महानगर का प्रत्येक व्यक्ति अकेला, उदास और बेसहारा नजर आता है।


Post a Comment

0 Comments